Saturday, September 24, 2011

veer maalav


 नाटक(एकांकी)-देशप्रेमी बालक
                       -डा.राजसक्सेना
       सिंहगढ़ दुर्ग में शिवाजी का शयनकक्ष
पलंग पर शिवाजी गहरी नींद में सोये हैं|प्रहरी
टन-टन कर रात्रि के तीन बजाता है|पलंग की
लटकी चादर का सिर की ओर का कोना उठाकर
एक दस-बारह साल का बालक अपना सर उठा
कर सोये शिवाजी को देखता है| उन्हें सोया -
देख कर धीरे से पलंग के नीचे से निकलता है,
उसके बाहर निकलते ही शिवाजी के पैरों के पास
पर्दे के पीछे छिपे शिवाजी के सेनापति ताना जी
पर्दे के पीछे से निकलकर बालक के पीछे आकर
सतर्क खड़े हो जाते हैं|
     बालक एक बार शिवाजी को सोया देख-
कर उनपर म्यान से तलवार निकालकर जोर-
दार वार करता है|पीछे सतर्क खड़े तानाजी बीच
से तलवार पकड़कर वार बचाते हैं और बालक
का हाथ मरोड़ कर उसे काबू कर लेते हैं इस -
संघर्ष में शिवाजी की आंख खुल जाती है और
वे चकित भाव से सेनापति की ओर प्रश्नवाचक
दृष्टि से देखते हैं|
तानाजी- कुछ विशेष नहीं महाराज यह बालक
आज दोपहर जब बिना अनुमति महल में घुसा
तो प्रहरियों ने इस पर दृष्टि रखते हुए मुझे -
सूचना दी,जब यह बालक आंख बचाकर पलंग
के नीचे छुपा तो मैं भी आपकी सुरक्षा के लिए
पर्दे के पीछे छुप गया|जब इस बालक ने आप
पर हमला किया तो मैंने इसे काबू कर लिया |
   शिवाजी (बालक की ओर देख कर)-कौन
हो तुम बालक|तुम हमें क्यों मारना चाहते थे|
हमें हमारा अपराध बताओगे |
   बालक(निडरता से)- अवश्य महाराज|मेरा
नाम मालव है मैं आपके एक साधारण सैनिक
राघोजी का पुत्र हूं जो अब से एक बर्ष पूर्व एक
सैनिक अभियान में आप की ओर से लड़ते -
हुये वीरगति को प्राप्त हुए |
   शिवाजी- तुम तो हमारे अपने हो बालक -
ऐसा क्या हुआ जो तुम हमारे प्राणों के प्यासे
हो गये |
   मालव- बताता हूं महाराज |पिता की मृत्यु
के बाद मां ने गहने आदि बेच कर       मेरा-
अपना और मेरी बूढ़ी दादी का पेट भरा किन्तु
अब से एक माह पूर्व जब अन्न समाप्ति की ओर
था तब मैंने आपसे मिल कर अपनी व्यथा आप
को बताने का प्रयास किया किन्तु आपके सैनिकों
ने मुझे आपसे नहीं मिलने दिया | मैं निराश हो
कर जब वापस जा रहा था तो आपकी सेना के -
 एक यवन पदाधिकारी ने मुझसे आपसे मिलने
का कारण पूछा मैंने उसे सत्य बता दिया |उसने
अपने प्रति स्वामिभक्ति की शपथ लेकर मुझे अपनी
सेवा में रख लिया और मुझे एक माह का वेतन
अग्रिम दे दिया जिससे मैंने कुछ अन्न क्रय कर
घर में रखा बाकी पैसों से अन्य आवश्यक सामान
खरीदा |
शिवाजी- फिर तुम मुझे मारने क्यों आए यह तो
तुमने बताया ही नहीं !
