Thursday, October 20, 2011

शोध पत्र
विषय: मध्यप्रदेष की महिला बाल साहित्यकारों का प्रदेष के बाल साहित्य में योगदान
बाल साहित्य वह साहित्य है, जो बालकों के लिए बोधगम्य, रुचिपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक साहित्य सुलभता से उपलब्ध हो। बाल साहित्य में महिला साहित्यकार सृजन करें तो निष्चित ही वह साहित्य बच्चों से जुड़ेगा और उनके दिल को छुएगा। मेरा मानना है कि - “साहित्य का सृजन महिलाएं करें, कवित्व उनके अन्तःकरण से फूटे, संगीत उनकी आत्मा गाए, चित्र उनके सपनों में रंगे जाएं तो फिर धरती पर श्रेष्ठता और सहृदयता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ेगा।”
यदि हम मध्यप्रदेष के बारे में जान लें तो मैं समझती हँू कि पाठकगण बाल साहित्य में मध्यप्रदेष की महिला बालसाहित्यकारों के योगदान को बेहतर रूप से समझ पायेंगे। आज भारत की कुल जनसंख्या 1.21 अरब पहुँच गई है। इसमें पुरुषों की संख्या 62.3 करोड़ है तथा महिलाओं की संख्या 58.64 करोड़ है। उत्तरप्रदेष जनसंख्या की दृष्टि से सबसे आगे है और लक्ष्यद्वीप सबसे पीछे है।
अब हम बात करते हैं मध्यप्रदेष की जनसंख्या की। मध्यप्रदेष की जनसंख्या की वृद्धि दर, जो कि 24 फीसदी से कम होकर 20.30 फीसदी हो गई है। मध्यप्रदेष की जनसंख्या आज 7,25,97,565 है, इसमें लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 930 महिलाएं हैं। यह म.प्र. की सांख्यिकीय जानकारी थी।
आज हमारे भारत देष में महिला साहित्यकारों की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक महिला साहित्यकारों ने इस देष की माटी में जन्म लिया और भारतीय साहित्य को विष्व पटल पर अंकित किया है। इनके साहित्य सृजन की खुषबू चहँु ओर व्याप्त है। इन महिला साहित्यकारों में बालसाहित्यकारों का विषेष महत्व है। बालसाहित्यकार और वो भी महिला, जैसे सोने पे सुहागा। यह मैं इसलिए नहीं कह रही हँू क्योंकि मैं स्वयं एक महिला हँू बल्कि मेरा मानना है कि बच्चे में साहित्य का संस्कार सबसे पहले माँ द्वारा ही रोपित किया जाता है। बच्चा जब षिषु रूप में माँ के आँचल में होता है, तब माँ ही मौखिक रूप से उसे भाषा और साहित्य का संस्कार देकर सिंचित और पल्लवित करती है। मेरी इस बात से संभवतः आज पूरा भारत देष सहमत होगा। 
बालसाहित्य लेखन की परम्परा उसके बाद में आती है। बाल साहित्य की परम्परा अत्यंत प्राचीन है। विष्णुदत्त शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों में पषु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को षिक्षित किया। कहानियाँ सुनना तो बच्चों की सबसे प्यारी आदत है। कहानियों के माध्यम से ही हम बच्चों को षिक्षा प्रदान करते हैं। बचपन में मैंने स्वयं अपनी दादी, नानी और माँ से कहानियाँ सुनी हैं। जहाँ बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं, वहाँ यह परंपरा आज भी फलीभूत हो रही है। इसकी गवाह स्वयं मेरी माँ और उनका पोता है। मेरी माँ अपने पोते को कहानी सुनाते-सुनाते कभी परियों के देष ले जाती हैं, तो कभी सत्य जैसी यथार्थवादी बातें सिखाती हैं। साहस, बलिदान, त्याग और परिश्रम ऐसे गुण हैं, जिसके आधार पर एक व्यक्ति आगे बढ़ता है और ये सब गुण उसे अपनी माँ से ही प्राप्त होते हैं। बच्चे का अधिक से अधिक समय तो माँ के साथ ही गुज़रता है, सीखने का पहला पाठ माँ से ही प्रारंभ होता है, क्योंकि जो हाथ पालने में बच्चे को झुलाते हैं वे ही उसे सारी दुनिया की जानकारी देते हैं। 
मध्यप्रदेष में महिला बालसाहित्यकारों का बहुत योगदान रहा है। उनकी कालजयी रचना ‘झाँसी की रानी’ में जहाँ एक ओर महारानी लक्ष्मीबाई की जीवन गाथा का गौरवपूर्ण वर्णन है, वहीं दूसरी ओर एक नन्हें से बच्चे की उन कोमल भावनाओं का वर्णन है जिसमें बालगोपाल कन्हैया का प्रभाव उसके बालमन पर स्पष्ट दिखाई देता है। सुभद्राजी द्वारा रचित इन रचनाओं की कुछ पक्तियाँ इस प्रकार हैं -
“बुंदेले हरबालों के मुख हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी....।”
तथा
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे....।
आज हमारे देष का हर वर्ग इन पक्तियों से वाकि़फ है। जीहाँ! इन पक्तियों की रचयिता श्रीमती सुभद्रा कुमारी चैहान के बारे में मैं बात कर रही हँू। 16 अगस्त 1904 में जन्मी सुभद्राजी बाल्यकाल से ही कविताएँ रचती थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। आपके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाषित हुए हैं, लेकिन आपकी प्रसिद्धि “झाँसी की रानी” कविता के कारण है। आप राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं। किन्तु आपने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातानाएँ सहने के पष्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया है। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है। यह वह कारण है कि आपकी रचनाएँ सादगीपूर्ण एवं हृदयग्राही हैं। 
आप सोचेंगे कि मैं मध्यप्रदेष में क्यों सुभद्राजी को शामिल कर रही हँू, वो इसलिए कि आपकी कर्मभूमि जबलपुर मध्यप्रदेष ही रही है। सन् 1919 में खण्डवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाहोपरांत आप जबलपुर आ गई थीं। सन् 1921 में गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली आप प्रथम महिला थीं। सुभद्राजी दो बार जेल भी गई थीं।  सुभद्रा कुमारी चैहान की जीवनी इनकी पुत्री सुधा चैहान ने “मिला तेज से तेज” नामक पुस्तक में लिखी है। 
इसे हँस प्रकाषन, इलाहाबाद ने प्रकाषित किया है। सुभद्राजी एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम सेनानी भी थीं। मध्यप्रदेष की डाॅ. मंगला अनुज ने सुभद्रा कुमारी चैहानजी पर एक पुस्तक लिखी है। जो उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाष डालती है। इसके साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है। 
सुभद्रा कुमारी चैहान की कृतियों में कहानी संग्रह (बिखरे मोती, उन्मादिनी, सीधे-सीधे चित्र) इसके अलावा कविता संग्रह मुकुल की त्रिधारा है। सुभद्रा कुमारी चैहान के साहित्यिक और राष्ट्रप्रेम की भावना के योगदान के लिए आपको भारतीय तटरक्षक सेना ने 22 अप्रैल 2006 को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चैहान नाम दिया है।  इसके अलावा भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त सन् 1976 को सुभद्रा कुमारी चैहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक टिकट भी जारी किया है। आप जैसी महान विभूति से हम सदैव प्रेरणा और मार्गदर्षन लेते रहेंगे।
बाल साहित्य का उद्देष्य बाल पाठकों का मनोरंजन करना ही नहीं अपितु उन्हें आज के जीवन की सच्चाईयों से परिचित कराना भी है। आज के बच्चे कल भारत की बागडोर संभालेंगे, उसी के अनुसार उनका चरित्र निर्माण भी होना चाहिए। यह जि़म्मेदारी भी बालसाहित्यकारों की ही है। कहानियों के द्वारा हम बच्चों को षिक्षा प्रदान करके उनका चरित्र निर्माण कर सकते हैं, तभी तो आज के ये नौनिहाल कल बड़े होकर जीवन के संघर्षों से जूझ सकेंगे। इन बच्चों को बड़े होकर अंतरिक्ष की यात्रा करना है, चाँद पर जाना है और दूसरे ग्रहों पर भी अपना परचम लहराना है। बाल साहित्य की लेखिकाओं को बाल मनोविज्ञान की पूरी जानकारी होना मैं ज़रूरी मानती हँू। वो इसलिए कि बाल मनोविज्ञान की समझ रखने के कारण ही बच्चों के लिए कहानी, कविता या बाल उपन्यास लिखा जा सकता है। बच्चों का मन मक्खन की तरह नरम और निर्मल होता है, कहानियों और कविताओं के माध्यम से हम उनके मन को वह शक्ति प्रदान कर सकते हैं, जो उनके मन के भीतर जाकर संस्कार, समर्पण, सद्भावना और भारतीय संस्कृति के तत्व बिठा सकते हैं।
ऐसी ही सोच,समझ और भावना के साथ मध्यप्रदेष की महिला बालसाहित्यकारों ने बाल साहित्य सृजन में विषेष योगदान देकर बाल साहित्य को गरिमा प्रदान की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें “द संडे इंडियन” के सितम्बर अंक में मिलता है। “देष की श्रेष्ठ 25 महिला रचनाकारों में से कम से कम चार तो यहीं से हैं, और कई अन्य उस सूची में शामिल होने की हकदार दावेदार भी। श्रेष्ठ 111 महिला रचनाकारों में शुमार होने के लिए हमें सर्वाधिक नाम मध्यप्रदेष से ही मिले।”  हिन्दी साहित्यकार के रूप में मालती जोषी का नाम हिन्दी साहित्य पटल पर मध्यप्रदेष की अग्रणी लेखिकाओं में है। श्रीमती जोषी ने 60 के दषक में बाल साहित्य का सृजन कर राजेष प्रकाषन दिल्ली से प्रकाषित कहानी संग्रह ‘परीक्षा पुरस्कार’, ‘स्नेह के स्वर’ लिखा। जिसमें अपने बच्चों की नित नई जिज्ञासाओं, भावनाओं और षिक्षा को ध्यान में रखकर अपने बच्चों के लिए ही बालसाहित्य सृजन की शुरुआत की। इसी दौरान पराग, धर्मयुग पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाओं का प्रकाषन होता रहा। बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी संग्रह “छोटा सा मन बड़ा सा दुःख” हांलाकि छोटे बच्चों के लिए नहीं है लेकिन यह संग्रह आम पाठक वर्ग के लिए है जिसे पढ़कर वह बच्चों की भावनाओं को समझकर उनका पालन-पोषण कर सकें। आपको अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें अक्षरादित्य सम्मान, मध्यप्रदेष हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष 1998 में भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है। इसके अलावा इस वर्ष 2011 में आपको ओजस्विनी, दुष्यंत कुमार सम्मान एवं ऊषा देवी मित्रा सम्मान से भी अलंकृत किया गया है।
मध्यप्रदेष के बालसाहित्य में मालती बसंत का नाम न आए तो मध्यप्रदेष के महिला बालसाहित्यकारों की चर्चा अधूरी मानी जाएगी। वर्तमान में श्रीमती मालती बसंत भोपाल के शासकीय शाला में प्राचार्य के पद पर कार्यरत् हैं। मालतीजी की अब तक बालसाहित्य की प्रकाषित कृतियों में 11 बाल कहानी संग्रह एवं 2 उपन्यास हैं तथा आपका एक काव्य संग्रह शीघ्र ही बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध होगा। आपकी प्रकाषित पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है:-
चंदा की शरारत, तोतों की दुनिया, नईदिषा, सार्थक जीवन, षिक्षाप्रद बालकथा, मनोरंजक बालकथायें, बाल मनोवैज्ञानिक कहानियाँ, माँ की कहानी, बाल विज्ञान कथायें, सच्चा धर्म सभी कहानी संग्रह हैं। इसके अलावा दादा की सैर एवं राहुल दो उपन्यास संग्रह हैं।
मालती बसंतजी को प्राप्त सम्मान और पुरस्कारों की सूची भी उनकी कृतियों की तरह लम्बी है, लेकिन मैं यहाँ कुछ मुख्य सम्मानों का उल्लेख कर रही हँू, जो इस प्रकार हैं - हरिप्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य सम्मान (1999), भारतेन्दु हरिष्चन्द्र सूचना प्रसारण विभाग, भारत शासन दिल्ली (2000), लक्ष्मण प्रसाद अग्रवाल बाल साहित्य संवर्धन सम्मान, मुरादाबाद, रविषंकर शुक्ल साहित्य अकादमी, म.प्र. शासन (2004), देवी अहिल्याबाई बाल साहित्य सृजन सम्मान, इंदौर (2006) चन्द्रकान्त जायसवाल बाल साहित्य सम्मान, म.प्र. लेखक संघ, भोपाल, राम बिटोली सक्सेना सम्मान, बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल, (2009)। इनके अलावा राष्ट्रीय बाल भवन, दिल्ली मंे भागीदारी (2006), बाल साहित्य समीक्षा आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित अक्टूबर 2004 का अंक कानपुर उ.प्र. द्वारा प्रकाषित। आपके साहित्य सृजन और बाल साहित्य के योगदान के कारण आपके ऊपर बरकतउल्ला वि.वि., भोपाल से सन 2006, एम.ए. पूर्वार्ध में कीर्ति जुल्मे द्वारा लघुषोध प्रबंध लिखा गया। मालती बसंत का साहित्य एक अनुषीलन विषय पर शोध कार्य, कुमारी मंजू पटेल द्वारा देवी अहिल्या वि.वि. से किया गया।  मालतीजी ने “स्वतंत्रता के पष्चात बाल उपन्यास का समीक्षात्मक अध्ययन” विषय पर सन 2010 में अपना शोध कार्य पूर्ण किया है।
