समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
आपको , श्री-मान है |
है नहीं संजाल शब्दों का,
हृदय का गान है |
बालपन में लौट कर जो-,
कुछ स्वंय अनुभव किया |
भाव वह मैंने यथावत ,
हर समर्पण कर दिया |
बालकविता , काव्य का-,
मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
किस तरह रस-छंद डालूं,
बिलकुल नहीं संज्ञान है |
किंचित नहीं, मैं भिज्ञ हूँ,
किस भाव से दूं आपको |
मित्रवत बस कर रहा हूं,
भेंट यह श्री-मान को |
आप चाहें तो हृदय इसको-,
लगा कर तार दें |
खुद पढें, सबको पढा कर,
एक नया विस्तार दें |
-डा.राज सक्सेना
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