समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
आपको , श्री-मान है |
है नहीं संजाल शब्दों का,
हृदय का गान है |
बालपन में लौट कर जो-,
कुछ स्वंय अनुभव किया |
भाव वह मैंने यथावत ,
हर समर्पण कर दिया |
बालकविता , काव्य का-,
मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
किस तरह रस-छंद डालूं,
बिल्कुल नहीं संज्ञान है |
किंचित नहीं,मैं भिज्ञ हूं,
किस भाव से दूं आपको |
मित्रवत बस कर रहा हूं,
भेंट यह श्री-मान को |
आप चाहें तो हृदय इसको-,
लगा कर तार दें |
खुद पढें, सबको पढा कर,
एक नया विस्तार दें |
-डा.राज सक्सेना
सरस्वती-वन्दना
शारदे कुछ इस तरह का,अब मुझे वरदान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
साहित्य-गंगा से लबालब,
मस्तिष्क को आपूर्ति दे |
हो जनन साहित्य नव,
यह श्रेष्ठतम स्फूर्ति दे |
गीत गंगा को मेरी,नित-नित नये आयाम दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
हो सृजन सबसे अनूठा,
प्रेम की रस-धार हो |
शब्द हों आपूर्त रस में,
अक्षरों में प्यार हो |
मधु सरीखा कंठ दे, रस-पूर्ण मंगलगान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
त्याग-मय जीवन मिले,
निर्लिप्त मन मन्दिर रहे |
प्रेम-पूरित हों वचन सब,
जिनको यह जिव्हा कहे |
गंध सा फैले जगत में,वह मुझे यश-मान दे |
निज चरण में बैठने का,अल्प सा स्थान दे |
दूर गगन से आती चिड़िया |
सबके मन को भाती चिड़िया |
मीठी तान सुनाती चिड़िया-,
मधुर स्वरों में गाती चिड़िया |
आंगन में आ जाती चिड़िया |
फुदक-फुदक उड़ जाती चिड़िया |
दिखे अन्न का दाना कोई,
ठीक वहीं पर जाती चिड़िया |
आ कर नाच दिखाती चिड़िया |
फिर सीढ़ी चढ़ जाती चिड़िया |
आगे - पीछे मां के जाकर ,
उनका मन बहलाती चिड़िया |
फिर करतब दिखलाती चिड़िया |
चोंच में दाना लाती चिड़िया |
पहुंच घोंसले नवजात बुलाकर-,
दाना उन्हें खिलाती चिड़िया |
मां कोई हो, पशु या चिड़िया |
बच्चे शैतानी की पुड़िया |
देते कुछ दुख अपनी मां को ,
मां सबकुछ सह लेती दुखिया |
हरित बनाएं
पप्पू,टिल्लू,कल्लू, राजा |
नया खेल एक खेलें आजा |
ना तुरही,ना तबला कुछ भी,
ना शहनाई ना कोई बाजा |
नया वर्ष इस तरह मनाएं |
पूर्ण नगर नव हरित बनाएं |
नए-नए हितकारी पौधे-,
हर घर में इस वर्ष लगाएं |
हर घर में फलदार वृक्ष हो |
जिसका हर रसदार पक्ष हो |
हर बच्चा दस पेड़ लगाए-,
हम सबका इसबार लक्ष हो |
तीन वर्ष में जब फल आएं |
खुद खाएं मित्रों को खिलाएं |
पास पड़ौस में बांटें सबको,
सबको सुन्दर स्वस्थ बनाएं |
जन्म-दिवस
-डा.राज सक्सेना
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो उन्नत नित भाल |
टूट कर सुख-समृद्धि बरसे,
वन उपवन सा जीवन महके |
कहीं शोक की पड़े न छाया,
मन का पक्षी खुलकर चहके |
क्रमशः होते जाएं कर से,
नित्-नित नये कमाल |
जीवन हो पल-पल आनन्दित,
हो उन्नत नित भाल |
दोस्त फुलाएं गाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
दुनिया के ऐश्वर्य प्राप्त कर,
शिक्षा के प्रतिमान प्राप्तकर |
एक सफल व्यक्तित्व बनो तुम,
हैं जितने सम्मान प्राप्त कर |
शक्ति तुम्हें दे ईश्वर इतनी,
रक्खो इन्हें सम्हाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
बैर किसी से कभी बने ना,
संक्ट आये किन्तू टिके ना |
स्वस्थ और सम्पन्न रहॉ तुम्,
होठो से, मुस्कान मिटे ना |
क्रमशः होते जाएं कर से,
नित-नित नये कमाल |
जन्म दिवस की तुम्हें बधाई,
जिओ सैकड़ों साल |
नेहरू बन जाऊं
-डा.राज सक्सेना
नेहरू जैसा देश चला कर,
मैं भी नाम कमाऊं |
