Thursday, October 20, 2011

शोध पत्र
विषय: मध्यप्रदेष की महिला बाल साहित्यकारों का प्रदेष के बाल साहित्य में योगदान
बाल साहित्य वह साहित्य है, जो बालकों के लिए बोधगम्य, रुचिपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक साहित्य सुलभता से उपलब्ध हो। बाल साहित्य में महिला साहित्यकार सृजन करें तो निष्चित ही वह साहित्य बच्चों से जुड़ेगा और उनके दिल को छुएगा। मेरा मानना है कि - “साहित्य का सृजन महिलाएं करें, कवित्व उनके अन्तःकरण से फूटे, संगीत उनकी आत्मा गाए, चित्र उनके सपनों में रंगे जाएं तो फिर धरती पर श्रेष्ठता और सहृदयता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ेगा।”
यदि हम मध्यप्रदेष के बारे में जान लें तो मैं समझती हँू कि पाठकगण बाल साहित्य में मध्यप्रदेष की महिला बालसाहित्यकारों के योगदान को बेहतर रूप से समझ पायेंगे। आज भारत की कुल जनसंख्या 1.21 अरब पहुँच गई है। इसमें पुरुषों की संख्या 62.3 करोड़ है तथा महिलाओं की संख्या 58.64 करोड़ है। उत्तरप्रदेष जनसंख्या की दृष्टि से सबसे आगे है और लक्ष्यद्वीप सबसे पीछे है।
अब हम बात करते हैं मध्यप्रदेष की जनसंख्या की। मध्यप्रदेष की जनसंख्या की वृद्धि दर, जो कि 24 फीसदी से कम होकर 20.30 फीसदी हो गई है। मध्यप्रदेष की जनसंख्या आज 7,25,97,565 है, इसमें लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 930 महिलाएं हैं। यह म.प्र. की सांख्यिकीय जानकारी थी।
आज हमारे भारत देष में महिला साहित्यकारों की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक महिला साहित्यकारों ने इस देष की माटी में जन्म लिया और भारतीय साहित्य को विष्व पटल पर अंकित किया है। इनके साहित्य सृजन की खुषबू चहँु ओर व्याप्त है। इन महिला साहित्यकारों में बालसाहित्यकारों का विषेष महत्व है। बालसाहित्यकार और वो भी महिला, जैसे सोने पे सुहागा। यह मैं इसलिए नहीं कह रही हँू क्योंकि मैं स्वयं एक महिला हँू बल्कि मेरा मानना है कि बच्चे में साहित्य का संस्कार सबसे पहले माँ द्वारा ही रोपित किया जाता है। बच्चा जब षिषु रूप में माँ के आँचल में होता है, तब माँ ही मौखिक रूप से उसे भाषा और साहित्य का संस्कार देकर सिंचित और पल्लवित करती है। मेरी इस बात से संभवतः आज पूरा भारत देष सहमत होगा। 
बालसाहित्य लेखन की परम्परा उसके बाद में आती है। बाल साहित्य की परम्परा अत्यंत प्राचीन है। विष्णुदत्त शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों में पषु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को षिक्षित किया। कहानियाँ सुनना तो बच्चों की सबसे प्यारी आदत है। कहानियों के माध्यम से ही हम बच्चों को षिक्षा प्रदान करते हैं। बचपन में मैंने स्वयं अपनी दादी, नानी और माँ से कहानियाँ सुनी हैं। जहाँ बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं, वहाँ यह परंपरा आज भी फलीभूत हो रही है। इसकी गवाह स्वयं मेरी माँ और उनका पोता है। मेरी माँ अपने पोते को कहानी सुनाते-सुनाते कभी परियों के देष ले जाती हैं, तो कभी सत्य जैसी यथार्थवादी बातें सिखाती हैं। साहस, बलिदान, त्याग और परिश्रम ऐसे गुण हैं, जिसके आधार पर एक व्यक्ति आगे बढ़ता है और ये सब गुण उसे अपनी माँ से ही प्राप्त होते हैं। बच्चे का अधिक से अधिक समय तो माँ के साथ ही गुज़रता है, सीखने का पहला पाठ माँ से ही प्रारंभ होता है, क्योंकि जो हाथ पालने में बच्चे को झुलाते हैं वे ही उसे सारी दुनिया की जानकारी देते हैं। 
