Saturday, September 3, 2011


         समीक्षा
   बाल कविता संग्रह खेल-खेल में
                 -डा.राज सक्सेना
      नवागत बाल साहित्यकारों की भीड़ में
एक नया नाम -प्रीति प्रवीण खरे | समीक्षार्थ
पुस्तक प्राप्त हुई अग्रज महेश सक्सेना जी  के
माध्यम से इस आदेश के साथ कि सारे काम
छोड़ कर समीक्षा लिखी जाय | बड़े भाई  के
आदेश का अनुपालन परम कर्तव्य मान कर
पुस्तक खोलना गज़ब हो गया | पहला पृष्ठ
क्या खोला अंत तक पढ़ना मजबूरी बन गया
एक अर्से बाद इतनी साफ सुथरी रचनाओं से
आपूरित संग्रह को मन से पढ़्ने का अवसर
मिला | लगा अब बाल साहित्य़ के दुर्दिन
समाप्त होने का समय आ गया | बाल सा-
हित्य के तथाकथित सामन्तों के बाल साहि-
त्य की सीमा निर्धारण दुर्भेद्य प्राचीरों को तोड़
कर भी कोई नई सीमाओं का निर्धारण कर
ताजगी से भरपूर ऐसी बाल कवितायें भी दे
सकता है | जो पुराने समय के बच्चों से -
मीलों दूर आ चुके बच्चे की आज की आवाज
है, आज की सोच है और आज का ऐसा क-
थ्य है जिसे पुरानी सीमाओं को लांघने में भी
कोई गुरेज नहीं है | बाल मन की तरह जो
उसे अच्छा लगा निस्पृह भाव से परोस दिया |
बिना लाग लपेट के |
       शब्दों और साहित्यिक आवरण के
कोरे भाव से विरत रचनाकार बालकवियित्री
डा. प्रीति प्रवीण खरे अपने समर्पित भाव से
प्रस्तुतिकरण की नीति से एक मायावी और
क्रत्रिम मायाजाल से हटकर मोह्क और वा-
स्तविकता के धरातल पर खड़ी सचमुच मन-
मोहक और मन को छूलेने वाली सुरूचिपूर्ण
बाल रचनाये देने में सफल रही हैं |
       पहली कविता का ही उदाहरण कवि
मन की थाह देता है |जो बच्चे में कोई भारी
भरकम व्यक्तित्व की संरचना न कर आमतौर
पर समाज में पाए जाने वाले सिपाही,शिक्षक,
मसीहा,डाक्टर या कुल मिलाकर एक मदारी
की मनोरंजक छवि देखता है |शीर्षक कविता
खेल-खेल में पुस्तक की प्राण कविता है |जो
खेल खिलाते हुये बिना भारीभरकम उपदेशों के
पूरे जीवन का सार जीवन पद्यति का सारांश
बच्चे के अचेतन में सुरक्षित कर देने का सफल
प्रयास सिद्ध होता है | इतनी आसानी से बच्चे
के दिल और दिमाग पर जोर डाले बिना सबकुछ
अन्तर्मन तक सम्प्रेषित कर देना एक सिद्धहस्त
कविमन के लिये ही सम्भव था जिसकी सम्पूर्ति
में खरे जी पूर्ण सफल रही हैं |
       एक के बाद एक कविता सोद्देश्य मन्
को छूकर मस्तिष्क में प्रवेश करने में सफल -
रहती है |अन्तिम कविता सरल शब्दों में मानों
जीवन का पूर समयचक्र है |
       आवश्यकतानुसार सरल और कहीं-कहीं
आवश्यक होने पर भी कठिन शब्दों का प्रयोग -
बोलचाल के आम शब्दों के रूप में प्रयोगित होने
के कारण बिल्कुल नहीं खलते |
       भाषा और कविता का प्रवाह प्रशंसनीय
है | सब कुछ मिलाकर'खेल्-खेल में' एक बा-
लोपयोगी संग्रहणीय कविता संग्रह है |
       रचनाकार को कालजयी रचनाओं के लिये
हार्दिक बधाई और प्रकाशक धर्म (श्रेष्ठतम को जन-
साधारण  के सामने लाना ) निभाने के लिये साधु-
वाद | बालसाहित्य के क्षेत्र में इस पुस्तक का -
स्वागत होगा यह मेरा विश्वास है |
    धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
       मो- ०९४१०७१८७७७

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