आपकी रचनाऐं स्नेह, समझ-झरोखा, बाल प्रहरी, बाल वाटिका, अपना बचपन, देवपुत्र तथा दैनिक भास्कर, नईदुनिया में बच्चों के स्तंभ में निरंतर प्रकाषित होती रहती हैं। इसके अलावा देष के सभी बाल पत्र-पत्रिकाओं एवं बाल अखबारों में बच्चे आपकी रचनाऐं पढ़ते रहते हैं।
बाल साहित्य की दषा और दिषा के बारे में भी लेखिका का दृष्टिकोण स्पष्ट है। उनका मानना है कि आज के बच्चे परिपक्व हैं, साथ ही वे ऐसे अभिमन्यु हैं जिन्हें आज बाल साहित्य दिषा दे सकता है। वर्तमान में लिखे जा रहे बाल साहित्य को वह पर्याप्त मानती हैं और यह युग उनके अनुसार बाल साहित्य का स्वर्णिम युग है। बच्चों की षिक्षाप्रद बाल कथाओं में आपने ‘पष्चाताप के आँसू’ नामक कहानी में उन्होंने एक राजा के पष्चाताप का वर्णन किया है, तो वहीं दूसरी ओर बोलते पत्थर नाम कहानी में बच्चों को घमंड न करने का पाठ पढ़ाया है। इन षिक्षाप्रद बालकथाओं को पढ़कर बच्चे षिक्षित और संस्कारित हो रहे हैं। 
बाल साहित्य में मध्यप्रदेष लेखिका संघ की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमती उषा जायसवाल का योगदान भी विषेष है। आप अध्यापिका होने के कारण बच्चों के बीच रहकर बाल मनोविज्ञान को जानकर और समझकर साथ ही बी.ए. की कक्षा में षिक्षा मनोविज्ञान विषय के बारे में गहन अध्ययन करती रही हैं। इसी कारण आपका बाल साहित्य लेखन की ओर रुझान बढ़ा। आप 60 के दषक से निरंतर लिख रही हैं। आपकी रचनाएं समझ-झरोखा तथा समाचार पत्रों में प्रकाषित होने के साथ ही भोपाल से निकलने वाली स्नेह मासिक बाल पत्रिका तथा इंदौर से प्रकाषित नईदुनिया अखबार में प्रकाषित होती रहती हैं। एनसीईआरटी प्राइमरी षिक्षक तथा एससीआरटी की पलाष में शैक्षणिक बाल साहित्य से जुड़े लेख एवं नवाचार के खेल-खेल में प्रकाषित हुई हैं। 6 वर्षों से बाल मासिक अखबार “अपना बचपन” एवं बाल चेतना का समाचार पत्र में निरंतर एक स्तंभ - “मध्यप्रदेष के गौरवषाली  किले”, के माध्यम से उषाजी ने बाल पाठकों हर अंक में एक किले का परिचय कराया है। आपकी प्रकाषित कृतियों में ‘पेड़ की महानता’, ‘चमत्कारी सिक्का’, ‘नारियल का गर्व’, ‘जीवन में स्वच्छता का महत्व’ हैं। ये चारों एक साथ वर्ष 2004 में प्रकाषित हुई हैं। उषाजी के प्रेरणास्रोत उनके जीवनसाथी श्री जायसवाल का लेखन एवं प्रकाषन में पूर्ण योगदान रहता है। आपको मिले सम्मानों की सूची बहुत लंबी है, जिनमें इंद्रा बहादुर खरे स्मृति सम्मान (वर्ष 2005), बालमित्र नर्मदा दिव्य अलंकरण, खण्डवा, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर तथा सहयोगी संस्था के रूप में बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध संस्थान केन्द्र के रूप में सारस्वत सम्मान (वर्ष 2010) प्राप्त हुआ। भोपाल से प्रकाषित मासिक बाल पत्रिका ‘स्नेह’ में प्रकाषित ‘और नारियल का गर्व टूट गया’  कहानी में उषाजी ने बच्चों को षिक्षा दी है कि “संसार में कोई चीज न छोटी है न बड़ी। हमें अपने बड़े होने का अहंकार कभी नहीं करना चाहिए।” 
बहुभाषाविद् डाॅ. विनय राजाराम कला, संस्कृति, दर्षन एवं भाषा मर्मज्ञ होने के साथ-साथ हिन्दी बाल साहित्य में गहरी पैठ रखती हैं। मातृभाषा उडि़या होने के बावजूद हिन्दी साहित्य में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1952 में भुवनेष्वर में जन्मीं डाॅ. विनय ने हिन्दी में पी.एच.डी की। उडि़या, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, ग्रीक, डिंगल एवं मालवी भाषा का भी उन्हें अच्छा ज्ञान है। नानी की कहानियाँ, अटकन मटकन (कविता संग्रह), बौना बरगद उनकी कृतियाँ हंै। बौना बरगद रचना के माध्यम से विनयजी ने बरगद की व्यथा का सटीक चित्रण किया है। आप भोपाल स्थित सत्यसांई काॅलेज में हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर रहते हुए निरंतर हिन्दी साहित्य की सेवा में सक्रीय हैं। डाॅ. विनय राजारामजी को भी 21वीं सदी की श्रेष्ठ 111 महिला रचनाकारों में शामिल किया गया है। 
इन्हीं भावनाओं को चरितार्थ करती हैं भोपाल की लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं बाल साहित्यकार श्रीमती आषा शर्मा, जो कि उम्र के इस पड़ाव में भी बच्चों के समान सरल और सहज हैं। बच्चों को देषप्रेम का संदेष देती बाल कविता संग्रह ‘उठो बहादुर वीर सपूतों’ ‘ऊँचे षिखर पर जाना है’, ‘टिक-टिक, टिक-टिक चली घड़ी’, ‘मम्मी मैं कब बड़ा बनूंगा’ के अलावा बाल कहानियाँ ‘पचास पेड़’, ‘नया बुधवार’ हैं। आषाजी को कला मन्दिर द्वारा पवैया पुरस्कार 2001, निर्मलादेवी स्मृति पुरस्कार 2003, गाजियाबाद, राष्ट्र गौरव सम्मान, खण्डवा, संस्कार भारती द्वारा सम्मान 2004, कुसुम कुमारी जैन स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य सम्मान 2010, श्रीमती सुमन चतुर्वेदी श्रेष्ठ साधना सम्मान 2010 प्राप्त हो चुके हैं। भोपाल लेखक संघ द्वारा बाल साहित्य सम्मान 2011, के लिए आपके नाम की घोषणा भी हो चुकी है। आषाजी अपने आत्मकथ्य के प्रति पूर्ण समर्पित हैं, जो इस प्रकार है -
“जहाँ गद्य नहीं, जहा पद्य नहीं, जहा छन्द या अलंकार नहीं,
ऐसा जीवन पषु सा होगा, यह जीवन मुझे स्वीकार नहीं।
महिला बालसाहित्यकार द्वारा बालमन को प्रदर्षित करती आषाजी की यह पक्तियाँ बेटे द्वारा माँ के लिए कही गई हैं जो इस प्रकार हैं - 
“अम्मा कैसे कर लेती हो घर के सारे काम?
नहीं चाहती क्या तुम करना थोड़ा भी आराम?...........” 
मध्यप्रदेष मण्डला की बालसाहित्कार सावत्री जगदीष का जन्म 25 जनवरी 1945 को हुआ। सावित्रीजी सेवानिवृत्त उच्च श्रेणी षिक्षिका के साथ स्वतंत्र लेखन एवं समाज सेवा में अग्रसर हैं। आपकी अब तक बालसाहित्य में प्रकाषित स्वर व्यंजन गीतमाला, बालगीत, आओ गीत गाएँ एवं गीतों की कहानी काव्य-गीत संग्रह हैं। इसके अलावा कहानी संग्रह - सबक, लाल, गाँव की सीख एवं बालषक्ति शामिल हैं। 
आपको प्रदेष एवं देष की डेढ़ दर्जन साहित्यिक संस्थाओं द्वारा साहित्यिक योगदान हेतु अलंकृत एवं सम्मानित किया जा चुका है।   
आसमान नीला क्यों है?, सुबह का सूरज लाल क्यों दिखता है? और विज्ञान में हो रहे नित नए अविष्कारों के बारे में जानने की जिज्ञासा बच्चों के मन में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। इन्हीं वैज्ञानिक आविष्कारों के बारे में बच्चों को जानकारी देती हैं सुलभा माकोड़े का कहानी संग्रह-सुबह का सूरज, विज्ञान आजतक, विज्ञान हमारे आसपास। दैनिक जीवन की घटनाओं का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देते हुए सुलभजी की रचनाएं बच्चों को लेख और चित्रों के द्वारा आसानी से ग्राह्य होती हैं। वर्तमान में आप मा.षि.मं., भोपाल मध्यप्रदेष में सहायक प्राध्यापक हैं। 
6 दिसम्बर 1957 को जन्मी श्रीमती कुमकुम गुप्ता पूर्व सहायक अध्यापिका रह चुकी हैं। “बच्चों के बोल” नामक कविता संग्रह का प्रकाषन सन 2000 में भोपाल के करवट प्रकाषन ने किया। आपकी कविताओं में बाल सुलभ मन की मनमोहक भावभंगिमाओं का सजीव चित्रण होता है। बच्चों की अकांक्षाओं, विचारों के विविध रंग यथा:- सूरज, चिडि़या, होली, राखी कविताओं में शब्दों की कूची से मनोहारी चित्र अंकित किए गए हैं। आज़ादी पर्व पर लिखी गई कविता की पक्तियाँ इस प्रकार हैं:-
सुख वैभव पाकर सचमुच, हम भूले वीरों के बलिदान,
निजी स्वार्थ के घेरे में फँस, भूले भारत माँ का मान। 
आपकी प्रकाषित कृतियों में बालगीत संग्रह, बच्चों के बोल, शब्द बन गए सेतु (कविता संग्रह) हैं। आपका रचना सृजन निरंतर जारी है।
27 अक्टूबर 1954 पिपरिया, जिला होषंगाबाद में जन्मी श्रीमती इंदु पाराषर रसायन ष्षास्त्र स्नातकोत्तर, बीएड, एवं संस्कृत-को विद हैं। आपको राज्यस्तरीय श्रेष्ठ नवाचारी षिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। विज्ञान षिक्षक एवं व्याख्याता रसायन शास्त्र, नवाचार एवं साहित्य सृजन-विज्ञान षिक्षक के रूप में कार्य करते हुए, विज्ञान षिक्षण को सरल बनाने हेतु विज्ञान विषय को प्राथमिक से हाई स्कूल तक की कक्षाओं के लिए अनेकों अभिनव षिक्षण सामग्रियों का सृजन किया है। आपने कविताएं, नाटक लिखकर उनका मंचन करवाया, नीति कथाएं, काव्य रचनाएं, देषभक्ति गीत आदि रचनाओं का प्रकाषन एवं प्रसारण पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाषवाणी इंदौर से हुआ है। आपकी “कविता में विज्ञान”  नामक 6 पुस्तिकाओं का सेट प्रकाषित हो चुका है। “बच्चों देष तुम्हारा” नामक पुस्तिकाएं बालकों को देष की संस्कृति, सभ्यता व जीवन मूल्यों के बारे में अवगत कराते हुए उन्हें शहीदों के बलिदानों की याद दिलाते हुए आज़ादी का मोल भी बताती हैं।
नन्हें “पलछिन” बालगीत संग्रह की रचनाकार कुलतार कौर कक्कर म.प्र. शासन में प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत्तमान हैं। कविता, लेख, लघु कथा विधाओं में बच्चों के लिए साहित्य सृजन कर रही हैं। आपकी प्रकाषित कृतियों में - दषमेष दर्षन, स्वामी विवेकानंद (दोनों खण्ड काव्य), प्रतिबिम्ब, अमितोज सुमन (दोनों काव्य संग्रह) हैं। संगत संसार में आपकी कविताओं का नियमित प्रकाषन होता रहता है। कुलतार कौरजी को कला मन्दिर भोपाल, म.प्र. द्वारा माहेष्वरी सम्मान (2007) से सम्मानित किया जा चुका है। बचपन के सौन्दर्य की प्रत्येक कल्पना अपनी पराकाष्ठा को छू लेती है। कुछ ऐसे ही भोले, रंगीले, रसीले, मधुरिम विचारों से अनुप्राणित होकर कुलतारजी ने इस छोटी सी पुस्तक की रचना कर डाली है। कैलेण्डर के महत्व को दर्षाते हुए आपकी कविता की पक्तियाँ हैं-
‘घर में टँगा हुआ कैलेण्डर, हमको डेट बताता है।
कैलेण्डर हमारा तुम्हारा सदा सदा का नाता है।’
हर साल बदल जाता है, फिर यह नया रूप ले आता है,
इसके साथ ही जीवन चलता, नई राह दिखलाता है। 
जुन्नारदेव, जिला-छिंदवाड़ा म.प्र. में जन्मी श्रीमती श्यामा गुप्ता दर्षना, बीए, बीटीआई, संस्कृत विषारद हैं। एक बाल साहित्कार के रूप में आपके दो कविता संग्रह प्रकाषित हो चुके हैं। उन संग्रहों के द्वारा आपको ख्याति भी अर्जित हुई है। “हरियाली की ध्वजा फहरायें” बाल कविता संग्रह की सभी कविताएं ग्लोबल वार्मिंग की चिंता करती हैं। मानव के अस्तित्व के लिए श्यामाजी पर्यावरण का स्वच्छ एवं संतुलित होना आवष्यक मानती हैं। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के संबंध में आपकी यह कृति बच्चों का ज्ञानार्जन कर रही है। आपकी कविता की पक्तियाँ इस प्रकार हैं -
‘अहा! फलों से सजता मौसम, हर मौसम के फल हम पाते।
आम, पपीता, जाम कभी, छककर हम अंगूर भी खाते। ’
श्यामाजी को हिन्दी जगत के रत्न सम्मान आलमपुर, भिण्ड, म.प्र., साहित्य भूषण माहेष्वरी सम्मान, भोपाल (2009) तथा श्रीमती रुक्मणी देवी चैधरी बाल साहित्य पुरस्कार                                                                                 मिल चुका है।