मध्यप्रदेष में महिला बालसाहित्यकारों का बहुत योगदान रहा है। उनकी कालजयी रचना ‘झाँसी की रानी’ में जहाँ एक ओर महारानी लक्ष्मीबाई की जीवन गाथा का गौरवपूर्ण वर्णन है, वहीं दूसरी ओर एक नन्हें से बच्चे की उन कोमल भावनाओं का वर्णन है जिसमें बालगोपाल कन्हैया का प्रभाव उसके बालमन पर स्पष्ट दिखाई देता है। सुभद्राजी द्वारा रचित इन रचनाओं की कुछ पक्तियाँ इस प्रकार हैं -
“बुंदेले हरबालों के मुख हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी....।”
तथा
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे....।
आज हमारे देष का हर वर्ग इन पक्तियों से वाकि़फ है। जीहाँ! इन पक्तियों की रचयिता श्रीमती सुभद्रा कुमारी चैहान के बारे में मैं बात कर रही हँू। 16 अगस्त 1904 में जन्मी सुभद्राजी बाल्यकाल से ही कविताएँ रचती थीं। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। आपके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाषित हुए हैं, लेकिन आपकी प्रसिद्धि “झाँसी की रानी” कविता के कारण है। आप राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं। किन्तु आपने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातानाएँ सहने के पष्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया है। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है। यह वह कारण है कि आपकी रचनाएँ सादगीपूर्ण एवं हृदयग्राही हैं। 
आप सोचेंगे कि मैं मध्यप्रदेष में क्यों सुभद्राजी को शामिल कर रही हँू, वो इसलिए कि आपकी कर्मभूमि जबलपुर मध्यप्रदेष ही रही है। सन् 1919 में खण्डवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाहोपरांत आप जबलपुर आ गई थीं। सन् 1921 में गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली आप प्रथम महिला थीं। सुभद्राजी दो बार जेल भी गई थीं।  सुभद्रा कुमारी चैहान की जीवनी इनकी पुत्री सुधा चैहान ने “मिला तेज से तेज” नामक पुस्तक में लिखी है। 
इसे हँस प्रकाषन, इलाहाबाद ने प्रकाषित किया है। सुभद्राजी एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम सेनानी भी थीं। मध्यप्रदेष की डाॅ. मंगला अनुज ने सुभद्रा कुमारी चैहानजी पर एक पुस्तक लिखी है। जो उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाष डालती है। इसके साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है। 