मम्मी मुझे बताओ कैसे,
मै नेहरू बन जाऊं |
मिलकर रहें एकता से सब,
बंधें सूत्र में कस कर |
अगर देश पर संकट आए,
जूझें उससे डट कर |
दुनिया का आदर्श देश हो,
ऐसा इसे बनाऊं |
अचकन टोपी पहन जेब में,
लाल गुलाब लगाऊं |
बाल दिवस पर अपने जैसे,
सब बच्चे बुलवाऊं |
जन्मदिवस चाचा नेहरू का,
सबके साथ मनाऊं |
हो समान पालन और शिक्षा,
ऐसे नियम बनाऊं |
चाचा के सपनों का भारत,
मैं साकार बनाऊं |
एक सवाल
- डा.राज सक्सेना
एक पुत्र ने,निश्छल मन से,
किया पिता से एक सवाल |
हिन्दू-मुस्लिम होते क्या हैं,
कभी-कभी क्यों करें बबाल |
पापा बोले धर्म अलग है,
कुछ आचार नहीं मिलते हैं |
सामाजिक कुछ नियम अलग है,
मूल विचार नहीं मिलते हैं |
मन्दिर में हिन्दू की पूजा,
मस्जिद में मुस्लिमी नमाज |
हिन्दू रखें अनेकों,एक माह के-,
रोजे रखता , तुर्क समाज |
'पापा मन्दिर' बोला बेटा,
का निर्माण ,करे भगवान |
या फिर रचना हर मस्जिद की,
आकर खुद करता रहमान |
सब धर्मी मजदूर मिस्त्री,
मिल कर इनको यहां बनाते |
बन कर पूरा, होते ही क्यों,
दोनों अलग-अलग हो जाते |
हिन्दू कहता ईश एक है,
मुस्लिम कहता एक खुदा |
जैन,बौद्ध और सिख,ईसाई,
मिलकर भी क्यों रहें जुदा |
बच्चे हम सब एक पिता के,
ना पूजा घर एक बनाते |
हमसब के त्योहार अलग क्यों,
मिलकर हम क्यों नहीं मनाते |
ईश पिता जब एक सभी का,
फिर तनाव की बात कहां है |
सबका ईश्वर एक जगत में,
सबकी धरती एक जहां है |
रक्त एक सा, शक्ल एक सी,
सब कहते हम हिन्दुस्तानी |
बच्चे मिलकर गले आज सब,
भूल जायं हर बात पुरानी |
भारत के बच्चों को मिलकर,
काम अभी इतना करना है |
एक नए आदर्श देश को,
हम सबने मिलकर रचना है |
हिमालय
- डा.राज सक्सेना
भारत मां के राज मुकुट सा,सर पर जड़ा हिमालय |
जय जवान सा रक्षक बन कर,तत्पर खड़ा हिमालय |
अविरल देकर नीर नदी को,करता भरित हिमालय |
खेत उगलते सोना जिससे,करता हरित हिमालय |
झेल रहा बर्फीली आंधी, इधर न आने देता-,
कष्ट सभी अपने ऊपर ही, बिना कहे ले लेता |
सागर से उठते बादल को, पार न होने देता |
भारत में बरसा कर बादल. जलधि न खोने देता |
देता रहता खनिज हमेशा, भारत धनिक बनाने,
सघन वनों को परिपूरित कर,जीवन सुखद बनाने |
किन्तु नहीं हम जीने देते, इसको जीवन इसका |
धीरे-धीरे अंग भंग कर. कुतर-कुतर तन इसका |
कसम एक सब मिलकर खाएं,हरा-भ्ररा हम इसे बनाएं,
लेता नहीं कभी बस देता, स्वर्णिम इसका रूप बनाएं |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर्,ख्टीमा-२६२३०८(उ०ख०)
मो- ०९४१०७१८७७७
नहीं समझते कम
-डा.राज सक्सेना
हम सूरज और तारे हम,खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |
हम भारत का मान रखेंगे,ऊंची इसकी शान रखेंगे |
झण्डा है पहचान हमारी,झण्डे का सम्मान रखेंगे |
तूफानों को रोकेंगे हम,खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |
जात-पांत से दूर रहेंगे,प्रेम-भाव भरपूर रखेंगे |
कितने बड़े पदों पर पहुंचें,ना सत्ता मद्-चूर रहेंगे |
ना धोखा दें, ना खाएं हम,खुद को नहीं समझते कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |
विश्व गुरू भारत बन जाए,जन-गण-मन को गले लगाए |
कठिन परिश्रम करके ही तो,प्रजातन्त्र जन-जन तक जाए |
सम अधिकार दिला दें हम,नहीं समझते खुद को कम |
संशय अगर किसी के मन में,आकर हमें दिखाले दम |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
मो- ०९४१०७१८७७७
आदर्श दिन-चर्या
-डा.राज सक्सेना
सुबह सवेरे उठना बेटा,हल्की कसरत करना बेटा |
छूना पैर बड़े जितने हों,तभी काम कुछ करना बेटा |