बच्चों के षिक्षाप्रद नाटक लिखकर श्रीमती साधना श्रीवास्तव अपने विचारों के द्वारा उनकी बाल सुलभ क्रीड़ाएं, बाल मनोविज्ञान को दर्षाती हैं। आपका जन्म 15 फरवरी 1959 को भोपाल म.प्र. में हुआ। आप केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2 में षिक्षिका के पद पर पदस्थ हैं। आपको नाटक लेखन में पुरस्कृत भी किया जा चुका है। साधनाजी के बारे में प्रसिद्ध नाटककार प्रो. सतीष मेहता कहते हैं कि - ‘नाटकों द्वारा उन्होंने बच्चों को अनेक उपयोगी संदेष दिए हैं, जो हमारे समाज के लिए हितकारी हैं। प्रदूषित पर्यावरण, वनों का संरक्षण, स्वास्थ्य, रक्षा, सफाई, महिला सषक्तिकरण, संयुक्त परिवार, बुजुर्गों का सम्मान, राजभाषा हिन्दी की अवहेलना, वगैरह विषयों को समेट कर साधना जी ने बच्चों को ऐसा मार्गदर्षन दिया है, जो नई पीढ़ी को प्रषिक्षित कर भविष्य को उज्जवल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। नाटकों की भाषा और तेवर बाल सुलभ हैं और आसानी से बच्चों को लुभाने में सक्षम हैं। विद्यालयों एवं बाल संस्थाओं में इन नाटकों का मंचन निःसंदेह समाज को लाभान्वित करेगा। ’
बालकथा संग्रह “बँूद जो बन गई मोती” की लेखिका रंजना फतेपुरकर, हिन्दी साहित्य में एमए हैं। वर्तमान में आप विजया बैंक इंदौर में विषेष सहायक के पद पर कार्यरत् हैं। टिमटिम तारे (बाल कविता संग्रह) में बच्चों के मासूम चेहरों की मुस्कान से प्रेरित है। बच्चों की नज़रों से उनकी दुनिया देखने की कोषिष तथा “इन्द्रधनुष के झूले हैं”, ‘वर्षा की रिमझिम फुहारें हैं’, ‘रंग बिरंगे झूमते फूल हैं’, नई सुबह में चहकती गौरैया है, तथा ‘सपनों के संसार में खेलती परियाँ’ जैसी कविताएँ बच्चों के चेहरों पर मुस्कानों के फूल खिलाने की कामना से लिखी गई हैं। आपकी रचनाएँ आकाषवाणी इन्दौर से भी प्रसारित हुई हैं। आपकी कविताओं की पक्तियाँ इस प्रकार हैं:-
‘मैंने मुस्कान को मोर पँखों में तलाषा वो रंगो में छुप गई
पर जब मैंने रोते बच्चे को हँसाया, मेरी खोई मुस्कान मुझे मिल गई’ 
स्नेहलता सोनटके द्वारा रचित ‘नानी का गाँव’ में आपने ‘सूरज देखा’, ‘नन्हें ने चाँद देखा’, ‘छुक छुक’, ‘बचपन की बातें’, ‘षाला’, ‘गिनती’, ‘पेंसिल’, ‘तिरंगा झंडा’, जैसी रोचक और बच्चों के बाल मनोविज्ञान, देषप्रेम से जुड़ी रचनाएं हैं। वह मानती हैं कि नन्हें बच्चों को जानवरों, पौधों की जानकारी देने का प्रयास इस संग्रह के माध्यम से कर रही हैं। आपकी प्रकाषित कृतियों में ‘सोने का कछुआ, पुराना खंडहर (बालकथा संग्रह)’, ‘वेलेन्टाईन डे (कविता संग्रह)’, ‘गीत गुनगुनाते चलो (गीत संकलन)’, ‘कलम का डाॅटकाॅम (काव्य संकलन)’ हैं। सन 2003 में आपको कलम का गौरव सम्मान, भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान, इलाहाबाद से साहित्य षिरोमणि की उपाधि प्राप्त है। ‘पाँच परियाँ ’ कहानी के माध्यम से स्नेहलताजी ने बच्चों को स्वपनलोक की सैर कराकर आनंदित किया है।
भूपिंदर कौर भी भोपाल के बालसाहित्य में एक चिर परिचित नाम हैं। स्नेह बाल मासिक पत्रिका के नवम्बर-दिसम्बर 2002 में प्रकाषित ‘आज़ादी’ नामक कहानी में टिल्लू एवं टाॅमी के संवादों के द्वारा बच्चों को आज़ादी का महत्व समझाया है। कटनी जिला की बालसाहित्यकार श्रीमती सुधा गुप्ता ‘अमृता’ का मध्यप्रदेष के बाल साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपके कविता संग्रह ‘ताकि बची रहे हरियाली’ जिसमें 55 गीतों का समावेष है। आपको बाल कल्याण केन्द्र, कानपुर, बाल साहित्य शोध केन्द्र, इंदौर एवं बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 2010 का सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया। 
हिन्दी साहित्य में स्वर्णपदक प्राप्त इंदौर (म.प्र.) निवासी डाॅ. पुष्पारानी गर्ग ने राष्ट्रकवि ‘रामधारी सिंह दिनकर’ के सम्पूर्ण गद्य साहित्य पर शोधकार्य किया है। आपका बालगीत संग्रह ‘आओ मिलकर गाएँ हम’ जीवन के सबसे मधुर एवं रोचक क्षणों की मीठी-मीठी खुष्बुओं से संजोया है। आप लिखते समय बच्चों की तरह गुगगुनाकर चिन्तामुक्त रहती हैं। वर्ष 2003 में आपको ‘महादेवी वर्मा अलंकरण’मथुरा, भारती भूषण सम्मान, इलाहाबाद (2006), स्व. अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण, सागर (2006) से भी सम्मानित किया गया है। 
कम्प्यूटर के महत्व को बताती श्रीमती गर्ग की कविता इस प्रकार है:-
कीबोर्ड पर टाइप करके दूर दूर ईमेल भेजता,
देष विदेष के दोस्तों से चैटिंग भी करवाता है। 
आईसेक्ट विष्वविद्यालय में हिन्दी की विभागाध्यक्ष डाॅ. लता अग्रवाल की प्रकाषित पुस्तक ‘मुस्कान’ (काव्य संग्रह, 2007), आओ जाने भाषा (2009), खेल-खेल में भाषा (2010), असर आपका (2011) हैं। आपको साहित्य के क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान हेतु ग्रोवर सम्मान, षिक्षा रष्मि सम्मान, होषंगाबाद, बाल कल्याण एवं शोध संस्थान भोपाल द्वारा षिक्षक सम्मान भी प्राप्त हैं। वर्तमान बालसाहित्य को लेकर आपका मानना है कि चिन्तन की आवष्यकता है।
बाल चन्दन यात्रा (बाल कहानी संग्रह) और पावन बचपन बाल कविता संग्रह की रचियता श्रीमती मुक्ता चंदानी हिन्दी एवं सिन्धी दोनों भाषाओं में समान रूप से लिखकर बच्चों को कविता के माध्यम से संस्कार एवं षिक्षा प्रदान कर रही हैं। वह बच्चों को ईष्वर की सबसे सुन्दर रचना मानती हैं तथा बच्चों के क्रिया कलापों से अपने बचपन की यादें भी साझा करती हैं।
कहानी संग्रह ‘करामाती गधा’ के माध्यम से श्रीमती सरल जैन भी म.प्र. के बाल साहित्य क्षेत्र में नन्हें-मुन्ने पाठकों को इन कहानियों के द्वारा प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर नसीहत देती नज़र आई हैं। डाॅ. माया दुबे का रुझान अब बाल साहित्य की ओर हो रहा है जो उनके बाल काव्य संग्रह ‘बाल विहंग’ में परिलक्षित होता है। इसी कड़ी में राधारानी चैहान का उल्लेख भी आवष्यक है क्योंकि आप भी बच्चों के लिए आयोजित एनसीईआरटी, नईदिल्ली द्वारा शैक्षणिक कार्यक्रमों में अग्रसर रही हैं, आपकी प्रकाषनाधीन कृतियों में बालगीत संग्रह एवं बाल कहानी संग्रह हैं। बाल साहित्यकार मंजू पाण्डे द्वारा रचित उनका बाल कहानी संग्रह ‘मीनू’ में हँसी का सस्पेंस और अपने पैरों पर कहानियाँ बाल पाठकों द्वारा सराही गईं।
बालसाहित्यकार अंषु शुक्ल प्रसिद्ध बालसाहित्यकार डाॅ. परषुराम शुक्ल की पुत्री हैं। आपको साहित्य के संस्कार बचपन से ही मिले हैं, आपने दतिया में षिक्षा प्राप्त करते हुए कविताएँ लिखना प्रारंभ कर दिया था। अंषु की प्रकाषित कृतियां - तितली रानी तितली रानी, नाचे मोर मचाए शोर हैं। ‘भारत को भारत रहने दो’ लिखकर चर्चित हुई गरिमा अग्रवाल भी अपनी लेखनी के द्वारा शौर्य, साहस और ओजस्वी रचनाओं के द्वारा बाल पाठकों प्रेरित करती हैं। दिव्या प्रसाद द्वारा रचित कविता संग्रह ‘बँूद’ में आपने समाज एवं व्यक्ति के प्रति संवेदनषील भाव को व्यक्त किया है। इसी कड़ी में कृति पाठक की रचना ‘ऊँचाई’ भी प्रकृति और बालमन आदि विषयों पर बच्चों को सोचने के लिए मजबूर करती है।
महाकाल की नगरी उज्जैन निवासी डाॅ. पुष्पा चैरसिया भी बच्चों के लिए रोचक बाल साहित्य की रचना कर रही हैं। आप बाल मनोभावों को क़ाग़ज़ पर उकेर कर बालमन से जुड़े रहकर अपनी रचनाओं को बच्चों के लिए तैयार करती हैं।
बाल साहित्य के क्षेत्र में ऐसी कई साहित्यकार हैं जिनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाषित होती रहती हैं तथा उनकी पांडुलिपियाँ भी तैयार हैं लेकिन अभी तक पुस्तक के रूप में प्रकाषित नहीं हुई हैं। लेकिन मेरा मानना है कि वे भी बालसाहित्यकारों की सूची में शामिल हैं, इसी कड़ी के अन्तर्गत नीलम कुलश्रेष्ठ की रचनाएं भी बच्चों को प्रेरित और मार्गदर्षित करती हैं। नीलमजी को कादम्बिनी मतांतर में सन 2007 एवं 2009 के सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हैं। सिविल लाईन दतिया मध्यप्रदेष निवासी इतिषा दांगी बाल साहित्य में नवीन हस्ताक्षर के रूप में उभर रही हैं।
शोधपत्र लिखते समय स्वयं के विषय में लिख पाना अत्यंत कठिन होता है, लेकिन मेरी भरसक कोषिष रहेगी कि मध्यप्रदेष के बाल साहित्य में अपने साहित्यिक योगदान का संक्षेप में वर्णन कर सकूं। मेरा लेखन कार्य तो विगत् कई वर्षों से चल रहा है लेकिन बाल साहित्य के पटल पर मेरे प्रथम हस्ताक्षर के रूप में मेरी कृति ‘खेल खेल में’  ने मुझे एक पहचान दिलाई। इस काव्य संग्रह की पर्यावरण से प्रेरित कविता ‘पेड़’ को पष्चिम बंगाल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसके अलावा दिनांक 25/09/2011 को सलुम्बर, राजस्थान में आयोजित राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन में ‘मीडिया, समाज और बालसाहित्य’ विषय पर अपने शोधपत्र का वाचन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, साथ ही बाल साहित्य केन्द्र, कानपुर द्वारा ‘बाल साहित्य साधना सम्मान’ भी प्रदान किया गया।
बाल साहित्य और रंगमंच के प्रति सर्जनात्मक लगाव पैदा करने के लिए मध्यप्रदेष राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन भोपाल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वर्ष 2011 का श्रीमती सतीष बालकृष्ण ओबेराय महिला सम्मान, दिनांक 2 अक्टूबर 2011 को मध्यप्रदेष के नवनियुक्त महामहिम राज्यपाल श्री रामनरेष यादव के करकमलों द्वारा प्राप्त हुआ।
लेखन के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया को बाल साहित्य की अभिव्यक्ति के लिए माध्यम बनाया है। जिसके अंतर्गत मैंने देष के सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकारों की भेंटवार्ता को फिल्मांकित किया है, इनमें बाल साहित्य के पुरोधाद्वय डाॅ. श्रीप्रसाद एवं डाॅ. राष्ट्रबन्धु है।
अपने इस शोध पत्र के माध्यम से मैंने मध्यप्रदेष के महिला बालसाहित्यकारों के योगदान को पूर्णरूप से रेखांकित किया है। प्रदेष से बाहर जन्में कुछ बाल साहित्यकारों को मैंने मध्यप्रदेष के साहित्यकारों में सम्मिलित किया है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उनका मध्यप्रदेष के बाल साहित्य में लेखन कार्य के साथ-साथ उनकी कर्मभूमि भी मध्यप्रदेष है।
इस शोधपत्र में मैंने मध्यप्रदेष की समस्त महिला बालसाहित्यकारों को सम्मिलित करने का प्रयास किया है। मेरी तमाम कोषिषों के बाद भी कुछ तकनीकी बाधाओं, संप्रेषणीयता की कमी के कारण मध्यप्रदेष की सम्पूर्ण महिला बाल साहित्यकारों एवं उनके रचनाधर्मिता को शोधपत्र में समेट पाना संभव नहीं था, फिर भी मुझे आषा ही नहीं वरन् विष्वास है कि मेरे शोधपत्र के माध्यम से आप मध्यप्रदेष की अधिकाधिक महिला बालसाहित्कारों जुड़ेंगे। 
मैं अपने इस शोधपत्र के माध्यम से मध्यप्रदेष की महिला लेखिकाओं के साहित्य सृजन उनके पारिवारिक परिवेष, षिक्षा कर्म, लेखनी और उनके योगदानों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर रेखांकित कर सकूं तभी मेरे इस शोधपत्र की सार्थकता पूर्णरूपेण सिद्ध हो सकेगी।
प्रीति प्रवीण,
19, सुरुचि नगर, कोटरासुल्तानाबाद
भोपाल (मध्यप्रदेश)
सम्पर्क: $91-9425014719
ई मेल: चतममजपचतंअममदंनजीवत/हउंपसण्बवउ
संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1ण् बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल (म.प्र.)
2ण् प्रष्नावली, साक्षात्कार (प्रत्यक्ष एवं दूरभाषिक) 
3ण् द संडे इंडियन, 4 सितम्बर 2011 अंक, शीर्षक- 21वीं सदी की 111 महिला लेखिकाएं।