सुभद्रा कुमारी चैहान की कृतियों में कहानी संग्रह (बिखरे मोती, उन्मादिनी, सीधे-सीधे चित्र) इसके अलावा कविता संग्रह मुकुल की त्रिधारा है। सुभद्रा कुमारी चैहान के साहित्यिक और राष्ट्रप्रेम की भावना के योगदान के लिए आपको भारतीय तटरक्षक सेना ने 22 अप्रैल 2006 को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चैहान नाम दिया है।  इसके अलावा भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त सन् 1976 को सुभद्रा कुमारी चैहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक टिकट भी जारी किया है। आप जैसी महान विभूति से हम सदैव प्रेरणा और मार्गदर्षन लेते रहेंगे।
बाल साहित्य का उद्देष्य बाल पाठकों का मनोरंजन करना ही नहीं अपितु उन्हें आज के जीवन की सच्चाईयों से परिचित कराना भी है। आज के बच्चे कल भारत की बागडोर संभालेंगे, उसी के अनुसार उनका चरित्र निर्माण भी होना चाहिए। यह जि़म्मेदारी भी बालसाहित्यकारों की ही है। कहानियों के द्वारा हम बच्चों को षिक्षा प्रदान करके उनका चरित्र निर्माण कर सकते हैं, तभी तो आज के ये नौनिहाल कल बड़े होकर जीवन के संघर्षों से जूझ सकेंगे। इन बच्चों को बड़े होकर अंतरिक्ष की यात्रा करना है, चाँद पर जाना है और दूसरे ग्रहों पर भी अपना परचम लहराना है। बाल साहित्य की लेखिकाओं को बाल मनोविज्ञान की पूरी जानकारी होना मैं ज़रूरी मानती हँू। वो इसलिए कि बाल मनोविज्ञान की समझ रखने के कारण ही बच्चों के लिए कहानी, कविता या बाल उपन्यास लिखा जा सकता है। बच्चों का मन मक्खन की तरह नरम और निर्मल होता है, कहानियों और कविताओं के माध्यम से हम उनके मन को वह शक्ति प्रदान कर सकते हैं, जो उनके मन के भीतर जाकर संस्कार, समर्पण, सद्भावना और भारतीय संस्कृति के तत्व बिठा सकते हैं।
ऐसी ही सोच,समझ और भावना के साथ मध्यप्रदेष की महिला बालसाहित्यकारों ने बाल साहित्य सृजन में विषेष योगदान देकर बाल साहित्य को गरिमा प्रदान की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें “द संडे इंडियन” के सितम्बर अंक में मिलता है। “देष की श्रेष्ठ 25 महिला रचनाकारों में से कम से कम चार तो यहीं से हैं, और कई अन्य उस सूची में शामिल होने की हकदार दावेदार भी। श्रेष्ठ 111 महिला रचनाकारों में शुमार होने के लिए हमें सर्वाधिक नाम मध्यप्रदेष से ही मिले।”  हिन्दी साहित्यकार के रूप में मालती जोषी का नाम हिन्दी साहित्य पटल पर मध्यप्रदेष की अग्रणी लेखिकाओं में है। श्रीमती जोषी ने 60 के दषक में बाल साहित्य का सृजन कर राजेष प्रकाषन दिल्ली से प्रकाषित कहानी संग्रह ‘परीक्षा पुरस्कार’, ‘स्नेह के स्वर’ लिखा। जिसमें अपने बच्चों की नित नई जिज्ञासाओं, भावनाओं और षिक्षा को ध्यान में रखकर अपने बच्चों के लिए ही बालसाहित्य सृजन की शुरुआत की। इसी दौरान पराग, धर्मयुग पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाओं का प्रकाषन होता रहा। बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी संग्रह “छोटा सा मन बड़ा सा दुःख” हांलाकि छोटे बच्चों के लिए नहीं है लेकिन यह संग्रह आम पाठक वर्ग के लिए है जिसे पढ़कर वह बच्चों की भावनाओं को समझकर उनका पालन-पोषण कर सकें। आपको अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जिनमें अक्षरादित्य सम्मान, मध्यप्रदेष हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष 1998 में भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है। इसके अलावा इस वर्ष 2011 में आपको ओजस्विनी, दुष्यंत कुमार सम्मान एवं ऊषा देवी मित्रा सम्मान से भी अलंकृत किया गया है।
