जन जागरूकता और अन्ना हजारे का
जनांदोलन
-डा.राज सक्सेना
पिछ्ले अगस्त के पन्द्रह दिनों के घटनाक्रम
जिसनेपूरे देश को मथ कर रख दिया है को अनेक
विद्वान अपने-अपने दृष्टिकोण से समीक्षित करेंगे,
कुछ इसमें खूबियां निकालेंगे तो कुछ कमियां |
कुछ इसे मील का पत्थर साबित करेंगे और -
कुछ संसदीय जड़ों पर कुठाराघात बतायेंगे |खैर्-
जाकी रही भावना जैसी |समीक्षा हम भी करें-
मगर लीक से हट कर |
आइये हम समीक्षा करें इस ऐतिहासिक्-
आन्दोलन के माध्यम से ,एक साधारण ग्रामीण-
से देश के सबसे प्रिय जननायक के रूप में उभरे
अन्ना हज़ारे ने देश को लीक से हट कर क्या
दिया है | जो जन जागरूकता अन्ना हजारे के
इस जनांदोलन से भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्राप्त
हुई है वह अविस्मरniy य है |
इस दृटिकोण से समीक्षा के लिये पूरे
घटनाक्रम पर एक नज़र डालना आवश्यक है |
सोलह अगस्त से प्रारम्भ इस क्रान्ति की शुरु-
आत तभी से हो गई जब बिना कोई नियम
तोड़े अन्ना को मयूर विहार से गिरफ्तार कर
पहले पुलिस मुख्यालय और फिर तिहाड़ जेल
ले जाया गया | दर असल यह केन्द्र और -
दिल्ली पुलिस की पहली गलती थी जो उनके
ताबूत की पहली कील साबित हुई | वह यह
भूल गये कि इस बार उनकी टक्कर पूरी तरह
ईमानदारी से निःस्वार्थ भाव से पूरी रणनीति
बना कर कुछ अनुशासित संस्थाओं की कमान
में,कुछ भारतीय नौकरशाहों की व्यवस्था सं-
चालन हेतु सर्वश्रेष्ठ ट्रेनिंग प्राप्त पूर्व नौकरशाहों
के पूर्ण समर्पित नेतृत्व मेंतथा केन्द्र में अपनी
ईमानदारी क लिये प्रसिद्ध और आज भी जजों
तक की ईमानदारी पर उंगली उठा सकने की क्षमता
रखने वाले शांति भूषण और शशि भूषण जो अपने
समय -
मे अपनी कार्य़प्रणाली और निष्ठा के लिये -
सुप्रसिद्ध रहे हैं के नेतृत्व में अनुशासित भीड़
के लोग करेंगे जो कोई भी गलती न करने
की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इस रणक्षेत्र में कूदे
हैं |वह भी पूरी तैयारी के साथ | वे जानते-
थे कि इन मौकों पर बड़े आन्दोलनों मे क्या
गलतियां हुआ करती हैं | जिनका सरकारीतन्त्र
फायदा उठा कर बलप्रयोग कर आन्दोलन की
कमर तोड़ने से नहीं चूकता |कुछ तो ऐसे मौके
न आने देने के कारण और कुछ केन्द्र सरकार
के मन्त्रियों और प्रवक्त्ताओं के सबकुछ पुलिस
पर थोप देने की कुटिल चालों से आहत पुलिस
द्वारा कोई भी ज्यादती न करने की नीति के -
चलते भीड़ पर बल प्रयोग न होने से जनता का
मनोबल कायम रहा | इस आन्दोलन ने भवि-
ष्य के जनान्दोलनों के लिये रणनीति और दिशा-
निर्देश दोनों निर्धारित करने का महत्वपूर्ण काम
किया है |
दूसरा महत्वपूर्ण काम इस आन्दोलन के
माध्यम से यह हुआ है कि अन्ना और उनकी टीम्
बिशेष कर केजरीवाल ने तथाकथित महामहिम -
समझने वाले स्वंभू नेताओं को उनकी असलियत
और उनकी हैसियत बता कर उन्हें उनकी औकात
में ला दिया | उनकी पोलें खोलकर उन्हें बगलें-
झांकने को मजबूर कर दिया | बड़बोले कपिल सिब्बल
और चिदम्बरम को अपना मुंह बंद करने पर मजबूर
कर दिया गया | एक प्रसिद्ध कहावत है'चोर के
पांव कितने' , सटीक दृष्टांतों और सजीव उदाहरणों ने
नेताओं को बिल से बाहर ही नहीं निकलने दिया |
फलस्वरुप वे झूठ का सहारा लेकर अपने ऊपर लगे
आरोपों का सशक्त और सटीक जवाब न दे सके |
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस
में कहा है-
'सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहहु मुनिनाथ |
हानि लाभ जीवन मरन,जस अपजस विधि हाथ |
जो आतंक से जनभावनाओं को कुचलने