सही तरीके से ब्रश करना,दांत साफ पानी से करना |
मुखधोलो तब जाओनहाने,आकर उचित नाश्ता करना |
कलका पढ़ा पुनः दोहराओ,आज है पढ़ना नज़रफिराओ |
फिर शाला की करो तैयारी,बैग ढ़ंग से पुनः लगाओ |
पूरी ड्रेस पहन कर आओ,बैग टांग कन्धे पर ले जाओ |
पंक्तिलगा बस में तुम चढ़ना,पंक्ति बना शाला में जाओ |
कक्षा में तुम ध्यान लगाकर,मन पढने में पूर्ण जमाकर |
नोट करो जो नोट करायें,अलग अलग गृहकार्य लगाकर |
हो छुट्टी मत दौड़ लगाओ,लगा पंक्ति बस मे चढ़ जाओ |
घर आए आराम से उतरो,दोनो ओर देख घर जाओ |
लेलो नाश्ता मां से खाओ,धमा-चौकड़ी नहीं मचाओ |
सुनो बात भी जो वह कहती,होकर फ्रैश खेलने जाओ |
खेल खत्मकर वापस आओ,गृह का पूर्ण कार्य निबटाओ |
खाना खा बिस्तर पर जाओ, करो बन्द आंखें सो जाओ |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
मो- ०९४१०७१८७७७
ट्रैफिक रूल्स बताएं
-डा.राज सक्सेना
आओ बच्चों खेल खिलाएं |
चलना सड़कों पर सिखलाएं |
चलें सड़क पर अगर नियम से,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
चलें सड़क पर अपने बांए |
बिना जरूरत पार न जाऍ |
बांए-दांए रहें देखते -,
सजग रहें और चलते जाएं |
करना पार , जेब्रा पर जाएं |
देखें अपने , दाएं- बांए |
रुकता ट्रैफिक होता सिगनल,
सड़क क्रास तब हम कर पाएं |
मन मर्जी न कभी चलाएं ,
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
एक पंक्ति हर जगह लिखी है |
दुर्घटना से देर भली है |
हबड़-तबड़ करती दुर्घटना ,
जगह-जगह पर मौत खड़ी है |
सिगनल पालन साध्य बनाएं |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
स्वर्ग-लोक का टिकट कटाना |
ड्राइव करते, फोन उठाना |
मिले अगर अर्जेन्ट काल तो,
रुको वहीं तब फोन उठाना |
करके अपनी गाड़ी बांए |
तभी सुरक्षित जीवन पाएं |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,
खटीमा -२६२३०८ (उ०ख०)
मो- ०९४१०७१८७७७
आज सुना एक नई कहानी
-डा.राज सक्सेना
चांद- सितारे, परी-सुहानी,
एक था राजा,एक थी रानी |
कान पके यह सुनते-सुनते,
नहीं सुनेंगे,चुप जा नानी |
आज सुना एक नई कहानी |
भारत का इतिहास बता दे,
अश्वमेध क्या था बतलादे |
भारत का किस पर शासन था,
क्यों टूटा साम्राज्य बतादे |
किस स्तर पर थी नाकामी,
वर्ष आठ सौ सही गुलामी |
आज सुना एक नई कहानी |
सोने की चिड़िया कहलाया,
जगत्-गुरू कैसे बन पाया |
धर्म यहीं पर कैसे जन्मे,
फिर विस्तार कहां से पाया |
नष्ट हुआ सब फिर भी अपनी,
बची संस्कृति रही पुरानी |
आज सुना एक नई कहानी |
सभी क्षेत्र में था जब न्यारा,
कहां गया इतिहास हमारा |
मुगलों,अंग्रेजों से पहले,
था भारत सारा नाकारा |
हवा महल थे क्या सब ज्ञानी,
या था सारा ही अज्ञानी |
आज सुना एक नई कहानी |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८
मो- ०९४१०७१८७७७
बाल-दिवस पर सुनले नानी
-डा.राज सक्सेना
बाल-दिवस पर सुनले नानी |
कसम तुझे जो बात न मानी |
नई कहानी कह अनजानी ,-
करो खत्म यह राजा-रानी |
आज़ादी की कथा सुनाओ |
भगतसिंह क्या थे बतलाओ |
झांसी की रानी कैसी थी,
उसकी पूरी कथा बताओ |
कहां लड़ी थी वह मरदानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
सावरकर क्यों जेल गये थे |
स्वंय जान पर खेल गये थे |
असहयोग का मतलब क्या था,
भरने क्यों सब जेल गये थे |
क्यों पड़ती थी लाठी खानी |
करो खत्म यह राजा-रानी |
मिली युद्ध बिन क्यों आज़ादी |
क्यों पहनी थी सबने खादी |
लोगों ने क्यों छोड़ा वैभव ,
जीवन शैली क्यों की सादी |
क्यों सबने मरने की ठानी ,