मध्यप्रदेष के बालसाहित्य में मालती बसंत का नाम न आए तो मध्यप्रदेष के महिला बालसाहित्यकारों की चर्चा अधूरी मानी जाएगी। वर्तमान में श्रीमती मालती बसंत भोपाल के शासकीय शाला में प्राचार्य के पद पर कार्यरत् हैं। मालतीजी की अब तक बालसाहित्य की प्रकाषित कृतियों में 11 बाल कहानी संग्रह एवं 2 उपन्यास हैं तथा आपका एक काव्य संग्रह शीघ्र ही बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध होगा। आपकी प्रकाषित पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है:-
चंदा की शरारत, तोतों की दुनिया, नईदिषा, सार्थक जीवन, षिक्षाप्रद बालकथा, मनोरंजक बालकथायें, बाल मनोवैज्ञानिक कहानियाँ, माँ की कहानी, बाल विज्ञान कथायें, सच्चा धर्म सभी कहानी संग्रह हैं। इसके अलावा दादा की सैर एवं राहुल दो उपन्यास संग्रह हैं।
मालती बसंतजी को प्राप्त सम्मान और पुरस्कारों की सूची भी उनकी कृतियों की तरह लम्बी है, लेकिन मैं यहाँ कुछ मुख्य सम्मानों का उल्लेख कर रही हँू, जो इस प्रकार हैं - हरिप्रसाद पाठक स्मृति बाल साहित्य सम्मान (1999), भारतेन्दु हरिष्चन्द्र सूचना प्रसारण विभाग, भारत शासन दिल्ली (2000), लक्ष्मण प्रसाद अग्रवाल बाल साहित्य संवर्धन सम्मान, मुरादाबाद, रविषंकर शुक्ल साहित्य अकादमी, म.प्र. शासन (2004), देवी अहिल्याबाई बाल साहित्य सृजन सम्मान, इंदौर (2006) चन्द्रकान्त जायसवाल बाल साहित्य सम्मान, म.प्र. लेखक संघ, भोपाल, राम बिटोली सक्सेना सम्मान, बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल, (2009)। इनके अलावा राष्ट्रीय बाल भवन, दिल्ली मंे भागीदारी (2006), बाल साहित्य समीक्षा आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित अक्टूबर 2004 का अंक कानपुर उ.प्र. द्वारा प्रकाषित। आपके साहित्य सृजन और बाल साहित्य के योगदान के कारण आपके ऊपर बरकतउल्ला वि.वि., भोपाल से सन 2006, एम.ए. पूर्वार्ध में कीर्ति जुल्मे द्वारा लघुषोध प्रबंध लिखा गया। मालती बसंत का साहित्य एक अनुषीलन विषय पर शोध कार्य, कुमारी मंजू पटेल द्वारा देवी अहिल्या वि.वि. से किया गया।  मालतीजी ने “स्वतंत्रता के पष्चात बाल उपन्यास का समीक्षात्मक अध्ययन” विषय पर सन 2010 में अपना शोध कार्य पूर्ण किया है।
आपकी रचनाऐं स्नेह, समझ-झरोखा, बाल प्रहरी, बाल वाटिका, अपना बचपन, देवपुत्र तथा दैनिक भास्कर, नईदुनिया में बच्चों के स्तंभ में निरंतर प्रकाषित होती रहती हैं। इसके अलावा देष के सभी बाल पत्र-पत्रिकाओं एवं बाल अखबारों में बच्चे आपकी रचनाऐं पढ़ते रहते हैं।