मालव- बता रहा हूं महाराज |
तानाजी- इस बालक की बातों में हमारा समय -
बेकार नष्ट हो रहा है महाराज इसने आपकी हत्या
का प्रयास किया है|अपराध करते समय रंगे हाथों
पकड़ा गया है | अपराध का साक्षी मैं हूं | इसे
फांसी की सज़ा दीजिये महाराज | आपका एक-
-एक क्षण कीमती है महाराज |
शिवाजी- ठहरो तानाजी,हमारी ओर से लड़कर वीर
गति को प्राप्त एक वीर सैनिक का पुत्र हमारी हत्या
को तत्पर होता है, हमें कारण जानना चाहिये |
हां बालक आगे कहो |
मालव-जो आज्ञा महाराज |
तानाजी- महाराज यह बालक मुझे शातिर लग रहा
है| रंगे हाथों पकड़े जाने पर अपनी जान बचाने के
लिये यह आपकी सहानुभूति पाकर द्ण्ड से बचने
के लिये यह    एक झूठी   कहानी सुना रहा है|
मालव- सेनापति,जिव्हा पर नियन्त्रण रखें आप
अपनी सेना के एक स्वामीभक्त वीर के पुत्र को
झूठा कह कर उसकी आत्मा को कष्ट पहुंचा रहे है|
मैं अपराधी हूं ,मैं फांसी से नहीं डरता |मैं सजा
के लिये तैयार होकर ही आया था |सच बात तो
यह है महाराज कि मेरी अन्तरात्मा यह प्रार्थना कर
रही थी कि मैं अपराध के पूर्व ही पकड़ा जाऊं ताकि
देश के प्रति जघन्य अपराध से बच सकूं |
शिवाजी- आगे कहो मालव हम सत्य सुनना चाहते
है कि हमारी गलती क्या है!
मालव- आपकी पहली गलती तो यह है कि आपने
कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि आपके-
लिये जान देने वाले वीर के परिवार की क्या दशा है|
आपने सुरक्षा के नाम पर अपने चारों ओर तानाजी
जैसे कुछ अन्धस्वामिभक्त सैनिकों का जमावड़ा कर
रखा है जो आप तक किसी को पहुंचने ही नहीं देते|
जिससे बहुत सी आवश्यक बातें आप तक नहीं प-
हुंच पाती हैं |
तानाजी- महाराज क्या आपको नहीं लगता कि यह
अपनी आयु से काफी अधिक की बातें कर रहा है|
जरुर यह किसी भेदिये का भेजा हुआ है जो इस -
प्रकार की बातें करके आपकी सुरक्षा व्यवस्था भंग
करना चाहता है|
शिवाजी- ठहरो तानाजी हमें भी व्यक्ति की पहचान
है |इसकी उम्र नहीं इसके कटु अनुभव बोल रहे हैं|
आज ही से मानाजी के नेतृत्व में एक विभाग वीर
गति प्राप्त सैनिकों के कल्याण के लिये खोल दो |
कहो बालक ,आगे कहो |
मालव- खैर महाराज उस यवन अधिकारी ने मुझसे
एक सप्ताह पूर्व स्वामी की आज्ञा का वास्ता देकर -
जब आपकी हत्या का आदेश दिया तो मैं हक्काबक्का
रह गया | प्रथम तो मैंने यह सोचा कि मुझे तुरन्त
यह सूचना आप तक पहुंचा देना चाहिये किन्तु मेरी
रग-रग में भरी स्वामीभक्ति ने मुझे रोक दिया |मैने
निश्चय किया कि बिना गुण-दोष व हानि-लाभ   का
गणित लगाये मुझे स्वामी के आदेश का पालन करना
चाहिये और मैं आपके कक्ष में छिप गया |
शिवाजी- मालव अब हमें बताओ कि हमें तुम्हारे साथ
क्या व्यवहार करना चाहिये |
मालव- महाराज मैं एक अपराधी हूं ,रंगे हाथों पकड़ा
गया हूं|नियमानुसार मेरी सजा प्राणद्ण्ड है|मैं वीर-
मराठा का पुत्र हूं,मरने से नहीं डरता |किन्तु मरने
से पहले मुझे दो कार्य करने हैं,जिन्हें करने के बाद
ही मुझे दण्ड़ दिया जाय यह प्रार्थना अवश्य करूंगा |
ताकि कोई बोझ लेकर न मरूं |
शिवाजी- कौन से दो कार्य !
मालव - प्रथम तो यह कि मुझे अपने स्वामी तक
जाकर यह अवगत कराने की अनुमति दी जाय कि
मैं उसे बता सकूं कि मैं उसका कार्य नही कर सका |
 अतः मैं उसकी सेवा नहीं कर सकूंगा |
शिवाजी- और दूसरा !
मालव- दूसरा यह कि आज के भोजन के लायक
ही घर में अन्न है| कल से मां और दादी को भूखा
रहना पड़ेगा |मुझे सजा दिये जाने में दो-तीन दिन
लग सकते हैं अतः मैं नहीं चाहता कि मेरे जिन्दा
रहते वे भूखे मरें | मेरे मरने के बाद चाहे जो हो |
शिवाजी- इसके लिये तुम क्या करोगे !