करो खत्म यह राजा-रानी |
बाल-दिवस कैसे यह आया |
किसने इसको प्रथम मनाया |
इस दिन को किसने बच्चों का,
अपना दिन घोषित कर वाया |
कह कलाम की कथा-कहानी,
करो खत्म यह राजा-रानी |
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-262308
मो- 09410718777
बाल् दोहे और कतात
-ड़ा.राज सक्सेना
मेरे मासूम से बच्चे,गज़ब क्या कर दिया तुमने |
सजाकर एक अच्छा सा,गुलिस्तां धर दिया तुमने |
अजब सा खेल खेला है,अजब जादूगरी की है -,
सरल कविता में प्राणों को,गले से भरदिया तुमने |
-०-
अभी दिखता है अपनापन,हमें कविता से रिश्ते में |
झलकता है अजब , उन्माद जैसा इन बहिश्तों में |
नये कवि आज जैसे छू रहे हैं सूर्य को जाकर -,
बहुत सम्भावनाएं दिख रही हैं, इन फरिश्तों में |
-०-
सूरज तुम क्यों रोज निकलते
डा.राज सक्सेना
सूरज तुम क्यों रोज निकलते,छुट्टी कभी नहीं क्यों जाते |
सातों दिन छुट्टी पर रह कर,नियमों की क्यों ह्सीं उड़ाते |
भोर हुई मां चिल्ला उठती ,उठ बेटा सूरज उग आया-,
आंखें खोलो झप्-झप जातीं,सिकुड़ सिमट अलसाती काया |
सिर्फ तुम्ही हो जिसके कारण,नींद नहीं पूरी हो पाती,
क्लास रूम में बैठे-बैठे , अनचाहे झपकी आ जाती |
सूरज तुम स्वामी हो सबके, नियमों का कुछ पालन करलो |
एक दिवस बस सोमवार को,छुट्टी तुम निर्धारित करलो |
नहीं उगे तो छुट्टी अपनी, सण्डे संग मण्डे की होगी,
जीभर सो ले दो दिन तक तो, फिक्र नहीं डण्डे की होगी |
संभव ना हो किसी तरह ये, इतना तो तुम कल से करना,
थोडा सो लें अधिक देर हम, कल से तुम नौ बजे निकलना |
धन वर्षा,हनुमान मन्दिर, खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)
मोबा०- ०९४१०७१८७७७
रविवार आयेगा
- राज सक्सेना
दिन की भागदौड़ से थक कर ,
सूरज जब घर जाता |
चन्दा, लेकर बहुत सितारे,
नभ में नित आ जाता |
आंख-मिचौली क्यौ होती यह ,
समझ नहीं मै पाता |
और न समझें मां-पापा भी,
भय्या चुप रह जाता |
ऐक दिवस जब दादा-दादी ,
हमसे मिलने आये |
मैने सारे प्रश्न सामने ,
उनके यह दोहराये |
सुन कर दादा-दादी बोले ,
कारण बहुत सरल है |
सूरज को घर भेजा जाता,
लाना उसको कल है |
ना जाये जो घर पर सूरज ,
कल कैसे लायेगा |
छैः कल बीतें तो छुट्टी का,
वार रवि आयेगा |
-धनवर्षा,हनुमानमन्दिर ,
खटीमा-२६२३०८(उत्तराखण्ड)
मो-०९४१०७१८७७७
आज़ादी सुन बात मेरी
- डा.राज सक्सेना
ऐ आज़ादी सुन बात मेरी,मैं तुझको सत्य दिखाता हूं |
चढ़ तू जिन कन्धों पर आई,मैं उनकी व्यथा बताता हूं |
ये स्लमबस्ती है भारत की,इसको सब कहते हैं कलंक |
कितनी कोठी खाली-सूनी,दिन-रात यहां मनता बसंत |
परिवार आठ का रह्ता है,एक आठ-आठ के कमरे में |
पीढ़ी कमरे में जनी कई, त्यौहार मने सब कमरे में |
कमरे से बाहर एक बच्चा,जो पुण्य धरोहर हम सब की |
खाना तलाशता कूड़े से, कुछ भूख मिटे उसके तन की |
बच्ची बारह की होते ही, बाई हो जाती कोठी में |
अनचाहे या बेबस होकर, इज़्ज़त लुटवाती कोटी में |
टी बी से ग्रसित दादा-दादी,तिल-तिलकर मरते जाते हैं |
आज़ाद मुल्क में दवा बिना,फुटपाथों पर मर जाते हैं |
धन सिमटगया कुछ खातोंमें,आधिक्यहुआ कुछ चीजों का |
अधिसंख्य अभावसे ग्रसित यहां,अडडा हरसड़क कनीजों का |
रिश्वतखोरी का आलम यह,बिन रिश्वत काम न होता है |
जिनको रक्खा है काम हेतु,हर टांग पसारे सोता है |
मंत्री,पी एम ओ झूठ कहे,सब छिपे भेड़ की खालों में |
उदघाट्न तक सड्कें चलतीं,पुल गिर जाते कुछ सालों में |
बस यही रास्ता बचता है , झण्डा लेकर अब हाथों में |
उठ समरभूमि में कूद पडो, घुस जाओ भ्रष्ठ ठिकानों में