बाल साहित्य की दषा और दिषा के बारे में भी लेखिका का दृष्टिकोण स्पष्ट है। उनका मानना है कि आज के बच्चे परिपक्व हैं, साथ ही वे ऐसे अभिमन्यु हैं जिन्हें आज बाल साहित्य दिषा दे सकता है। वर्तमान में लिखे जा रहे बाल साहित्य को वह पर्याप्त मानती हैं और यह युग उनके अनुसार बाल साहित्य का स्वर्णिम युग है। बच्चों की षिक्षाप्रद बाल कथाओं में आपने ‘पष्चाताप के आँसू’ नामक कहानी में उन्होंने एक राजा के पष्चाताप का वर्णन किया है, तो वहीं दूसरी ओर बोलते पत्थर नाम कहानी में बच्चों को घमंड न करने का पाठ पढ़ाया है। इन षिक्षाप्रद बालकथाओं को पढ़कर बच्चे षिक्षित और संस्कारित हो रहे हैं। 
बाल साहित्य में मध्यप्रदेष लेखिका संघ की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमती उषा जायसवाल का योगदान भी विषेष है। आप अध्यापिका होने के कारण बच्चों के बीच रहकर बाल मनोविज्ञान को जानकर और समझकर साथ ही बी.ए. की कक्षा में षिक्षा मनोविज्ञान विषय के बारे में गहन अध्ययन करती रही हैं। इसी कारण आपका बाल साहित्य लेखन की ओर रुझान बढ़ा। आप 60 के दषक से निरंतर लिख रही हैं। आपकी रचनाएं समझ-झरोखा तथा समाचार पत्रों में प्रकाषित होने के साथ ही भोपाल से निकलने वाली स्नेह मासिक बाल पत्रिका तथा इंदौर से प्रकाषित नईदुनिया अखबार में प्रकाषित होती रहती हैं। एनसीईआरटी प्राइमरी षिक्षक तथा एससीआरटी की पलाष में शैक्षणिक बाल साहित्य से जुड़े लेख एवं नवाचार के खेल-खेल में प्रकाषित हुई हैं। 6 वर्षों से बाल मासिक अखबार “अपना बचपन” एवं बाल चेतना का समाचार पत्र में निरंतर एक स्तंभ - “मध्यप्रदेष के गौरवषाली  किले”, के माध्यम से उषाजी ने बाल पाठकों हर अंक में एक किले का परिचय कराया है। आपकी प्रकाषित कृतियों में ‘पेड़ की महानता’, ‘चमत्कारी सिक्का’, ‘नारियल का गर्व’, ‘जीवन में स्वच्छता का महत्व’ हैं। ये चारों एक साथ वर्ष 2004 में प्रकाषित हुई हैं। उषाजी के प्रेरणास्रोत उनके जीवनसाथी श्री जायसवाल का लेखन एवं प्रकाषन में पूर्ण योगदान रहता है। आपको मिले सम्मानों की सूची बहुत लंबी है, जिनमें इंद्रा बहादुर खरे स्मृति सम्मान (वर्ष 2005), बालमित्र नर्मदा दिव्य अलंकरण, खण्डवा, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर तथा सहयोगी संस्था के रूप में बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध संस्थान केन्द्र के रूप में सारस्वत सम्मान (वर्ष 2010) प्राप्त हुआ। भोपाल से प्रकाषित मासिक बाल पत्रिका ‘स्नेह’ में प्रकाषित ‘और नारियल का गर्व टूट गया’  कहानी में उषाजी ने बच्चों को षिक्षा दी है कि “संसार में कोई चीज न छोटी है न बड़ी। हमें अपने बड़े होने का अहंकार कभी नहीं करना चाहिए।” 
बहुभाषाविद् डाॅ. विनय राजाराम कला, संस्कृति, दर्षन एवं भाषा मर्मज्ञ होने के साथ-साथ हिन्दी बाल साहित्य में गहरी पैठ रखती हैं। मातृभाषा उडि़या होने के बावजूद हिन्दी साहित्य में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 1952 में भुवनेष्वर में जन्मीं डाॅ. विनय ने हिन्दी में पी.एच.डी की। उडि़या, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, ग्रीक, डिंगल एवं मालवी भाषा का भी उन्हें अच्छा ज्ञान है। नानी की कहानियाँ, अटकन मटकन (कविता संग्रह), बौना बरगद उनकी कृतियाँ हंै। बौना बरगद रचना के माध्यम से विनयजी ने बरगद की व्यथा का सटीक चित्रण किया है। आप भोपाल स्थित सत्यसांई काॅलेज में हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर रहते हुए निरंतर हिन्दी साहित्य की सेवा में सक्रीय हैं। डाॅ. विनय राजारामजी को भी 21वीं सदी की श्रेष्ठ 111 महिला रचनाकारों में शामिल किया गया है। 