जन जागरूकता और अन्ना

    जन जागरूकता और अन्ना हजारे  का
                        जनांदोलन
                  -डा.राज सक्सेना
      पिछ्ले  अगस्त  के पन्द्रह दिनों के घटनाक्रम
जिसनेपूरे देश को मथ कर रख दिया है को  अनेक
विद्वान अपने-अपने दृष्टिकोण से समीक्षित करेंगे,
कुछ इसमें खूबियां निकालेंगे तो कुछ कमियां |
कुछ इसे मील का पत्थर साबित करेंगे  और -
कुछ संसदीय जड़ों पर कुठाराघात बतायेंगे |खैर्-
जाकी रही भावना जैसी |समीक्षा हम भी करें-
मगर लीक से हट कर |
     आइये हम समीक्षा करें इस ऐतिहासिक्-
आन्दोलन के माध्यम से ,एक साधारण ग्रामीण-
से देश के सबसे प्रिय जननायक के रूप में उभरे
अन्ना हज़ारे ने देश को लीक से हट कर  क्या
दिया  है | जो जन जागरूकता अन्ना हजारे के
इस जनांदोलन से भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्राप्त
हुई है वह अविस्मरniy य  है |
      इस दृटिकोण से समीक्षा के लिये पूरे
घटनाक्रम पर एक नज़र डालना आवश्यक है |
सोलह अगस्त से प्रारम्भ इस क्रान्ति की शुरु-
आत तभी से हो गई जब बिना कोई नियम
तोड़े अन्ना को मयूर विहार से गिरफ्तार  कर
पहले पुलिस मुख्यालय और फिर तिहाड़ जेल
ले जाया गया | दर असल यह केन्द्र और -
दिल्ली पुलिस की पहली गलती थी जो उनके
ताबूत की पहली कील साबित हुई | वह यह
भूल गये कि इस बार उनकी टक्कर पूरी तरह
ईमानदारी से निःस्वार्थ भाव से पूरी रणनीति
बना कर कुछ अनुशासित संस्थाओं की कमान
में,कुछ भारतीय नौकरशाहों की व्यवस्था सं-
चालन हेतु सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग प्राप्त पूर्व नौकरशाहों
के पूर्ण समर्पित नेतृत्व मेंतथा केन्द्र में अपनी 
ईमानदारी क लिये प्रसिद्ध और आज भी जजों 
तक की ईमानदारी पर उंगली उठा सकने की क्षमता
 रखने वाले शांति भूषण और शशि भूषण जो अपने
 समय -
मे अपनी कार्य़प्रणाली और निष्ठा के लिये -
सुप्रसिद्ध रहे हैं के नेतृत्व में अनुशासित भीड़
के लोग करेंगे जो कोई भी गलती न करने
की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इस रणक्षेत्र में कूदे
हैं |वह भी पूरी तैयारी के साथ | वे जानते-
थे कि इन मौकों पर बड़े आन्दोलनों मे क्या
गलतियां हुआ करती हैं | जिनका सरकारीतन्त्र
फायदा उठा कर बलप्रयोग कर आन्दोलन  की
कमर तोड़ने से नहीं चूकता |कुछ तो ऐसे मौके
न आने देने के कारण और कुछ केन्द्र सरकार
के मन्त्रियों और प्रवक्त्ताओं के सबकुछ पुलिस
पर थोप देने की कुटिल चालों से आहत पुलिस
द्वारा कोई भी ज्यादती न करने की नीति के -
चलते भीड़ पर बल प्रयोग न होने से जनता का
मनोबल कायम रहा | इस आन्दोलन ने भवि-
ष्य के जनान्दोलनों के लिये रणनीति और दिशा-
निर्देश दोनों निर्धारित करने का महत्वपूर्ण काम
किया है |
      दूसरा महत्वपूर्ण काम इस आन्दोलन के
माध्यम से यह हुआ है कि अन्ना और उनकी टीम्
बिशेष कर केजरीवाल ने तथाकथित महामहिम -
समझने वाले स्वंभू नेताओं को उनकी असलियत
और उनकी हैसियत बता कर उन्हें उनकी औकात
में ला दिया | उनकी पोलें खोलकर उन्हें बगलें-
झांकने को मजबूर कर दिया | बड़बोले कपिल सिब्बल
और चिदम्बरम को अपना मुंह बंद करने पर मजबूर
कर दिया गया |  एक प्रसिद्ध कहावत है'चोर के
पांव कितने' , सटीक दृष्टांतों और सजीव उदाहरणों ने
नेताओं को बिल से बाहर ही नहीं निकलने दिया |
फलस्वरुप वे झूठ का सहारा लेकर अपने ऊपर लगे
आरोपों का सशक्त और सटीक जवाब न दे सके |
         तुलसीदास जी ने रामचरित मानस
में कहा है-
'सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहहु मुनिनाथ |
 हानि लाभ जीवन मरन,जस अपजस विधि हाथ |
         जो आतंक से जनभावनाओं को कुचलने
में विश्वास रखने वाले और जनता को पैर की जूती
समझने वाले मंत्रियों और निर्दयी अफसरों पर
सटीक बैठी |
         बाबा राम देव की आधी रात के सूने में कमर
तोड़ कर अपने थोथे दंभ के दिवा सपनों में खोये
इन वाचाल शातिरों को सही सबक देने का यह
सही तरीका था जो सही वक्त पर स्तेमाल किया
गया |
    सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है
कि पुलिस और केन्द्र सरकार के हाथ बांधने
में अर्ध्ररात्रि मे बाबा राम देव के समर्थकों पर
और भ्रष्टाचार के ही मुद्दे पर भारतीय युवा-
मोर्चा पर निर्मम पुलिसिया अत्याचार की अप-
राध भावना का भी बहुत बड़ा हाथ था |खैर
इस प्रकरण से देश की युवा पीढ़ी ने गांधी युग
देख लिया | उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन हो गया कि
गांधी जी ने अंग्रेजों जैसी सर्वशक्ति सम्पन्न -
सत्ता से आखिर देश को  कैसे छुड़ा लिया |
जो भी हो , बहाना कोई भी रहा नेतृतवविहीन 
देश को आधुनिक गांधी मिल गया |जिसमें
भारत का युवावर्ग ही नहीं हर उम्र का नाग-
रिक अपना उज्जवल भविष्य देख रहा है |
इसे इस आन्दोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि
माना जाना चाहिये |
       इसी क्रम में यह भी कहा जाना
उचित होगा कि इस प्रकरण ने सत्तामद में
चूर कांग्रेसी मन्त्रियों और पार्टी प्रवक्ताओं को
भी अपने अहंकार के साथ भूलुण्ठित कर -
दिया यह भी इस वक्त की बहुत बड़ी आव-
श्यकता थी जिसका पूरा आनंद  भारतीय
जनता जो इनके अहंकार और ऊलजलूल
बकवासो से कुंठित थी को मनोरंजन के ही
अतिरिक्त बोनस के रूप में निःशुल्क प्राप्त
हुआ |कपिल सिब्बल,चिदम्बरम्,मनीष-
तिवारी और दिग्गी जैसे बड़बोले फिर से
वक्त जरूरत पर काम आने के लिये फ्री-
जर में डालदिये गये |
       मज़े की बात इस आन्दोलन मे यह
रही कि इस आन्दोलन को तोड़ने के वे सारे
नुस्खे आज़माये गये जिसके लिये कांग्रेस की
टीम कुख्यात है | अन्ना आन्दोलन को कभी
भगवा संरक्षण प्राप्त बता कर मुस्लिम समाज
को इससे अलग करने की कोशिश हुई तो -
कभी दलित विरोधी बताकर दलितवर्ग से का-
टने का प्रयास ,मगर अन्ना टीम के सिपह -
सालार मानों हर वार की तैयारी के साथ रण-
भूमि में उतरे थे | हर वार की काट के -
साथ | आमिर खान की रोज़ाना होने वाली
अफ्तारी में शिर्कत और अन्शन तोड़्ने के लिये
इकरा और सिमरन का चयन अन्त में
इस दुष्प्रचार की भी हवा निकाल गया |उन सां-
सदों की भी बोलती अन्ना टीम के इस मैने-
जमेंट से धड़ाम हो गई |कांग्रेस ने मुस्लिम
धर्मगुरूओं को अपने प्रभाव में ले लेने की -
पहल के चलते 'वन्दे मातरम'के बहाने भाग
न लेने के फतवे के बावजूद काफी बड़ी संख्या
में भाग लेकर भारतीय जनता को स्पष्ट संकेत
दे दिया कि मुस्लिम अब किसी तथाकथित का
बंधुआ बनने को तैयार नहीं है | उधर टीम -
अन्ना ने भी कुछ राष्ट्र भक्त मुस्लिम नेताओं
को तैयार कर रखा था | उन्होंने तुरन्त फ्तवे
खारिज कर दिये अथवा उनके औचित्य पर ही
प्रश्न चिन्ह लगा दिये |भारी संख्या में मुस्लिम
भागीदारी आन्दोलन में होना इसका प्रमाण है |
यह भी इस आन्दोलन की देन है कि लोगों ने
धर्म,क्षेत्रवाद,जातिवाद और वर्गवाद से ऊपर -
उठकर सोचने की शुरुआत की |
      इस देश के प्रजान्त्र की बार-बार दुहाई
देने और संसद की गरिमा की बात करने वालों
का प्रजातन्त्र तो देखिये क्षेत्र का अदना सा पु-
लिस कमिश्नर जन आन्दोलन की अनुमति देता
है,उसकी अवधि तै करता है, उसमे भाग लेने
वालों द्वारा क्या बोला जायेगा यह भी तै करना
उसी का विवेक है? वह भी शान्तिव्यवस्था के
नाम पर | क्या बिडम्बना है?
      इसके अतिरिक्त जे पी द्वारा दिये गये
'राइट टू रिकाल्'पर सार्थक बह्स कर उसे -
पुनर्जन्म देना भी इस आन्दॉलन के माध्यम
से अन्ना की सौगात है |
      सही बात तो यह है कि केन्द्र सर-
कार ने जनता को पुलिस के माध्यम से जो
मूक-बधिर बनाने का षड़यन्त्र रचा था उस-
में अन्ना ने पलीता लगा कर जनता को एक
नई सोच और विरोध प्रकट करने की आवाज
दी है  नेता को उसकी असली जगह और -
जनता को अपनी सही जगह बैठने का स्थान -
बताया है |
        अन्ना से केन्द्र और राज्य सरकारें कितनी
डरी हुई हैं इससे स्पष्ट है कि अन्ना द्वारा समय-
समय पर पुनःआन्दोलन की धमकी देते ही केन्द्र 
और राज्य सरकारों ने देश के स्वंय को अघोषित 
शासक -समझने वाले प्रशासन को औकात में लाने
 के लिये नियम बनाने प्रारम्भ कर दिये हैं | 
      वस्तुतः अन्ना ने गांधीगीरी से हक
हासिल करने का अमोघ अस्त्र जनता के हाथ में
थमा दिया है | जिसकी कोई सटीक काट -
वर्तमान सरकार के पास फिलहाल तो नही है |
       वैसे केंद्र में सरकार चला रहे लोग भी कम 
शातिर नहीं हैं | मनु सिंघवी की अध्यक्षता और 
मनीष तिवारी की ज्वायेंट कमेटी में सदस्यता 
और जिनका  शातिरपन हम लोग रोज देखते हैं |
केंद्र का प्लस प्वाइंट है | देखिये ऊँट किस करवट 
बैठता है | किन्तु 'अति का अंत होता है ' शायद 
केंद्र सरकार पर  यह कहावत चरितार्थ हो रही है |
भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों से सतत घिरती जा रही 
सरकार शायद जो घेराबंदी कर रही  है  उससे 
निबटने के लिए ही शायद अन्ना और उनकी टीम 
भारतभ्रमण पर जा रही है | 
         अंत में यह तो कहना ही पडेगा , केंद्र डाल-
डाल है तो अन्ना पात - पात हैं |
          चलते -चलते यह भी की , वन्दे मातरम् को 
अन्ना और उनकी टीम ने हिंदुत्ववादी नारे के स्व-
रूप से निकाल कर देशव्यापी स्वरूप प्रदान कर 
दिया है जो इस आन्दोलन की एक और बड़ी उप-
लब्धि कही जा सकती है | कुल मिला कर अन्ना ने 
देश को जागरूक किया है, साहस दिया है , आत्मबल 
दिया है और टुकड़ों में बनती मानसिक सोच को एक 
ऐसा आयाम  दिया है जो एक होकर लड़ने का जज्बा 
पैदा करता है यही इस जनांदोलन और अन्ना की इस 
देश को जनजागरूकता के रूप में सबसे बड़ी देन है |
जिसकी जनमानस को नितांत आवश्यकता थी |