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर खटीमा-२६२३०८(उ०ख्०)
मो- ०९४१०७१८७७७
बाल्-दोहे एंव् कतआत
-डा.राज सक्सेना
निर्मल्-निश्छल आंख में,स्वपनों का परिलेख |
कालजयी हो जाएगा, इनका हर अभिलेख |
-०-
शब्द चित्र रचते मगर,शब्द्-जाल से दूर |
शब्दों में शब्दान्वित,निहित अर्थ भरपूर |
-०-
उतर गहराई में मन की,अचेतन कल्पना है ये |
कहें कविता इसे कैसे,विरल परि-कल्पना है ये |
-०-
कठिन पान्डित्यप्रदर्शन,नहीं है बालकविता में |
अहम् के सर्प का दंशन,नहीं है बालकविता में |
ये सपनों का समर्पण है,जो भोली आंख ने देखे,
किसी कविदर्प का दर्शन्,नहीं है बालकविता में |
-०-
जहां तक हम नहीं पहुंचे,वहां तक ये पहुंचते हैं |
हमारे दिल के दर्दों से,नयन इनके छलकते हैं |
हम अपने स्वार्थ कविता मे,न चाहे डाल देते हैं,
ये कविता में अचेतन सी,महक बनकर महकते हैं |
-०-
अलंकारिक नहीं भाषा,न भावों का पुलिन्दा है |
प्रशंसा से परे हैं ये,न इनमें कोई निन्दा है |
सरल भाषा में ये दिलपर,लिखा करते हैं भावों को,
ये पिंजरे में नहीं पलता,खुले नभ का परिन्दा है |
-०-
है निर्मल गंध सी इनमे,जो शब्दों में महकती है |
है भावों की विरल गंगा,जो छन्दों मे छलकती है |
सरलता,सौम्यता का ये,अनूठा एक संगम है-,
मगर कविता में छुप कर एक चिंगारी दहकती है |
-०-
अविरल टूर बनाएगा
-डा.राज सक्सेना
मां पहिये लगवाले घर में,
सचल भवन हो जाएगा |
पापा रखलें एक ड्राइवर ,
जो हर जगह घुमाएगा |
स्टेशन,बस अड्डे सबकी,
बचेंगे मारा-मारी से |
पन्द्र्ह दिन तक होनेवाली,
थकन भरी तैयारी से |
पूसी,टामी,मिट्ठू के संग ,
छुट्टू चूहा जाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
पापा-मम्मी साथ रहेंगे,
दीदी साथ निभाएगी |
दादा-दादी छूट न पाएं,
नानी भी आ जाएगी |
प्यारा भय्या अर्जुन मेरा,
साथ घूम कर आएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
लेह और लद्दाख घूम कर,
श्री-नगर हम जाएंगे |
वहां गए तो अमरनाथ के,
दर्शन भी कर आएंगे |
झझंट नहीं गरमपानी का,
गीज़र साथ निभाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
जयपुर से अजमेर घूमकर,
जायेंगे हम दिल्ली को |
कनाट प्लेस पर चाट्पकौड़ी,
ला दें पूसी बिल्ली को |
उसको खाते देख भौंक-कर ,
टामी शोर मचाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
लखनऊ अपना देखा-भाला,
कर्नाट्क हो आएंगे |
विधानसभा कैसी लगती है,
फोटो वहां खिंचाएंगे |
मिट्ठू तोता करे नमस्ते ,
छुट्टू भी चिंचियाएगा |
अविरल टूर बनाएगा |
सीधे-सीधे केप्-कमोरिन ,
कन्याअन्तरीप पर जाएँ |
बैठ विवेकानन्द शिला पर,
राष्ट्र-गीत भारत का गायें |
बिनारुके घर् सीधा वापस,
"दूरान्तो" सा आएगा
अविरल टूर बनाएगा |
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा - २६२३०८(उ०ख०)
ये नन्हे कवि कहां से खींच कर,यह इत्र लाते हैं |
अनोखी कल्पना,भावों की सरगम मित्र लाते हैं |
ये अनगढ हैं मगर इनमें,बहुत प्रतिभा झलकती है,
ये शब्दों से रचे अपने,विरल से चित्र लाते हैं |
-०-
कहां की बात को लाकर,कहां पर रख दिया तुमने |
यहां पर शब्द का दरिया,बहा कर रख दिया तुमने |
बड़े आसान शब्दों में,इबारत दिल पे लिख दी है,
कहां से भाव लाए हो,हिला कर रख दिया तुमने |
-०-
ये नन्हे तीर कविता के,दिलों पर वार करते हैं |
युगों की वर्जनाओं का,सरल संहार करते हैं |
न इनपर शब्द ज्यादा हैं,न भावों की बड़ी गठरी,
ये इस युगकी सरलकविता,फसल तैयार करते हैं |
-०-
पुरानी लीक पर चलना, कभी हमको नहीं भाया |