इन्हीं भावनाओं को चरितार्थ करती हैं भोपाल की लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं बाल साहित्यकार श्रीमती आषा शर्मा, जो कि उम्र के इस पड़ाव में भी बच्चों के समान सरल और सहज हैं। बच्चों को देषप्रेम का संदेष देती बाल कविता संग्रह ‘उठो बहादुर वीर सपूतों’ ‘ऊँचे षिखर पर जाना है’, ‘टिक-टिक, टिक-टिक चली घड़ी’, ‘मम्मी मैं कब बड़ा बनूंगा’ के अलावा बाल कहानियाँ ‘पचास पेड़’, ‘नया बुधवार’ हैं। आषाजी को कला मन्दिर द्वारा पवैया पुरस्कार 2001, निर्मलादेवी स्मृति पुरस्कार 2003, गाजियाबाद, राष्ट्र गौरव सम्मान, खण्डवा, संस्कार भारती द्वारा सम्मान 2004, कुसुम कुमारी जैन स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य सम्मान 2010, श्रीमती सुमन चतुर्वेदी श्रेष्ठ साधना सम्मान 2010 प्राप्त हो चुके हैं। भोपाल लेखक संघ द्वारा बाल साहित्य सम्मान 2011, के लिए आपके नाम की घोषणा भी हो चुकी है। आषाजी अपने आत्मकथ्य के प्रति पूर्ण समर्पित हैं, जो इस प्रकार है -
“जहाँ गद्य नहीं, जहा पद्य नहीं, जहा छन्द या अलंकार नहीं,
ऐसा जीवन पषु सा होगा, यह जीवन मुझे स्वीकार नहीं।
महिला बालसाहित्यकार द्वारा बालमन को प्रदर्षित करती आषाजी की यह पक्तियाँ बेटे द्वारा माँ के लिए कही गई हैं जो इस प्रकार हैं - 
“अम्मा कैसे कर लेती हो घर के सारे काम?
नहीं चाहती क्या तुम करना थोड़ा भी आराम?...........” 
मध्यप्रदेष मण्डला की बालसाहित्कार सावत्री जगदीष का जन्म 25 जनवरी 1945 को हुआ। सावित्रीजी सेवानिवृत्त उच्च श्रेणी षिक्षिका के साथ स्वतंत्र लेखन एवं समाज सेवा में अग्रसर हैं। आपकी अब तक बालसाहित्य में प्रकाषित स्वर व्यंजन गीतमाला, बालगीत, आओ गीत गाएँ एवं गीतों की कहानी काव्य-गीत संग्रह हैं। इसके अलावा कहानी संग्रह - सबक, लाल, गाँव की सीख एवं बालषक्ति शामिल हैं। 
आपको प्रदेष एवं देष की डेढ़ दर्जन साहित्यिक संस्थाओं द्वारा साहित्यिक योगदान हेतु अलंकृत एवं सम्मानित किया जा चुका है।   
आसमान नीला क्यों है?, सुबह का सूरज लाल क्यों दिखता है? और विज्ञान में हो रहे नित नए अविष्कारों के बारे में जानने की जिज्ञासा बच्चों के मन में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। इन्हीं वैज्ञानिक आविष्कारों के बारे में बच्चों को जानकारी देती हैं सुलभा माकोड़े का कहानी संग्रह-सुबह का सूरज, विज्ञान आजतक, विज्ञान हमारे आसपास। दैनिक जीवन की घटनाओं का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देते हुए सुलभजी की रचनाएं बच्चों को लेख और चित्रों के द्वारा आसानी से ग्राह्य होती हैं। वर्तमान में आप मा.षि.मं., भोपाल मध्यप्रदेष में सहायक प्राध्यापक हैं। 