    धन वर्षा, हनुमान मंदिर, खटीमा -262308  (उ.ख.)

Wednesday, October 19, 2011

दूर से देखें, तो लगता है समन्दर में सुकूं,
पास जाकर देखिए,वो किस कदर बेचैन है |
          -०-
कौन कहता है समन्दर में,सुकूं है, चैन है,
देखिए नजदीक जाकर,हद तलक बेचैन है |
          -०-
हों इरादे जब अटल तब राह को कया देखना,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे,रास्ते बन जाएंगे |
          -०-
पर्वतों से हौंसले  लेकर चलेंगे हम अगर,
रास्ता देगा समन्दर,आसमां बिछ जाएगा |
          -०-

Tuesday, October 18, 2011

संक्षिप्त बायोडाटा

          


                         दिनांक ६ नवम्बर २०११ 
इण्डो-नेपाल महिला बाल साहित्यकार सम्मेलन एवं सम्मान समारोह-२०११
    संयोजक- बाल कल्याण एवं साहित्य शोध केन्द्र खटीमा (उ०ख०)

                                संक्षिप्त बायोडाटा

                      -डा. महाश्वेता चतुर्वेदी ( उ०प्र्० )
      हिन्दी,अंग्रेजी और संस्कृत में एम.ए.,साहित्याचार्य,संगीत प्रभाकर,डिप्लोमा इन योग 
एण्ड नैचुरोपैथी,डिप्लोमा इन जर्नलिज्म्, एल.एल.बी.,पी.एच.डी.और डी.लिट की उपाधियों
से विभूषित डा.महाश्वेता चतुर्वेदी,वर्तमान में बरेली के एक महिला पी जी कालेज में प्रोफेसर 
एंव शोध निदेशक के पद पर कार्यरत हैं |
     आपने हिन्दी,अंग्रेजी और संस्कृत में समान रूप से बृहद लेखन कर सौ के लगभग -
पुस्तकें और शोध सृजित किये हैं | यही नही आपके साहित्य पर भी दर्जन भर शोध हो चुके 
हैं | आप ग्यारह से अधिक देशों की साहित्यिक यात्रायें कर चुकी हैं | आप देश में बिरली 
हिन्दी और अंग्रेजी में निकलने वाली पत्रिका 'मन्दाकिनी' का सम्पादन भी करती हैं | बाल 
साहित्य में आपने श्रेष्ठ साहित्य का सृजन किया है और उसके लिये एक समर्पित संस्थान के 
रूप में आप कार्यरत हैं | आप इस परिचर्चा की मुख्य वक्ता हैं | आपको सम्मानित करने 
का अर्थ है संस्थान के हर सदस्य का सम्मान |











                              डा.प्रवेश सक्सेन (दिल्ली)
      डा.जाकिर हुसेन पी जी कालेज दिल्ली से एसोसियेट प्रोफेसर के पद से अवकाशप्राप्त 
डा सक्सेना कई संस्थानों में विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर कार्य़रत हैं | आप कई शोध करा
चुकी हैं तथा बाल साहित्य के अतिरिक्त समग्र साहित्य में भी आप श्रेष्ठ लेखन के लिये सुवि-
ख्यात हैं | आप चार ग्रन्थों का सम्पादन एंव बीस से अधिक पुस्तकों की रचियता हैं |आपकी
'हंसता गाता बचपन'दिल्ली हिन्दी अकादमी से पुरुस्कृत बाल रचना है |आप दर्जन भर -
प्रतिष्ठत सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं | आपका 'आम का पेड़ ' बाल कहानी ग्रन्थ प्रकाशनाधीन 
है | आपके लिये यह सम्मान प्रदान करना संस्थान का गौरव है |







       सुश्री सुर्कीति भटनागर - (पटियाला, पंजाब)
      पंजाब के पाकिस्तान में चले गये सियालकोट में जन्मी सुर्कीति जी बाल साहित्य के
के लिये समर्पित अहिन्दीभाषी प्रख्यात बाल साहित्यकार के रूप में स्थापित हैं | एम ए तक 
शिक्षा प्राप्त आप स्वतंत्र लेखिका हैं | अब तक आपके दस बाल कथा संग्रह,तीन बाल उपन्यास,
दो बाल गीत संग्रह तथा तीन सौ से अधिक बाल रचनायें पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं | 
समग्र साहित्य में भी तीन कथा संग्रह , दो लघु कथा संग्रह  तथा सौ से अधिक रचनायें
 प्रकाशित हो चुकी हैं | इस बर्ष का आपको 'महिला बाल साहित्य शिरोमणी ' का सम्मान 
देकर संस्थान स्वंय को गौरवान्वित अनुभव करता |
         आप राष्ट्रीय स्तर के लिये चालीस से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं |
 भाषा विभाग पंजाब सरकार द्वारा आपके बाल कथा संग्रह को वर्ष २००६ का तथा वर्ष २००९ में
 बाल गीत संग्रह को , सर्वश्रेष्ठ बाल साहित्य का सम्मान प्राप्त हो चुके हैं | हिन्दी सभा सीतापुर
 भी आपके बाल उपन्यास को वर्ष २००९ का सर्वश्रेष्ठ बाल रचना का सम्मान प्रदान 
कर चुकी है | आपका सम्मान आपके सम्मान का प्रतीक़ न्हीं बल्कि संस्थान के गौरव का
प्रतीक है | 






         डा. के श्री लता  - तिरूवनन्त पुरम (केरल)   
       श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रादेशिक केन्द्र तिरूवनन्त पुरम में एसो- 
सियेट प्रोफेसर मलयालम भाषी श्रेष्ठ बाल साहित्य़ शोधकर्ता तथा साहित्यकार हैं |हिन्दी 
विभाग की प्राध्यापिका डा. श्रीलता ने हिन्दी में भी कुछ बाल रचनायें की हैं जो स्थानीय 
क्षेत्र में विशेष प्रशंषित हुयी हैं | आप वर्ष १९९४ से १९९८ तक लगातार पांच वर्ष तक केरल 
हिन्दी साहित्य अकादमी से एस बी टी साहित्य सम्मान प्राप्त कर चुकी है | आप राष्ट्रीय
हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रोफेसर चन्द्र हासन सम्मान भी प्राप्त कर चुकी हैं |आपकी 
विभिन्न विषयों पर सात पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं | विभिन्न पत्रिकाओं में भी आपकी
बाल रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं | कई विश्वविद्यालयों की विजिटिंग प्रोफेसर होने के साथ
ही आप विभिन्न सरकारी संस्थानों की विभिन्न समितियों में भी पदाधिकारी हैं | आप को 
सम्मानित करके संस्थान स्वंय को गौरवान्वित अनुभव करता है |






       डा.मिथलेश रोहतगी
      हिन्दी विभाग की प्रवक्ता,विभागाध्यक्ष तथा प्राचार्या महाविद्यालय पद पर रह चुकी डा.
रोहतगी प्रख्यात महिला शिक्षाविद के रूप में ख्यात रही हैं | आप ने विभिन्न विधाओं में 
साहित्य सृजन किया है | बच्चों के साहित्य के विकास में सतत प्रयत्नशील रहीं आपकी -
क्षमताओं का आकलन कर ही केन्द्र सरकार द्वारा आपको भारत के बाल साहित्यकारों का कोष
तैयार करने का गुरूतर भार प्रदान किया है |अनेक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं तथा-
अनेक शोध आपके निर्देशन में सम्पन्न हुये हैं | आपकी दो बाल कृतियां प्रकाशनाहीन हैं |
     आपका सम्मान अगली पीढी को प्रेरणा प्रदान करेगा ऐसा हमें विश्वास है |








              श्रीमती विमला रस्तोगी(दिल्ली) 
      सुप्रसिद्ध समाज सेवी एंव बाल साहित्यकार विमला जी की दो बाल कृतियां नेशनल 
बुक ट्र्स्ट से प्रकाशित हो चुकी हैं तथा कई कहानी संग्रह ,बाल एकांकी, तथा काव्य पुस्तकें
विभिन्न पुरूस्कार प्राप्त कर प्रकाशनाधीन हैं | तथा भारत सरकार के आपरेशन ब्लैक बोर्ड में
चयनित हो चुकी हैं |
      बीस के लगभग राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त विमला जी को सम्मानित कर संस्थान स्वंय 
को गौरवान्वित अनुभव करता है |








      सुश्री सुरेखा शर्मा 'शान्ति'(गुडगाँव) 
       हरियाणा निवासी सुरेखा जी समाज सेवी, हिन्दी सेवी और बाल साहित्य के लिये
समर्पित व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं |देश में कार्यरत अनेक हिन्दी सेवी संस्थाओं की आप -
पदाधिकारी हैं तथा बाल कविताओं पर आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | साहित्य 
की अन्य विधाओं पर भी आपका समान अधिकार है तथा इस क्षेत्र में भी आपकी एक अलग 
पह्चान है | आप लगभग बीस सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं तथा आपका एक बा एकांकी संग्रह 
प्रकाशनाधीन है | 
       आपका सम्मान कर हम अनुग्रहित हैं |







