Tuesday, October 4, 2011

samarpan

समर्पण
'बाल गंगा' का समर्पण,
 आपको , श्री-मान है |
 है नहीं संजाल शब्दों का,
 हृदय    का  गान है |

 बालपन में लौट  कर जो-,
 कुछ स्वंय अनुभव किया |
 भाव वह मैंने   यथावत ,
 हर समर्पण कर   दिया |

 बालकविता ,  काव्य का-,
 मुझको नहीं कुछ ज्ञान है |
 किस तरह रस-छंद डालूं,
 बिलकुल  नहीं   संज्ञान है |

 किंचित नहीं, मैं भिज्ञ हूँ,
 किस भाव से दूं आपको |
 मित्रवत बस कर रहा हूं,
 भेंट  यह  श्री-मान को |

 आप चाहें तो हृदय इसको-,
 लगा    कर     तार   दें |
 खुद पढें, सबको पढा कर,
 एक   नया  विस्तार  दें | 
             -डा.राज सक्सेना 

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