में विश्वास रखने वाले और जनता को पैर की जूती
समझने वाले मंत्रियों और निर्दयी अफसरों पर
सटीक बैठी |
बाबा राम देव की आधी रात के सूने में कमर
तोड़ कर अपने थोथे दंभ के दिवा सपनों में खोये
इन वाचाल शातिरों को सही सबक देने का यह
सही तरीका था जो सही वक्त पर स्तेमाल किया
गया |
सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है
कि पुलिस और केन्द्र सरकार के हाथ बांधने
में अर्ध्ररात्रि मे बाबा राम देव के समर्थकों पर
और भ्रष्टाचार के ही मुद्दे पर भारतीय युवा-
मोर्चा पर निर्मम पुलिसिया अत्याचार की अप-
राध भावना का भी बहुत बड़ा हाथ था |खैर
इस प्रकरण से देश की युवा पीढ़ी ने गांधी युग
देख लिया | उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन हो गया कि
गांधी जी ने अंग्रेजों जैसी सर्वशक्ति सम्पन्न -
सत्ता से आखिर देश को कैसे छुड़ा लिया |
जो भी हो , बहाना कोई भी रहा नेतृतवविहीन
देश को आधुनिक गांधी मिल गया |जिसमें
भारत का युवावर्ग ही नहीं हर उम्र का नाग-
रिक अपना उज्जवल भविष्य देख रहा है |
इसे इस आन्दोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि
माना जाना चाहिये |
इसी क्रम में यह भी कहा जाना
उचित होगा कि इस प्रकरण ने सत्तामद में
चूर कांग्रेसी मन्त्रियों और पार्टी प्रवक्ताओं को
भी अपने अहंकार के साथ भूलुण्ठित कर -
दिया यह भी इस वक्त की बहुत बड़ी आव-
श्यकता थी जिसका पूरा आनंद भारतीय
जनता जो इनके अहंकार और ऊलजलूल
बकवासो से कुंठित थी को मनोरंजन के ही
अतिरिक्त बोनस के रूप में निःशुल्क प्राप्त
हुआ |कपिल सिब्बल,चिदम्बरम्,मनीष-
तिवारी और दिग्गी जैसे बड़बोले फिर से
वक्त जरूरत पर काम आने के लिये फ्री-
जर में डालदिये गये |
मज़े की बात इस आन्दोलन मे यह
रही कि इस आन्दोलन को तोड़ने के वे सारे
नुस्खे आज़माये गये जिसके लिये कांग्रेस की
टीम कुख्यात है | अन्ना आन्दोलन को कभी
भगवा संरक्षण प्राप्त बता कर मुस्लिम समाज
को इससे अलग करने की कोशिश हुई तो -
कभी दलित विरोधी बताकर दलितवर्ग से का-
टने का प्रयास ,मगर अन्ना टीम के सिपह -
सालार मानों हर वार की तैयारी के साथ रण-
भूमि में उतरे थे | हर वार की काट के -
साथ | आमिर खान की रोज़ाना होने वाली
अफ्तारी में शिर्कत और अन्शन तोड़्ने के लिये
इकरा और सिमरन का चयन अन्त में
इस दुष्प्रचार की भी हवा निकाल गया |उन सां-
सदों की भी बोलती अन्ना टीम के इस मैने-
जमेंट से धड़ाम हो गई |कांग्रेस ने मुस्लिम
धर्मगुरूओं को अपने प्रभाव में ले लेने की -
पहल के चलते 'वन्दे मातरम'के बहाने भाग
न लेने के फतवे के बावजूद काफी बड़ी संख्या
में भाग लेकर भारतीय जनता को स्पष्ट संकेत
दे दिया कि मुस्लिम अब किसी तथाकथित का
बंधुआ बनने को तैयार नहीं है | उधर टीम -
अन्ना ने भी कुछ राष्ट्र भक्त मुस्लिम नेताओं
को तैयार कर रखा था | उन्होंने तुरन्त फ्तवे
खारिज कर दिये अथवा उनके औचित्य पर ही
प्रश्न चिन्ह लगा दिये |भारी संख्या में मुस्लिम
भागीदारी आन्दोलन में होना इसका प्रमाण है |
यह भी इस आन्दोलन की देन है कि लोगों ने
धर्म,क्षेत्रवाद,जातिवाद और वर्गवाद से ऊपर -
उठकर सोचने की शुरुआत की |
इस देश के प्रजान्त्र की बार-बार दुहाई
देने और संसद की गरिमा की बात करने वालों
का प्रजातन्त्र तो देखिये क्षेत्र का अदना सा पु-
लिस कमिश्नर जन आन्दोलन की अनुमति देता
है,उसकी अवधि तै करता है, उसमे भाग लेने
वालों द्वारा क्या बोला जायेगा यह भी तै करना
उसी का विवेक है? वह भी शान्तिव्यवस्था के
नाम पर | क्या बिडम्बना है?