        सुश्री उषा अग्रवाल  (महाराष्ट्र)    
       नागपुर (महाराष्ट्र् निवासी उषा जी ने यद्यपि अभी कुछ दिनों से ही बाल साहित्य के 
क्षेत्र मे पदार्पण किया है किन्तु हायकू और लघुकथा के क्षेत्र मे आप का बहुत सम्मानित नाम
है | आप बाल साहित्य की हर विधा मे लिख रही हैं और बहुत अच्छा लिख रही हैं | आप 
की कई बाल पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं  | आकाशवाणी और मंच से आप की रचनाओं का 
सतत प्रसारण होता रह्ता है |
        आपका सम्मान हम सब का गौरव है |







         ट्विंकल अग्रवाल (महाराष्ट्र)
       इस समारोह की सबसे कम आयु की ट्विंकल जी भी महाराष्ट्र से ही हैं तथा आप 
बाल साहित्य के क्षेत्र में कहने के लिये तो नवांगत किन्तु इन एक दो वर्षों में ही आपने 
बाल साहित्य के क्षेत्र में अपना एक अलग स्थान बनाया है | आप बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न
युवा साहित्यकार हैं | 
      आपका सम्मान युवा पीढी का सम्मान है |





         सुश्री स्नेहलता (लखनऊ) 
      उत्तर रेलवे मण्डल कार्यालय लखनऊ में लेखाधिकारी के पद पर आसीन स्नेह लता 
जी का नाम साहित्यिक क्षेत्र में बड़े आदर के साथ लिया जाता है | आपकी विभिन्न विधा
में दस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी ह |जिनमे बालसाहित्य की चार पुस्तकें विशेष 
प्रशंसित रही हैं | उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ,बालसाहित्य संस्थान लखनऊ से विभिन्न-
सम्मानों के अतिरिक्त आपको अन्य संस्थानों से एक दर्जन से अधिक सम्मान प्राप्त हो चुके 
हैं |आकाश वाणी से आपकी बाल कविताओं का सतत प्रसारण होता है |
       आपका सम्मान संस्थान की एक बिशेष उपलब्धि है | गौरव है |

Monday, October 10, 2011

karnaa nishcht

       तुमको निश्चित करना है

जीवन पथ पर चलने से पहले , 
लक्ष्य तुम्हें  अब  चुनना  है |
करलो निश्चित करने  से पहले ,
क्या तुम को अब  बनना  है |

वीर सुभाष बनोगे   या  तुम,
बनोगे  वीर   शिवा  जी  से |
या   फिर राजस्थान- केशरी,
चाहो  कुछ  राणा  जी   से |

रामतीर्थ  बनना  चाहोगे, या-
भगत  सिंह  मतवाला   तुम |
सघन साधना कर   मीरा सी,
चाहो   बिष  का प्याला  तुम |

अगर चाहते    नेता   बनना,
लाल  बहादुर   सा    भय्या |
दे  कर  जान  बचाया जिसने,
भारत   का गौरव     भय्या |

कहो बनोगे क्या तुम  बच्चो , 
अभी करो यह निश्चित   तुम |
वरना बहुत    देर  हो  जाए,
फिर कब  कर  पाओगे  तुम |

Saturday, October 8, 2011

kavya sameekshaa

                     समीक्षा
        हिन्दी विश्व गौरव ग्रंथ की दूसरी कड़ी के रूप में 'काव्य कुसुमाजंलि" सम्पादन की
अदभुत क्षमता से परिपूरित डा.मेहरोत्रा की हिन्दी जगत को पहली कड़ी में स्थापित की गई
गौरवशाली परम्परा क़ी  अतिश्रेष्ठ पुनरावृति है | प्रथम प्रसून में स्थापित प्रतिमानों से भी 
आगे बढ कर "काव्याजंलि" देव्-प्रसून बना कर की गई प्रस्तुति है जो अदभुत औरअनुकरणीय
 तो है ही एक सर्वथा सार्थक प्रयास भी है |
       १०७ पृष्ठो और ६ अध्यायों में मानो सम्पूर्ण हिन्दी काव्यधारा को समेटने का भगी-
रथ प्रयास किया गया है जो सफल भी रहा है |
       काव्यांजलि में बड़ी संख्या मॅ विदेशी हिन्दी मनीषियों और विदुषियों की चुनी हुई 
श्रेष्ठ कविताओं का संकलन मेहरोत्रा जी की संतुलित उद्दाम विद्वतता और सम्पादन क्षमता का
 अनवरत प्रदर्शन है| अपनी संकलन क्षमता का तात्विक प्रदर्शन जाने- अजाने में वे कर ही बैठे वरना
देश विदेश के लगभग एक सौ काव्य - कलमकारों के मात्र हिन्दी महिमा पर २२० से अधिक 
गीतों और कविताओं का श्रेष्ठ संकलन कितना दुष्कर कार्य है इसकी पीड़ा कोई संग्रहकर्ता  या 
संपादक, समय व्ययी और परिष्कृत सुबुद्दि का आयोजक ही जान सकता है |इस क्रम में यह 
इंगित करना भी अत्यावश्यक है कि हर अध्याय के बाद एक हिन्दी मनीषी को श्रद्धान्जलि ने
जहां समय की समग्र मांग का अनुशीलन किया है वहीं ग्रंथ की छवि को चार चांद लगाने का
सद्प्रयास भी |
       हिन्दी महिमा समग्र रचनाओं का २० भारतीय भाषाओं में अनुवाद इस गौरवग्रंथ के
महिमामण्डन में एक शिलालेख अंकन सिद्द होगा यह मेरी संकल्पना का अंश है |आज भी -
बिरले को छोड़ कर हिन्दी का नवोदित कवि भी स्वंय को सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्र कवि से भी ऊपर 
समझता है ऐसे विपरीत समय में भारत ही नहीं मारीशस के भी घोषित राष्ट्र कवि डा.ब्रजेन्द्र 
कुमार भगत की हिन्दी महिमामण्डन मात्र पर सृजित लगभग ५० कविताओं का श्रमसाध्य 
संकलन एक अदभुत सार्थक सोच का पर्याय तो है ही सम्पूर्ण सोच की दिशा भी इंगित करता है |
        कुल मिला कर यह ग्रंथ भी मेहरोत्रा जी द्वारा गढी परम्परा में एक उज्ज्वल मील का 
पत्थर तो बनेगा ही,अगली पीढी के लिये धरोहर और प्रमाण भी बनेगा ऐसी मेरी सतत्
संकल्पना  है | मेहरोत्रा जी इस साहित्यिक परम्परा को निर्बाध रूप से आगे बढायेंगे ऐसी मेरी
 अटल सोच है | जय हिन्द |    

Tuesday, October 4, 2011

samarpan

समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
 आपको , श्री-मान है |
 है नहीं संजाल शब्दों का,
 हृदय    का  गान है |

 बालपन में लौट  कर जो-,
 कुछ स्वंय अनुभव किया |
 भाव वह मैंने   यथावत ,
 हर समर्पण कर   दिया |

 बालकविता ,  काव्य का-,
 मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
 किस तरह रस-छंद डालूं,
 बिलकुल  नहीं   संज्ञान है |

 किंचित नहीं, मैं भिज्ञ हूँ,
 किस भाव से दूं आपको |
 मित्रवत बस कर रहा हूं,
 भेंट  यह  श्री-मान को |

 आप चाहें तो हृदय इसको-,
 लगा    कर     तार   दें |
 खुद पढें, सबको पढा कर,
 एक   नया  विस्तार  दें | 
             -डा.राज सक्सेना 

Monday, October 3, 2011

dukhiyon par dayaa

      दुखियों पर दया
पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान  नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर  को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
जो काम और के आ  जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

महाराज रन्तिदेव ने अपना, 
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |
सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता  को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |
जितने भी महापुरुष जग के,
कहते  रहते थे बात  यही |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |

गांधी ने इस युग में आकर, 
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं  कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो, 
वह ही मानव, इंसान वही |  

Saturday, October 1, 2011

baal gangaa

   

समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
 आपको , श्री-मान है |
 है नहीं संजाल शब्दों का,
 हृदय    का  गान है |

 बालपन में लौट  कर जो-,
 कुछ स्वंय अनुभव किया |
 भाव वह मैंने   यथावत ,
 हर समर्पण कर   दिया |

 बालकविता ,  काव्य का-,
 मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
 किस तरह रस-छंद डालूं,
 बिल्कुल  नहीं  संज्ञान है |

 किंचित नहीं,मैं  भिज्ञ हूं,
 किस भाव से दूं आपको |
 मित्रवत बस कर रहा हूं,
 भेंट  यह  श्री-मान को |

 आप चाहें तो हृदय इसको-,
 लगा    कर   तार   दें |
 खुद पढें, सबको पढा कर,
 एक   नया  विस्तार  दें |
             -डा.राज सक्सेना
     सरस्वती-वन्दना
शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
      साहित्य-गंगा से लबालब,
      मस्तिष्क को आपूर्ति  दे |
      हो जनन साहित्य   नव,
      यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति   दे  |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
      हो सृजन सबसे  अनूठा,
      प्रेम की  रस-धार  हो |
      शब्द हों आपूर्त रस  में,
      अक्षरों में   प्यार  हो  |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान  दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |
      त्याग-मय जीवन  मिले,
      निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
      प्रेम-पूरित हों वचन सब,
      जिनको यह जिव्हा  कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा  स्थान दे |



दूर गगन से आती चिड़िया |
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया-,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |

आंगन में आ जाती चिड़िया |
फुदक-फुदक उड़ जाती चिड़िया |
दिखे अन्न  का  दाना कोई,
ठीक वहीं पर जाती  चिड़िया |

आ कर नाच दिखाती चिड़िया |
फिर सीढ़ी चढ़  जाती चिड़िया |
आगे - पीछे  मां के  जाकर ,
उनका मन बहलाती  चिड़िया |

फिर करतब दिखलाती चिड़िया |
चोंच में दाना   लाती चिड़िया |
पहुंच घोंसले नवजात बुलाकर-,
दाना उन्हें खिलाती  चिड़िया  |

मां कोई हो, पशु या चिड़िया |
बच्चे   शैतानी   की पुड़िया |
देते कुछ दुख अपनी मां को ,
मां सबकुछ सह लेती दुखिया |



      हरित बनाएं
पप्पू,टिल्लू,कल्लू, राजा |
नया खेल एक खेलें आजा |
ना तुरही,ना तबला कुछ भी,
ना शहनाई ना  कोई बाजा |

नया वर्ष इस तरह  मनाएं |
पूर्ण नगर नव हरित बनाएं |
नए-नए हितकारी  पौधे-,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |

हर घर में फलदार वृक्ष हो |
जिसका हर रसदार पक्ष हो |
हर बच्चा दस पेड़ लगाए-,
हम सबका इसबार लक्ष हो |

तीन वर्ष में जब फल आएं |
खुद खाएं मित्रों को खिलाएं |
पास पड़ौस में बांटें सबको,
सबको सुन्दर स्वस्थ बनाएं |



       जन्म-दिवस
              -डा.राज सक्सेना
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो   उन्नत   नित   भाल |

टूट कर सुख-समृद्धि  बरसे,
वन उपवन सा जीवन महके |
कहीं शोक की  पड़े न छाया,
मन का पक्षी खुलकर चहके |

क्रमशः होते जाएं  कर   से,
नित्-नित  नये    कमाल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो   उन्नत   नित   भाल |
दोस्त     फुलाएं     गाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |

दुनिया के ऐश्वर्य प्राप्त   कर,
शिक्षा  के प्रतिमान प्राप्तकर |
एक सफल व्यक्तित्व बनो तुम,
हैं जितने सम्मान  प्राप्त कर |

शक्ति तुम्हें दे ईश्वर   इतनी,
रक्खो   इन्हें      सम्हाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |

बैर   किसी से कभी बने ना,
संक्ट आये  किन्तू टिके  ना |
स्वस्थ और सम्पन्न रहॉ तुम्,
होठो से, मुस्कान  मिटे  ना |

क्रमशः होते   जाएं   कर से,
नित-नित नये      कमाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ     सैकड़ों     साल |



       नेहरू बन जाऊं
               -डा.राज सक्सेना
नेहरू जैसा देश चला कर,
मैं भी नाम    कमाऊं |
मम्मी मुझे बताओ कैसे,
मै नेहरू   बन   जाऊं |

मिलकर रहें एकता से सब,
बंधें  सूत्र में   कस  कर |
अगर देश पर संकट  आए,
जूझें उससे    डट   कर |

दुनिया का आदर्श देश  हो,
ऐसा इसे        बनाऊं |
अचकन टोपी पहन जेब में,
लाल गुलाब      लगाऊं |

बाल दिवस पर अपने जैसे,
सब बच्चे      बुलवाऊं  |
जन्मदिवस चाचा नेहरू का,
सबके साथ     मनाऊं   |

हो समान पालन और शिक्षा,
 ऐसे नियम    बनाऊं  |
चाचा के सपनों का भारत,
मैं साकार      बनाऊं   |



       एक सवाल
            - डा.राज सक्सेना
एक पुत्र ने,निश्छल मन से,
किया पिता से एक  सवाल |
हिन्दू-मुस्लिम होते क्या हैं,
कभी-कभी क्यों करें बबाल |