मालव- इस समय मेरे घर में बेचने लायक केवल
मेरी यह तलवार है| इसे बेचने पर आठ-दस दिन
के भोजन की व्यवस्था हो ही जायेगी | मैं मां  के
पास जाकर उसे पूर्ण परिस्थति से अवगत करा कर
यह तलवार बेच कर अन्न आदि क्रय कर घर  में
रखने की व्यवस्था करने के लिये अपने घर -
जाने की अनुमति चाहूंगा |यदि महाराज मुझ मरा-
ठा पुत्र पर विश्वास कर सकें तो मुझे जाने की -
अनुमति दी जाय |  
शिवाजी(ताना जी की ओर देखकर)-आपकी क्या राय है
ताना जी |
तानाजी- इतने जघन्य अपराध के उपरान्त भी पता नहीं
क्यों  मन इस पर अविश्वास नहीं कर पा रहा है |
शिवाजी- बालक मालव तुम कितनी देर का समय चाहते
हो |  
मालव - केवल आने जाने व बात करने में जितना समय
लगे महाराज मात्र इतना ही |
शिवाजी (इशारों में तानाजी से कुछ बात करके)- ठीक है
मालव हम तुम्हें अनुमति देते हैं |
मालव- वीर मराठा के पुत्र पर विश्वास के लिये आभारी हूं
महाराज | सूचना और व्यवस्था के तुरन्त पश्चात आपकी
सेवा में उपस्थित होता हूं श्रीमन |
(यह कह कर मालव तेजी से बाहर जाता है ,उसके जाते
ही तानाजी एक सैनिक को संकेत करते हैं, वह तुरन्त -
मालव के पीछे जाता है )
तानाजी- आप क्या सोचते हैं महाराज! क्या मालव वा-
पस आयेगा |
शिवाजी-मेरा मन कहता है मालव अवश्य वापस आयेगा
और मृत्यु दण्ड स्वीकार भी करेगा |
( थोड़ी देर में मालव के पीछे गया सैनिक वापस आकर
शिवाजी और तानाजी को प्रणांम करता है )
तानाजी - कहो सैनिक क्या समाचार है |
सैनिक- सेनापति आपके संकेतानुसार मैंने कुछ सैनिक
लेकर मालव का पीछा किया | मालव पहले उस विश्वास-
घाती यवन सैनिक से मिलने गया सम्भवतः उसने अपनी
असफलता की सूचना उसे दी थी| क्योंकि जब हम यवन
सैनिक के घर पहुंचे तो वह भागने की तैयारी कर चुका -
था हमने उसे बन्दी बना लिया है |
तानाजी- शाबास सैनिक हमें तुम से यही आशा थी,फिर
क्या हुआ |
सैनिक- वहां से मालव सीधा अपने घर में घुस गया -
और हम यवन अधिकारी को लेकर यहां चले आये |
(तेजी से मालव कक्ष में प्रवेश करता है )
शिवाजी- अरे मालव इतनी जल्दी ! क्या भोजन व्य-
वस्था का प्रबन्ध हो गया |
मालव-नहीं महाराज | यहां से सीधा मैं यवन अधि-
कारी के पास गया उसे सूचना दी कि मैं उसका कार्य़
नहीं कर सका और फिर तुरन्त अपने घर पहुंचा वहां
मां को स्थिति से अवगत कराते हुये तलवार बेचने की
अनुमति मांगी |
शिवाजी- तो मां ने क्या कहा !
मालव - मां तो घटनाक्रम से सन्न रह गयीं | आप
की हत्या की चेष्ठा सुन कर उन्होंने मुझे अक्ष्म्य अप-
राधी कहा और मुझे इस घटना के लिये बिना दण्ड में
कमी मांगे क्षमा याचना का आदेश दिया |
शैवाजी- तो तुमने भोजन की व्यवस्था कैसे की,तल-
वार तो अभी तुम्हारे पास ही है |
मालव- जब मैंने मां से तलवार बेचने की अनुमति -
मांगी तो उन्होंने अनुमति देने से इन्कार कर दिया |
शिवाजी- क्यों !