6 दिसम्बर 1957 को जन्मी श्रीमती कुमकुम गुप्ता पूर्व सहायक अध्यापिका रह चुकी हैं। “बच्चों के बोल” नामक कविता संग्रह का प्रकाषन सन 2000 में भोपाल के करवट प्रकाषन ने किया। आपकी कविताओं में बाल सुलभ मन की मनमोहक भावभंगिमाओं का सजीव चित्रण होता है। बच्चों की अकांक्षाओं, विचारों के विविध रंग यथा:- सूरज, चिडि़या, होली, राखी कविताओं में शब्दों की कूची से मनोहारी चित्र अंकित किए गए हैं। आज़ादी पर्व पर लिखी गई कविता की पक्तियाँ इस प्रकार हैं:-
सुख वैभव पाकर सचमुच, हम भूले वीरों के बलिदान,
निजी स्वार्थ के घेरे में फँस, भूले भारत माँ का मान। 
आपकी प्रकाषित कृतियों में बालगीत संग्रह, बच्चों के बोल, शब्द बन गए सेतु (कविता संग्रह) हैं। आपका रचना सृजन निरंतर जारी है।
27 अक्टूबर 1954 पिपरिया, जिला होषंगाबाद में जन्मी श्रीमती इंदु पाराषर रसायन ष्षास्त्र स्नातकोत्तर, बीएड, एवं संस्कृत-को विद हैं। आपको राज्यस्तरीय श्रेष्ठ नवाचारी षिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। विज्ञान षिक्षक एवं व्याख्याता रसायन शास्त्र, नवाचार एवं साहित्य सृजन-विज्ञान षिक्षक के रूप में कार्य करते हुए, विज्ञान षिक्षण को सरल बनाने हेतु विज्ञान विषय को प्राथमिक से हाई स्कूल तक की कक्षाओं के लिए अनेकों अभिनव षिक्षण सामग्रियों का सृजन किया है। आपने कविताएं, नाटक लिखकर उनका मंचन करवाया, नीति कथाएं, काव्य रचनाएं, देषभक्ति गीत आदि रचनाओं का प्रकाषन एवं प्रसारण पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाषवाणी इंदौर से हुआ है। आपकी “कविता में विज्ञान”  नामक 6 पुस्तिकाओं का सेट प्रकाषित हो चुका है। “बच्चों देष तुम्हारा” नामक पुस्तिकाएं बालकों को देष की संस्कृति, सभ्यता व जीवन मूल्यों के बारे में अवगत कराते हुए उन्हें शहीदों के बलिदानों की याद दिलाते हुए आज़ादी का मोल भी बताती हैं।
नन्हें “पलछिन” बालगीत संग्रह की रचनाकार कुलतार कौर कक्कर म.प्र. शासन में प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत्तमान हैं। कविता, लेख, लघु कथा विधाओं में बच्चों के लिए साहित्य सृजन कर रही हैं। आपकी प्रकाषित कृतियों में - दषमेष दर्षन, स्वामी विवेकानंद (दोनों खण्ड काव्य), प्रतिबिम्ब, अमितोज सुमन (दोनों काव्य संग्रह) हैं। संगत संसार में आपकी कविताओं का नियमित प्रकाषन होता रहता है। कुलतार कौरजी को कला मन्दिर भोपाल, म.प्र. द्वारा माहेष्वरी सम्मान (2007) से सम्मानित किया जा चुका है। बचपन के सौन्दर्य की प्रत्येक कल्पना अपनी पराकाष्ठा को छू लेती है। कुछ ऐसे ही भोले, रंगीले, रसीले, मधुरिम विचारों से अनुप्राणित होकर कुलतारजी ने इस छोटी सी पुस्तक की रचना कर डाली है। कैलेण्डर के महत्व को दर्षाते हुए आपकी कविता की पक्तियाँ हैं-
‘घर में टँगा हुआ कैलेण्डर, हमको डेट बताता है।
कैलेण्डर हमारा तुम्हारा सदा सदा का नाता है।’
हर साल बदल जाता है, फिर यह नया रूप ले आता है,
इसके साथ ही जीवन चलता, नई राह दिखलाता है। 