पापा बोले धर्म  अलग   है,
कुछ आचार नहीं मिलते  हैं |
सामाजिक कुछ नियम अलग है,
मूल विचार नहीं  मिलते  हैं |

मन्दिर में हिन्दू   की  पूजा,
मस्जिद में मुस्लिमी नमाज |
हिन्दू रखें अनेकों,एक माह के-,
रोजे रखता , तुर्क   समाज |

'पापा मन्दिर' बोला  बेटा,
का निर्माण ,करे  भगवान  |
या फिर रचना हर मस्जिद की,
आकर खुद करता  रहमान |

सब धर्मी  मजदूर   मिस्त्री,
मिल कर इनको यहां बनाते |
बन कर पूरा, होते ही क्यों,
दोनों अलग-अलग हो  जाते |

हिन्दू कहता ईश   एक  है,
मुस्लिम कहता  एक खुदा |
जैन,बौद्ध और सिख,ईसाई,
मिलकर भी क्यों रहें  जुदा |

बच्चे हम सब एक पिता के,
ना पूजा घर एक बनाते  |
हमसब के त्योहार अलग क्यों,
मिलकर हम क्यों नहीं मनाते |

ईश पिता जब एक  सभी का,
फिर तनाव की बात कहां  है |
सबका ईश्वर एक  जगत  में,
सबकी धरती एक  जहां   है |

रक्त एक सा, शक्ल  एक सी,
सब कहते  हम  हिन्दुस्तानी |
बच्चे मिलकर गले आज सब,
भूल जायं हर  बात  पुरानी |

भारत के बच्चों  को मिलकर,
काम अभी इतना  करना है |
एक नए  आदर्श देश   को,
हम सबने मिलकर रचना है |  



      हिमालय
          - डा.राज सक्सेना

भारत मां के राज मुकुट सा,सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,तत्पर खड़ा हिमालय |

अविरल देकर नीर नदी को,करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,करता हरित  हिमालय |

झेल रहा बर्फीली आंधी, इधर  न आने   देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, बिना कहे  ले  लेता |

सागर से उठते बादल को,  पार न  होने  देता |
भारत में बरसा कर बादल. जलधि न खोने देता |

देता रहता  खनिज हमेशा, भारत धनिक बनाने,
सघन वनों को परिपूरित कर,जीवन सुखद बनाने |

किन्तु नहीं हम जीने देते, इसको  जीवन   इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग  कर.  कुतर-कुतर तन इसका |

कसम एक सब मिलकर खाएं,हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, स्वर्णिम इसका  रूप बनाएं |
  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर्,ख्टीमा-२६२३०८(उ०ख०)
          मो- ०९४१०७१८७७७



      नहीं समझते कम
                -डा.राज सक्सेना

हम सूरज और तारे हम,खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |

हम भारत का मान रखेंगे,ऊंची इसकी शान रखेंगे |
झण्डा है पहचान हमारी,झण्डे का सम्मान  रखेंगे |
तूफानों को रोकेंगे हम,खुद को नहीं समझते  कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |

जात-पांत से दूर रहेंगे,प्रेम-भाव भरपूर   रखेंगे |
कितने बड़े पदों पर पहुंचें,ना सत्ता मद्-चूर रहेंगे |
ना धोखा दें, ना खाएं हम,खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |

विश्व गुरू भारत बन जाए,जन-गण-मन को गले लगाए |
कठिन परिश्रम करके ही तो,प्रजातन्त्र जन-जन तक जाए |
सम अधिकार दिला दें हम,नहीं समझते खुद को कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |

  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
        मो- ०९४१०७१८७७७



       आदर्श दिन-चर्या
                -डा.राज सक्सेना

सुबह सवेरे उठना बेटा,हल्की कसरत   करना बेटा |
छूना पैर बड़े जितने हों,तभी काम कुछ करना बेटा |

सही तरीके से ब्रश करना,दांत साफ पानी से करना |
मुखधोलो तब जाओनहाने,आकर उचित नाश्ता करना |

कलका पढ़ा पुनः दोहराओ,आज है पढ़ना नज़रफिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,बैग ढ़ंग से पुनः  लगाओ |

पूरी ड्रेस पहन कर आओ,बैग टांग कन्धे पर ले जाओ |
पंक्तिलगा बस में तुम चढ़ना,पंक्ति बना शाला में जाओ |

कक्षा में तुम ध्यान लगाकर,मन पढने में पूर्ण जमाकर |
नोट करो जो नोट करायें,अलग अलग गृहकार्य लगाकर |

हो छुट्टी मत दौड़ लगाओ,लगा पंक्ति बस मे चढ़ जाओ |
घर  आए  आराम से उतरो,दोनो ओर देख घर   जाओ |

लेलो नाश्ता मां से  खाओ,धमा-चौकड़ी  नहीं मचाओ  |  
सुनो बात भी जो वह कहती,होकर फ्रैश खेलने  जाओ |

खेल खत्मकर वापस आओ,गृह का पूर्ण कार्य निबटाओ |
खाना खा बिस्तर पर जाओ, करो बन्द आंखें सो जाओ |

  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
  मो- ०९४१०७१८७७७



    ट्रैफिक रूल्स बताएं
                -डा.राज सक्सेना
आओ बच्चों खेल खिलाएं |
चलना सड़कों पर सिखलाएं |
चलें सड़क पर अगर नियम से,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

चलें सड़क पर अपने बांए |
बिना जरूरत पार न जाऍ |
बांए-दांए रहें   देखते -,
सजग रहें और चलते जाएं |

करना पार , जेब्रा पर जाएं |
देखें अपने , दाएं- बांए |
रुकता ट्रैफिक होता सिगनल,
सड़क क्रास तब हम कर पाएं |
मन मर्जी न कभी चलाएं ,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

एक पंक्ति हर जगह लिखी है |
दुर्घटना  से  देर   भली है |
हबड़-तबड़ करती दुर्घटना ,
जगह-जगह पर मौत खड़ी है |
सिगनल पालन साध्य बनाएं |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

स्वर्ग-लोक का टिकट कटाना |
ड्राइव करते,  फोन  उठाना |
मिले अगर अर्जेन्ट काल तो,
रुको वहीं तब फोन  उठाना |
करके अपनी गाड़ी    बांए |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |

 धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,
खटीमा -२६२३०८ (उ०ख०)
 मो- ०९४१०७१८७७७



      आज सुना एक नई कहानी
                       -डा.राज सक्सेना

चांद- सितारे, परी-सुहानी,
एक था राजा,एक थी रानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे,चुप जा  नानी |
आज सुना एक नई कहानी |

भारत का इतिहास  बता दे,
अश्वमेध क्या था  बतलादे |
भारत का किस पर शासन था,
क्यों टूटा साम्राज्य  बतादे |
किस स्तर पर थी नाकामी,
वर्ष आठ सौ सही गुलामी |
आज सुना एक नई कहानी |

सोने की चिड़िया कहलाया,
जगत्-गुरू कैसे बन पाया |
धर्म यहीं पर कैसे  जन्मे,
फिर विस्तार कहां से पाया |
नष्ट हुआ सब फिर भी अपनी,
बची संस्कृति  रही पुरानी |
आज सुना एक नई कहानी |

सभी क्षेत्र में था जब न्यारा,
कहां गया इतिहास  हमारा |
मुगलों,अंग्रेजों से पहले,
था भारत  सारा  नाकारा |
हवा महल थे क्या सब ज्ञानी,
या था सारा ही  अज्ञानी |
आज सुना एक नई कहानी |

धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८
 मो- ०९४१०७१८७७७



      बाल-दिवस पर सुनले नानी
                       -डा.राज सक्सेना
बाल-दिवस पर सुनले नानी |
कसम तुझे जो बात न मानी |
नई कहानी कह अनजानी ,-
करो खत्म यह राजा-रानी |

आज़ादी की कथा सुनाओ |
भगतसिंह क्या थे बतलाओ |
झांसी की रानी कैसी थी,
उसकी पूरी कथा बताओ |
कहां लड़ी थी वह मरदानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |


सावरकर क्यों जेल गये थे |
स्वंय जान पर खेल गये थे |
असहयोग का मतलब क्या था,
भरने क्यों सब जेल गये थे |
क्यों पड़ती थी लाठी खानी |
करो खत्म यह राजा-रानी |


मिली युद्ध बिन क्यों आज़ादी |
क्यों पहनी थी सबने खादी |
लोगों ने क्यों छोड़ा वैभव ,
जीवन शैली क्यों की  सादी |
क्यों सबने मरने  की ठानी ,
करो खत्म यह राजा-रानी |


बाल-दिवस कैसे यह आया |
किसने इसको प्रथम मनाया |
इस दिन को किसने बच्चों का,
अपना दिन घोषित कर वाया |
कह कलाम की कथा-कहानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |

धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-262308
मो- 09410718777


   बाल् दोहे और कतात 
             -ड़ा.राज सक्सेना
मेरे मासूम से बच्चे,गज़ब क्या कर दिया तुमने |
सजाकर एक अच्छा सा,गुलिस्तां धर दिया तुमने |
अजब सा खेल खेला है,अजब जादूगरी की है -,
सरल कविता में प्राणों को,गले से भरदिया तुमने |
         -०-
अभी दिखता है अपनापन,हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब , उन्माद जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे छू रहे हैं सूर्य को जाकर -,
बहुत सम्भावनाएं दिख रही  हैं,  इन फरिश्तों में |
         -०-



       सूरज तुम क्यों रोज निकलते
                      डा.राज सक्सेना
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |
भोर हुई मां चिल्ला उठती ,उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे , अनचाहे झपकी आ जाती |
सूरज तुम स्वामी हो सबके, नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,छुट्टी तुम निर्धारित करलो |
नहीं उगे तो छुट्टी अपनी, सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो, फिक्र नहीं डण्डे की होगी |

संभव ना हो किसी तरह ये, इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम, कल से तुम नौ बजे निकलना |
   धन वर्षा,हनुमान मन्दिर, खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)
    मोबा०- ०९४१०७१८७७७



       रविवार आयेगा
               - राज सक्सेना

दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |

आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |

ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |

सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |

ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तो छुट्टी का,
वार रवि आयेगा |

  -धनवर्षा,हनुमानमन्दिर ,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)
मो-०९४१०७१८७७७



  आज़ादी सुन बात मेरी
          - डा.राज सक्सेना

ऐ आज़ादी सुन बात मेरी,मैं तुझको सत्य दिखाता हूं |
चढ़ तू जिन कन्धों पर आई,मैं उनकी व्यथा बताता हूं |

ये स्लमबस्ती है भारत की,इसको सब कहते हैं कलंक |
कितनी कोठी खाली-सूनी,दिन-रात यहां मनता बसंत |

परिवार आठ का रह्ता है,एक आठ-आठ के कमरे में |
पीढ़ी कमरे में जनी कई, त्यौहार  मने सब कमरे में |

कमरे से बाहर एक बच्चा,जो पुण्य धरोहर हम सब की |
खाना तलाशता कूड़े से, कुछ भूख मिटे उसके तन की |

बच्ची बारह की होते ही, बाई हो जाती    कोठी   में |
अनचाहे या बेबस होकर, इज़्ज़त लुटवाती  कोटी   में |

टी बी से ग्रसित दादा-दादी,तिल-तिलकर मरते जाते हैं |
आज़ाद मुल्क में दवा बिना,फुटपाथों पर   मर जाते हैं |

धन सिमटगया कुछ खातोंमें,आधिक्यहुआ कुछ चीजों का |
अधिसंख्य अभावसे ग्रसित यहां,अडडा हरसड़क कनीजों का |

रिश्वतखोरी का आलम यह,बिन रिश्वत काम न  होता है |
जिनको रक्खा है  काम हेतु,हर  टांग पसारे   सोता  है |

मंत्री,पी एम ओ झूठ कहे,सब छिपे भेड़ की खालों   में |
उदघाट्न तक सड्कें चलतीं,पुल गिर जाते कुछ सालों में |

बस यही रास्ता बचता है , झण्डा  लेकर अब  हाथों में |
उठ समरभूमि में कूद पडो, घुस जाओ भ्रष्ठ  ठिकानों में

   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर खटीमा-२६२३०८(उ०ख्०)
     मो- ०९४१०७१८७७७