विगत गुणगान से कुछ भी,किसी को मिल नहीं पाया |
नये पथ हम तलाशेंगे,शिखर की ओर जाने के -,
रखे हाथों को हाथों पर ,कभी कुछ मिल नहीं पाया |
-०-
उठो उठ कर तलाशें हम,नई सम्भावनाओं को |
करें जी तोड़कर हम अब,नई नित साधनाओं को |
सरलजीवन,सघनवैभव,अधिक आराम तलबी भी,
हटाकर अपने जीवन से,मिटा दें वासनाओं को |
-०-
हमारे दिल में पुरखों का,अभी भी ख्वाब बाकी है |
इसी से आंख में अपनी, हया की आब बाकी है |
मुहब्बत उठ गई शहरों से लेकिन गांव में अब भी,
पुरानी रस्म जिन्दा है,अदब-आदाब बाकी है |
-०-
उदर में आसमानों से, सहेजा बन्द अबरों को |
उतर गहराई में दिल की,कुरेदा कुन्द ज़बरों को|
प्रसवपीड़ा सही जो"राज",उसकी टीस सह-सह कर,
निचोड़ा दर्द दिल का तो,रचा है चन्द सतरों को |
-०-
धनवर्षा,हनुमानमन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
गणतन्त्र हमारा
- डा.राज सक्सेना
भिन्न सभी से सबसे न्यारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
बना विश्व में श्रेष्ठ सभी से,हमें जान से है ये प्यारा |
छब्बीस जनवरी का स्वर्णिमदिन,लेकर खुशियां आया अनगिन |
इस दिन से मुडकर न देखा, करता देश तरक्की प्रति-दिन |
देख रहा विस्मित जग सारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
अंतिमजन तक किया सम्रर्पित,किया प्रशासन जन को अर्पित |
दलित-शोषितों को नियमों से,मिलीं शक्तियां श्रेष्ठ अकल्पित |
हर घर तक पहुंची यह धारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
हुई शक्तियां संवैधानिक , लिखित हो गयीं सब अधिकाधिक |
संविधान अतिश्रेष्ठ बना कर, संसद से करवाया पारित |
जग में ज्यों चमका ध्रुव तारा,भारत का गणतन्त्र हमारा |
शासन जन का जन के द्वारा,है सशक्त जनप्रतिनिधि हमारा |
नियम बनाना,राज चलाना , संसद में सिमटा बल सारा |
शासक-शासन सभी संवारा ,भारत का गणतन्त्र हमारा |
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,खटीमा-२६२३०८(उ०ख०)
मो. ०९४१०७१८७७७
धमकी देकर
- डा.राज सक्सेना
बना दो यह सम्भव हे राम |
धमकी देकर डंसते कैसे, ये मच्छर बदनाम |
कान अगर मिलते हाथी से, कितने आते काम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
यदि जिराफ सी गर्दन होती,हम खजूर खा आते,
सबसे ऊंची डाल पे लटका,सेब तोड़ कर खाते |
घर में बैठे-बैठे खाते, छत पर पड़े बादाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
सारस सी टांगें मिल जातीं,ओलम्पिक में जाते ,
पदक जीतकर सभी दौड़ के,हम भारत जब आते |
एरोड्रम पर करने आते, हमको सभी सलाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
पेट जो मिलता ऊंट सरीखा, जब दावत मे जाते,
पन्द्रह दिन का खाना खाकर्,घर वापस हम आते |
हफ्तों-हफ्तों करते रहते, घर में ही आराम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
बन्दर जैसी तरल चपलता,थोड़ी सी पा जाते ,
छीन कचौड़ी मां के कर से,बैठ पेड़ पर खाते |
बदले में मां को ला देते, पके डाल के आम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
गरूण सरीखे पर मिल जाते, विश्व घूमकर आते,
दिल्ली से न्युयार्क मुफ्त में, निशिदिन आते-जाते |
एयर टिकिट न लेना पड़ता, खर्च न होते दाम |
बना दो यह सम्भव हे राम |
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर ,खटीमा-२६२३०८ (उ०ख०)
कैसा मामा किसका मामा
- डा. राज सक्सेना
कैसा मामा किसका मामा,चंदा लगता किसका मामा |
क्या मामा धरती पर आया ,क्या आकर हमको दुलराया ,.
साथ ले गया कभी गगन में,तारा मंडल भी दिखलाया !