इसके अतिरिक्त जे पी द्वारा दिये गये
'राइट टू रिकाल्'पर सार्थक बह्स कर उसे -
पुनर्जन्म देना भी इस आन्दॉलन के माध्यम
से अन्ना की सौगात है |
सही बात तो यह है कि केन्द्र सर-
कार ने जनता को पुलिस के माध्यम से जो
मूक-बधिर बनाने का षड़यन्त्र रचा था उस-
में अन्ना ने पलीता लगा कर जनता को एक
नई सोच और विरोध प्रकट करने की आवाज
दी है नेता को उसकी असली जगह और -
जनता को अपनी सही जगह बैठने का स्थान -
बताया है |
अन्ना से केन्द्र और राज्य सरकारें कितनी
डरी हुई हैं इससे स्पष्ट है कि अन्ना द्वारा समय-
समय पर पुनःआन्दोलन की धमकी देते ही केन्द्र
और राज्य सरकारों ने देश के स्वंय को अघोषित
शासक -समझने वाले प्रशासन को औकात में लाने
के लिये नियम बनाने प्रारम्भ कर दिये हैं |
वस्तुतः अन्ना ने गांधीगीरी से हक
हासिल करने का अमोघ अस्त्र जनता के हाथ में
थमा दिया है | जिसकी कोई सटीक काट -
वर्तमान सरकार के पास फिलहाल तो नही है |
वैसे केंद्र में सरकार चला रहे लोग भी कम
शातिर नहीं हैं | मनु सिंघवी की अध्यक्षता और
मनीष तिवारी की ज्वायेंट कमेटी में सदस्यता
और जिनका शातिरपन हम लोग रोज देखते हैं |
केंद्र का प्लस प्वाइंट है | देखिये ऊँट किस करवट
बैठता है | किन्तु 'अति का अंत होता है ' शायद
केंद्र सरकार पर यह कहावत चरितार्थ हो रही है |
भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों से सतत घिरती जा रही
सरकार शायद जो घेराबंदी कर रही है उससे
निबटने के लिए ही शायद अन्ना और उनकी टीम
भारतभ्रमण पर जा रही है |
अंत में यह तो कहना ही पडेगा , केंद्र डाल-
डाल है तो अन्ना पात - पात हैं |
चलते -चलते यह भी की , वन्दे मातरम् को
अन्ना और उनकी टीम ने हिंदुत्ववादी नारे के स्व-
रूप से निकाल कर देशव्यापी स्वरूप प्रदान कर
दिया है जो इस आन्दोलन की एक और बड़ी उप-
लब्धि कही जा सकती है | कुल मिला कर अन्ना ने
देश को जागरूक किया है, साहस दिया है , आत्मबल
दिया है और टुकड़ों में बनती मानसिक सोच को एक
ऐसा आयाम दिया है जो एक होकर लड़ने का जज्बा
पैदा करता है यही इस जनांदोलन और अन्ना की इस
देश को जनजागरूकता के रूप में सबसे बड़ी देन है |
जिसकी जनमानस को नितांत आवश्यकता थी |
धन वर्षा, हनुमान मंदिर, खटीमा -262308 (उ.ख.)
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