     बाल्-दोहे एंव् कतआत 
               -डा.राज सक्सेना

निर्मल्-निश्छल आंख में,स्वपनों का परिलेख |
कालजयी हो जाएगा, इनका   हर अभिलेख |
          -०-
शब्द चित्र रचते मगर,शब्द्-जाल से दूर |
शब्दों में शब्दान्वित,निहित अर्थ भरपूर |
         -०-
उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
कहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |
         -०-
कठिन पान्डित्यप्रदर्शन,नहीं है बालकविता में | 
अहम् के सर्प का दंशन,नहीं है बालकविता में |
ये सपनों का समर्पण है,जो भोली आंख ने देखे,
किसी कविदर्प का दर्शन्,नहीं है बालकविता में |
         -०-
जहां तक हम नहीं पहुंचे,वहां तक ये पहुंचते हैं |
हमारे दिल के दर्दों से,नयन  इनके छलकते हैं |
हम अपने स्वार्थ कविता मे,न चाहे डाल देते हैं,
ये कविता में अचेतन सी,महक बनकर महकते हैं |
            -०-
अलंकारिक नहीं भाषा,न भावों का पुलिन्दा है |
प्रशंसा से परे हैं ये,न इनमें कोई  निन्दा  है |
सरल भाषा में ये दिलपर,लिखा करते हैं भावों को,
ये पिंजरे में नहीं पलता,खुले नभ का परिन्दा है |
           -०-
है निर्मल गंध सी इनमे,जो शब्दों में महकती है |
है भावों की विरल गंगा,जो छन्दों मे छलकती है |
सरलता,सौम्यता का ये,अनूठा एक संगम   है-,
मगर कविता में छुप कर एक चिंगारी दहकती है |
          -०-           



    अविरल टूर बनाएगा
             -डा.राज सक्सेना

मां पहिये लगवाले घर में,
सचल भवन हो   जाएगा |
पापा रखलें एक ड्राइवर ,
जो हर जगह    घुमाएगा |

स्टेशन,बस अड्डे सबकी,
बचेंगे     मारा-मारी से |
पन्द्र्ह दिन तक होनेवाली,
थकन भरी     तैयारी से |
पूसी,टामी,मिट्ठू के संग ,
छुट्टू चूहा       जाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

पापा-मम्मी साथ   रहेंगे,
दीदी  साथ      निभाएगी |
दादा-दादी छूट न   पाएं,
नानी      भी आ जाएगी  |
प्यारा भय्या अर्जुन  मेरा,
साथ घूम कर    आएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

लेह और लद्दाख घूम कर,
श्री-नगर    हम   जाएंगे  |
वहां गए तो अमरनाथ के,
दर्शन  भी   कर   आएंगे  |
झझंट नहीं गरमपानी का,
गीज़र साथ   निभाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

जयपुर से अजमेर घूमकर,
जायेंगे हम दिल्ली    को |
कनाट प्लेस पर चाट्पकौड़ी,
ला दें पूसी    बिल्ली को |
उसको खाते देख भौंक-कर ,
टामी   शोर    मचाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

लखनऊ अपना देखा-भाला,
कर्नाट्क हो      आएंगे |
विधानसभा कैसी लगती है,
फोटो   वहां    खिंचाएंगे |
मिट्ठू तोता करे नमस्ते ,
छुट्टू भी    चिंचियाएगा |
अविरल टूर     बनाएगा |

सीधे-सीधे केप्-कमोरिन ,
कन्याअन्तरीप पर जाएँ   |
बैठ विवेकानन्द शिला पर,
राष्ट्र-गीत भारत का गायें  |
बिनारुके घर्  सीधा वापस,
"दूरान्तो"  सा   आएगा
अविरल टूर     बनाएगा |
  धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
  खटीमा - २६२३०८(उ०ख०)



ये नन्हे कवि कहां से खींच कर,यह इत्र लाते हैं |
अनोखी कल्पना,भावों की सरगम मित्र  लाते हैं |
ये अनगढ हैं मगर इनमें,बहुत प्रतिभा झलकती है,
ये शब्दों से रचे अपने,विरल से चित्र   लाते हैं |
         -०-
कहां की बात को लाकर,कहां पर रख दिया तुमने |
यहां पर शब्द का दरिया,बहा कर रख दिया तुमने |
बड़े आसान शब्दों में,इबारत दिल पे लिख दी है,
कहां से भाव लाए हो,हिला कर रख दिया  तुमने |
           -०-
ये नन्हे तीर कविता के,दिलों पर वार करते हैं |
युगों की वर्जनाओं का,सरल    संहार करते हैं |
न इनपर शब्द ज्यादा हैं,न भावों की बड़ी गठरी,
ये इस युगकी सरलकविता,फसल तैयार करते हैं |
            -०-
पुरानी लीक पर  चलना, कभी  हमको  नहीं  भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी,किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम  तलाशेंगे,शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर ,कभी कुछ  मिल नहीं  पाया |
           -०-
उठो उठ कर तलाशें हम,नई सम्भावनाओं  को |
करें जी तोड़कर हम अब,नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से,मिटा दें वासनाओं   को |
           -०-
हमारे दिल में पुरखों का,अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी, हया की  आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है,अदब-आदाब   बाकी  है |
             -०-
उदर में आसमानों से, सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की,कुरेदा कुन्द ज़बरों को|
प्रसवपीड़ा सही जो"राज",उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो,रचा है चन्द सतरों को |
            -०-
  धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)


       गणतन्त्र हमारा
                - डा.राज सक्सेना

भिन्न सभी से सबसे न्यारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,हमें जान से है ये   प्यारा |

छब्बीस जनवरी का स्वर्णिमदिन,लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा, करता देश तरक्की  प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ  अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

हुई शक्तियां संवैधानिक , लिखित हो गयीं सब अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर, संसद से करवाया     पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |

शासन जन का जन के द्वारा,है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना , संसद में सिमटा बल  सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,भारत का गणतन्त्र हमारा |
   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
      मो. ०९४१०७१८७७७


             धमकी देकर 
                    - डा.राज सक्सेना
               बना दो यह सम्भव हे राम |
धमकी देकर डंसते कैसे, ये मच्छर बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से, कितने आते काम |
             बना दो यह सम्भव हे राम |
यदि जिराफ सी गर्दन होती,हम खजूर खा आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,सेब तोड़ कर   खाते |
घर में बैठे-बैठे खाते,    छत पर पड़े बादाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
सारस सी टांगें मिल जातीं,ओलम्पिक में जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के,हम भारत जब आते |
एरोड्रम पर करने आते, हमको सभी  सलाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
पेट जो मिलता ऊंट सरीखा, जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,घर वापस हम आते |
हफ्तों-हफ्तों करते रहते,    घर में ही आराम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
बन्दर जैसी तरल चपलता,थोड़ी सी पा   जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,बैठ पेड़ पर   खाते |
बदले में मां को ला देते, पके डाल के   आम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |
गरूण सरीखे पर मिल जाते, विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में, निशिदिन आते-जाते |
एयर टिकिट न लेना पड़ता, खर्च न  होते दाम |
              बना दो यह सम्भव हे राम |

   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर ,खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)


           कैसा मामा किसका मामा
                                     - डा. राज सक्सेना 
कैसा मामा किसका मामा,चंदा लगता किसका मामा  |

क्या मामा धरती पर आया ,क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,तारा मंडल भी दिखलाया !
झूठ बोलते खा -मो -खामा,कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं बाज़ार घुमाया, कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,जब रोते हम कभी हंसाया !
फिसले तो ना बाजू थामा,कैसा मामा किसका मामा !

कभी नहीं जंगल दिखलाया,ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,नहीं कथा किस्सा सुनवाया !
ना ढपली न सा रे गा मा,कैसा मामा किसका मामा !

मामा के संग बुढ़िया आती ,साथ एक चरखा  भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,मौज हमारी तब बढ़ जाती !
खादी का  सिलती पजामा,कैसा मामा किसका मामा !

मामा है तो अब भी आये,अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !
और अधिक न दे अब झामा ,कैसा मामा किसका मामा !

    -धन वर्षा ,हनुमान मंदिर,खटीमा-262308 (उ.ख)
      मो.- 09410718777


           ये तारे सब खोटे
                   - डा. राज सक्सेना 
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर  आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |

मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं |

क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह  करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |

चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह  करादूं |
घटे बढे जो रोज  इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |

दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी, 
हर क्षण सफ़र करेगी  |

ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब  खेल  यह खेले |
पर जो बंधे साथ में  इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |

सुन संतुष्ट हुए तारे सब, 
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |

    -धन वर्षा, हनुमान मंदिर,
खटीमा-262308 (उ.ख)
मो.  09410718777    

   छोटा हूं इतना
मां मैं क्यों छोटा हूं इतना |
नहीं बड़ा क्यों भय्या जितना |

सब बातों मैं मुझे दबाता ,
छोटा कह कर चुप कर जाता |

फील्ड किनारे मुझे बिठाकर, 
घन्टों खेले मुझे दिखा कर |

छ्त पर मुझे नहीं ले  जाता |
पर खुद जाकर पतंग उड़ाता |

खुद तो छिप कर चाट उड़ाये,
मिर्च बहुत कह मुझे डराये |

जा मित्रों में  गप्प  लड़ाता,
मैं जो पहुंचूं तुरत  भगाता |

कहता है हर बात में  छोटा,
भय्या बड़ा ,बहुत है  खोटा |

मैं छोटा क्यों मुझे बता मां,
जल्दी मुझको बड़ा बना  मां |

बड़ा हुआ कुछ  काम करूंगा,
मां-पापा का   नाम करूंगा |

एक नया इतिहास   लिखूंगा,
जग में  रोशन नाम करूंगा |  

   प्यारी गौरय्या
पहले भोर हमारे आंगन,
आ जाती थी एक गौरय्या |
बहुत दिनों से नहीं दिखरही,
इधर फुदकती वह गौरय्या |

बचा रात का अन्न पड़ा जो,
फुदक-फुदककर वह खाजाती |
कभी अगर ज्यादा दिखता तो,
वह परिवार बुला ले  आती  |

चारों ओर घुमा कर गरदन,
झट से चोंच चला जाती थी |
एक किनारे से फुदकी और,
छोर दूसरे   आ  जाती थी |

नन्हे-नन्हे  बच्चे   उसके,
उसकी  तरह फुदक जाते थे |
नकल उसी की कर आंगन में,
घंण्टों खेल  दिखा  जाते थे |

बहुत दिनों से आस-पास भी,
नहीं दिख रही  वह गौरय्या |
मां हम से कुछ भूल हुई क्या,
क्यों नाराज  हुई   गौरय्या | 

     विज्ञान कुण्डलियां
        -डा.राजसक्सेना 
गाड़ी पर उल्टा लिखा, एम्बुलेंस क्यों मित्र | 
आगे  गाड़ी जा रही, मिले मिरर को चित्र |
मिले मिरर को चित्र, सदा   उल्टा आएगा ,
सीधा लिख दें अगर,  पढा   कैसे जाएगा |
कहे'राजकविराय',  इसी से उल्टा लिखते,
बैकव्यु मिरर में देख, उसे हम सीधा पढते |
          -०-
जले बल्ब स्विचआन से,ट्यूब लगाये देर |
पप्पू के मस्तिष्क में,घूम रहा  यह फेर |
घूम रहा यह फेर, सुनो पप्पू   विज्ञानी,
ट्यूब बिजली के मध्य,चोक स्टार्टर ज्ञानी |
कहे'राजकविराय',पहुंचती जब दोनों  में,
लेती थोड़ी देर , इसी से वह उठने  में |
          -०-
पप्पू मारे हाथ, समझ में कुछ न आता |
क्यों आता है ज्वार,और क्यों आता भाटा |
और् क्यों आता भाटा,लहर यूं बनती क्यों है,
ऊंची उठती लहर,पुनः फिर गिरती क्यों है |
कहे'राजकविराय'गुरुत्वधरा चन्दा से ज्यादा,
इसी वजह से नित्य,ज्वार और भाटा आता |
          -०-
पप्पू फ्रिज जब खोलता,फ्रीजर ऊपर होय |
सब में ऊपर देखकर,सिर धुनना ही होय |
सिरधुनना ही होय,खेल ये समझ नआया ,
फ्रीजर ऊपर बना रहा है,हर फ्रिज  वाला |
कहे'राज'हवा गर्म, नीचे से ऊपर उठती,
ऊपर फ्रीजर से टकराकर, ठंडी हो  जल्दी |
           -०-
पृथ्वी अपने अक्ष पर, झुक साढे  तेईस |
करती है वह परिक्रमा,गिन कर पूरी तीस |
गिनकर पूरी तीस,ऋतु बदले सूर्य किरन से,
मध्य, मकर, कर्क रेखा पर चाल बदल के |
कहे'राजकविराय', गर्म-ठंडी या तम देखो,
सीधी पड़ती गर्म , नही तो ठंडा क्रम देखो |
           -०-

      दुखियों पर दया
पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान  नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |

देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर  को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
जो काम और के आ  जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |

महाराज रन्तिदेव ने अपना,
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |
सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |

ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता  को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |
जितने भी महापुरुष जग के,
कहते  रहते थे बात  यही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |

गांधी ने इस युग में आकर,
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं  कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |

          तीनों बन्दर
               -डा.राज सक्सेना
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |

हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |

हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |

मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |

बापू ने यह सूत्र    सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक  बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |
 
   धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८ (उ०खण्ड)
मो- ०९४१०७१८७७७