मालव - उन्होंने कहा कि अपने स्वामी पर आक्रमण
करके तुम एक अपराध तो कर ही चुके हो | अब
यह दूसरा अपराध मैं तुम्हें नहीं करने दूंगी | हम
राष्ट्रभक्त मराठा हैं | यदि भोजन के लिये हम अपनी
तलवार किसी को बेचते हैं तो वह इसका प्रयोग -
किसी भी दशा में करने के लिये स्वतंत्र होगा  यह
तलवार राष्ट्र के विरूद्ध भी उठ सकेगी |हम भूखे रह
कर मर सकते हैं राष्ट्र द्रोह का अपराध अनजाने में
भी नहीं करना चाहेंगे |
शिवाजी- फिर तुमने क्या किया |
मालव- मैंने मां से पूछा मां मुझे अब तेरे लिये क्या
करना चाहिये !तो उसने कहा अपने वचन का पालन
करो | एक देश भक्त वीर मराठापुत्र की तरह शिवाजी
के समक्ष उपस्थित होकर प्रदत्त दण्ड की याचना करो |
शिवाजी- अब तुम क्या चाहते हो |
मालव- अक्षम्य अपराध का दण्ड स्वामी |
तानाजी- जानते हो जो अपराध तुमने किया है उसका
दण्ड प्राणदण्ड है |
मालव-जानता हूं सेनापति,सिर्फ मैं ही नहीं मेरी मां
भी जानती है कि इस अपराध का द्ण्ड फांसी है |
तानाजी- तुम यह दण्ड भुगतने को तैयार हो |
मालव- निःसन्देह सेनापति मैं एक वीर मराठासैनिक
का पुत्र हूं और उन्हीं के समान मराठा सेना मे भर्ती
होकर देश की सेवा करना चाह्ता था |एक सैनिक -
देश पर अपना जीवन कुर्बान करने के लिये ही भर्ती
होता है |मरने से डरता नहीं है |
शिवाजी- कया तुम दया की याचना नहीं करोगे !
मालव- नहीं महाराज |
शिवाजी - हम तुम्हारी वीरता,वचन पालन और -
निडरता से प्रभावित हैं| हम तुम्हें क्षमा भी कर
सकते हैं |
मालव- क्षमा मांग कर मैं मराठा कुल को कलंक
नहीं लगाना चाहता  मैं जानता था जो अपराध मैं
करने जा रहा हू उसका एकमात्र दण्ड फांसी है किन्तु
मैं भगवान से यह प्रार्थना कर रहा था कि मुझे -
सफलता न मिले | आप मुझे दण्ड दें महाराज |
शिवाजी- ताना जी क्या आप चाहते हैं कि मराठा
सेना  ऐसे वीर एवं निर्भीक सैनिक से वंचित हो |
तानाजी- हर्गिज नहीं महाराज |
शिवाजी (मालव से)-वीर बालक क्या तुम हमारे
अंग रक्षक दल में सम्मिलित होना चाहोगे !
मालव- क्या कह रहे हैं महाराज |
शिवाजी-हम सत्य कह रहे हैं मालव |हम चाहते हैं कि
तुम्हारी वीरता,निर्भीकता और वाक्पटुता राष्ट्र के काम
आये |
मालव- वीर सैनिक का पुत्र होने के कारण मेरी पहली
प्राथमिकता तो आपका सैनिक होना ही है | मैं आपके
पास पूर्व में आया ही सेना में भर्ती होने की अनुमति
लेने के लिये था |
शिवाजी- तानाजी मालव को हमारे विशेष अंगरक्षक -
दस्ते में प्रशिक्षण के लिये भेज दिया जाय | हम -
चाहते हैं कि प्रशिक्षण प्राप्त कर शीघ्र मालव हमारी सेवा
में आये |
मालव-मेरे द्ण्ड का क्या होगा महाराज |
शिवाजी- एक शहीद के परिवार का हम ख्याल नहीं रख
सके इस लिये हम तुम्हारे अपराध का मूल कारण स्वंय
को मानते हुये तुम्हारी फांसी की सजा समाप्त कर तुम्हें
यह सजा देते हैं कि तुम आजीवन हमारे जीवन की रक्षा
करो |
मालव- अपने प्रति इतने विश्वास के लिये हृदय से -
आभारी हूं महाराज | पहले मेरे प्राण जाएंगे तभी आप
पर कोई आंख उठ सकेगी | मैं यह वचन देते हुए आज
से और अभी से अपना सर्वस्व समर्पित करता हूं |
 (यह कह कर अपनी तलवार शिवाजी के चरणों में रख
देता है| शिवाजी उसकी तलवार उठा कर उसके म्यान
में डाल देते हैं और उसे गले से लगा लेते हैं|)
  सैनिक और तानाजी महाराज की जय हो का घोष -
करते हैं|
  ( परदा गिरता है )

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