झूठ बोलते खा -मो -खामा,कैसा मामा किसका मामा !
कभी नहीं बाज़ार घुमाया, कभी नहीं पिज्जा खिलवाया,
न बन्दर सी खों-खों करके,जब रोते हम कभी हंसाया !
फिसले तो ना बाजू थामा,कैसा मामा किसका मामा !
कभी नहीं जंगल दिखलाया,ना भालू से कभी मिलाया,
गिफ्ट नहीं कोई दिलवाई,नहीं कथा किस्सा सुनवाया !
ना ढपली न सा रे गा मा,कैसा मामा किसका मामा !
मामा के संग बुढ़िया आती ,साथ एक चरखा भी लाती,
हमें नई नानी मिल जाती,मौज हमारी तब बढ़ जाती !
खादी का सिलती पजामा,कैसा मामा किसका मामा !
मामा है तो अब भी आये,अपने रथ पर हमें बिठाये,
दूर गगन की सैर कराकर,अच्छी-अच्छी कथा सुनाये !
और अधिक न दे अब झामा ,कैसा मामा किसका मामा !
-धन वर्षा ,हनुमान मंदिर,खटीमा-262308 (उ.ख)
मो.- 09410718777
ये तारे सब खोटे
- डा. राज सक्सेना
एक दिवस तारे सब मिलकर,
चंदा के घर आये |
चंदा की मम्मी से सबने,
मीठे बोल सुनाये |
मम्मी तुम चंदा भैया का,
ध्यान नहीं कुछ रखतीं,
इतना बड़ा हो गया फिर भी,
ब्याह नहीं क्यों करतीं |
क्यों बूढा करतीं भैया को,
जल्दी ब्याह करा दो |
सुन्दर सी एक नई नवेली ,
उसको दुल्हन ला दो |
चन्दा की मम्मी सुन बोली,
कैसे ब्याह करादूं |
घटे बढे जो रोज इसी सी,
दुल्हन कैसे ला दूँ |
दिवस अमावस का जब होगा,
कैसे सबर करेगी |
साथ इसी के वह कोमल भी,
हर क्षण सफ़र करेगी |
ये है पुरुष नियति है इसकी,
अजब खेल यह खेले |
पर जो बंधे साथ में इसके,
वह क्योँ यह सब झेले |
सुन संतुष्ट हुए तारे सब,
अपने घर सब लौटे |
चन्दा ने माँ पर भेजे थे,
ये तारे सब खोटे |
-धन वर्षा, हनुमान मंदिर,
खटीमा-262308 (उ.ख)
मो. 09410718777
छोटा हूं इतना
मां मैं क्यों छोटा हूं इतना |
नहीं बड़ा क्यों भय्या जितना |
सब बातों मैं मुझे दबाता ,
छोटा कह कर चुप कर जाता |
फील्ड किनारे मुझे बिठाकर,
घन्टों खेले मुझे दिखा कर |
छ्त पर मुझे नहीं ले जाता |
पर खुद जाकर पतंग उड़ाता |
खुद तो छिप कर चाट उड़ाये,
मिर्च बहुत कह मुझे डराये |
जा मित्रों में गप्प लड़ाता,
मैं जो पहुंचूं तुरत भगाता |
कहता है हर बात में छोटा,
भय्या बड़ा ,बहुत है खोटा |
मैं छोटा क्यों मुझे बता मां,
जल्दी मुझको बड़ा बना मां |
बड़ा हुआ कुछ काम करूंगा,
मां-पापा का नाम करूंगा |
एक नया इतिहास लिखूंगा,
जग में रोशन नाम करूंगा |
प्यारी गौरय्या
पहले भोर हमारे आंगन,
आ जाती थी एक गौरय्या |
बहुत दिनों से नहीं दिखरही,
इधर फुदकती वह गौरय्या |
बचा रात का अन्न पड़ा जो,
फुदक-फुदककर वह खाजाती |
कभी अगर ज्यादा दिखता तो,
वह परिवार बुला ले आती |
चारों ओर घुमा कर गरदन,
झट से चोंच चला जाती थी |
एक किनारे से फुदकी और,
छोर दूसरे आ जाती थी |
नन्हे-नन्हे बच्चे उसके,
उसकी तरह फुदक जाते थे |
नकल उसी की कर आंगन में,
घंण्टों खेल दिखा जाते थे |
बहुत दिनों से आस-पास भी,
नहीं दिख रही वह गौरय्या |
मां हम से कुछ भूल हुई क्या,
क्यों नाराज हुई गौरय्या |
विज्ञान कुण्डलियां
-डा.राजसक्सेना
गाड़ी पर उल्टा लिखा, एम्बुलेंस क्यों मित्र |
आगे गाड़ी जा रही, मिले मिरर को चित्र |
मिले मिरर को चित्र, सदा उल्टा आएगा ,
सीधा लिख दें अगर, पढा कैसे जाएगा |
कहे'राजकविराय', इसी से उल्टा लिखते,
बैकव्यु मिरर में देख, उसे हम सीधा पढते |
-०-
जले बल्ब स्विचआन से,ट्यूब लगाये देर |
पप्पू के मस्तिष्क में,घूम रहा यह फेर |
घूम रहा यह फेर, सुनो पप्पू विज्ञानी,
ट्यूब बिजली के मध्य,चोक स्टार्टर ज्ञानी |
कहे'राजकविराय',पहुंचती जब दोनों में,
लेती थोड़ी देर , इसी से वह उठने में |
-०-
पप्पू मारे हाथ, समझ में कुछ न आता |
क्यों आता है ज्वार,और क्यों आता भाटा |
और् क्यों आता भाटा,लहर यूं बनती क्यों है,
ऊंची उठती लहर,पुनः फिर गिरती क्यों है |
कहे'राजकविराय'गुरुत्वधरा चन्दा से ज्यादा,
इसी वजह से नित्य,ज्वार और भाटा आता |
-०-
पप्पू फ्रिज जब खोलता,फ्रीजर ऊपर होय |
सब में ऊपर देखकर,सिर धुनना ही होय |
सिरधुनना ही होय,खेल ये समझ नआया ,
फ्रीजर ऊपर बना रहा है,हर फ्रिज वाला |
कहे'राज'हवा गर्म, नीचे से ऊपर उठती,
ऊपर फ्रीजर से टकराकर, ठंडी हो जल्दी |
-०-
पृथ्वी अपने अक्ष पर, झुक साढे तेईस |
करती है वह परिक्रमा,गिन कर पूरी तीस |
गिनकर पूरी तीस,ऋतु बदले सूर्य किरन से,
मध्य, मकर, कर्क रेखा पर चाल बदल के |
कहे'राजकविराय', गर्म-ठंडी या तम देखो,
सीधी पड़ती गर्म , नही तो ठंडा क्रम देखो |
-०-
दुखियों पर दया
पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
जो काम और के आ जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
महाराज रन्तिदेव ने अपना,
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |
सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |
जितने भी महापुरुष जग के,
कहते रहते थे बात यही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
गांधी ने इस युग में आकर,
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
तीनों बन्दर
-डा.राज सक्सेना
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |
हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |
हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |
मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |
बापू ने यह सूत्र सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८ (उ०खण्ड)
मो- ०९४१०७१८७७७
दुखियों पर दया
पशुओं पर दया नहीं जिसको,
वह पशुवत है इन्सान नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
देकर दधीचि ने अस्थि-दान,
मानवकुल का कल्याण किया |
शिवि ने बहेलिये निष्ठुर को,
खग रक्षा में निजमांस दिया |
जो काम और के आ जाये,
लगता है तब भगवान वही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
महाराज रन्तिदेव ने अपना,
भोजन तक सबको दे डाला |
भगवान बुद्ध ने दुखहरण हेतु,
एक नया धर्म ही रच डाला |
सम्पूर्ण राज्य और वैभव का,
समझा कणभर भी मूल्य नहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
ईसामसीह ने आगे बढ कर,
संदेश दिया था जनता को |
तीर्थंकर महावीर श्री स्वामी ने,
था श्रेष्ठ कहा इस क्षमता को |
जितने भी महापुरुष जग के,
कहते रहते थे बात यही |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
गांधी ने इस युग में आकर,
इस दया भाव को अपनाया |
आदर्श बने इस के कारण ,
जिसको जग भर ने अपनाया |
उन्नति का है यह मूलमंत्र ,
संशय इसमें है नहीं कहीं |
अपनापन पशु से रखता हो,
वह ही मानव, इंसान वही |
तीनों बन्दर
-डा.राज सक्सेना
गांधी जी के तीनों बन्दर ,
बैठे बाल-पार्क के अन्दर |
सुखकरजीवन को जीने के,
बांट रहे हैं सबको मन्तर |
हाथ कानपर रखकर भोला,
हम सबसे यह मन्तर बोला |
नहीं किसी की सुनो बुराई,
सुखी रहोगे राज ये खोला |
हाथ आंख पर रखकर भाई,
कह्ता यह मत देख बुराई |
अच्छा अच्छा सबकुछ देखो,
नहीं किसी से ठने लड़ाई |
मुख पर हाथ रखे जो रहता,
हाथ हटा कर हम से कहता |
मैं मन्तर यह बता रहा हूं ,
बुरा न बोले सुख से रहता |
बापू ने यह सूत्र सुझाये ,
बन्दर तीन प्रतीक बनाये |
सत्य,शान्ति,सुख रहे हमेशा,
इनके माध्यम से सिखलाये |
धनवर्षा,हनुमान मन्दिर,
खटीमा-२६२३०८ (उ०खण्ड)
मो- ०९४१०७१८७७७
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