जुन्नारदेव, जिला-छिंदवाड़ा म.प्र. में जन्मी श्रीमती श्यामा गुप्ता दर्षना, बीए, बीटीआई, संस्कृत विषारद हैं। एक बाल साहित्कार के रूप में आपके दो कविता संग्रह प्रकाषित हो चुके हैं। उन संग्रहों के द्वारा आपको ख्याति भी अर्जित हुई है। “हरियाली की ध्वजा फहरायें” बाल कविता संग्रह की सभी कविताएं ग्लोबल वार्मिंग की चिंता करती हैं। मानव के अस्तित्व के लिए श्यामाजी पर्यावरण का स्वच्छ एवं संतुलित होना आवष्यक मानती हैं। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के संबंध में आपकी यह कृति बच्चों का ज्ञानार्जन कर रही है। आपकी कविता की पक्तियाँ इस प्रकार हैं -
‘अहा! फलों से सजता मौसम, हर मौसम के फल हम पाते।
आम, पपीता, जाम कभी, छककर हम अंगूर भी खाते। ’
श्यामाजी को हिन्दी जगत के रत्न सम्मान आलमपुर, भिण्ड, म.प्र., साहित्य भूषण माहेष्वरी सम्मान, भोपाल (2009) तथा श्रीमती रुक्मणी देवी चैधरी बाल साहित्य पुरस्कार                                                                                 मिल चुका है।
बच्चों के षिक्षाप्रद नाटक लिखकर श्रीमती साधना श्रीवास्तव अपने विचारों के द्वारा उनकी बाल सुलभ क्रीड़ाएं, बाल मनोविज्ञान को दर्षाती हैं। आपका जन्म 15 फरवरी 1959 को भोपाल म.प्र. में हुआ। आप केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2 में षिक्षिका के पद पर पदस्थ हैं। आपको नाटक लेखन में पुरस्कृत भी किया जा चुका है। साधनाजी के बारे में प्रसिद्ध नाटककार प्रो. सतीष मेहता कहते हैं कि - ‘नाटकों द्वारा उन्होंने बच्चों को अनेक उपयोगी संदेष दिए हैं, जो हमारे समाज के लिए हितकारी हैं। प्रदूषित पर्यावरण, वनों का संरक्षण, स्वास्थ्य, रक्षा, सफाई, महिला सषक्तिकरण, संयुक्त परिवार, बुजुर्गों का सम्मान, राजभाषा हिन्दी की अवहेलना, वगैरह विषयों को समेट कर साधना जी ने बच्चों को ऐसा मार्गदर्षन दिया है, जो नई पीढ़ी को प्रषिक्षित कर भविष्य को उज्जवल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। नाटकों की भाषा और तेवर बाल सुलभ हैं और आसानी से बच्चों को लुभाने में सक्षम हैं। विद्यालयों एवं बाल संस्थाओं में इन नाटकों का मंचन निःसंदेह समाज को लाभान्वित करेगा। ’
बालकथा संग्रह “बँूद जो बन गई मोती” की लेखिका रंजना फतेपुरकर, हिन्दी साहित्य में एमए हैं। वर्तमान में आप विजया बैंक इंदौर में विषेष सहायक के पद पर कार्यरत् हैं। टिमटिम तारे (बाल कविता संग्रह) में बच्चों के मासूम चेहरों की मुस्कान से प्रेरित है। बच्चों की नज़रों से उनकी दुनिया देखने की कोषिष तथा “इन्द्रधनुष के झूले हैं”, ‘वर्षा की रिमझिम फुहारें हैं’, ‘रंग बिरंगे झूमते फूल हैं’, नई सुबह में चहकती गौरैया है, तथा ‘सपनों के संसार में खेलती परियाँ’ जैसी कविताएँ बच्चों के चेहरों पर मुस्कानों के फूल खिलाने की कामना से लिखी गई हैं। आपकी रचनाएँ आकाषवाणी इन्दौर से भी प्रसारित हुई हैं। आपकी कविताओं की पक्तियाँ इस प्रकार हैं:-
‘मैंने मुस्कान को मोर पँखों में तलाषा वो रंगो में छुप गई
पर जब मैंने रोते बच्चे को हँसाया, मेरी खोई मुस्कान मुझे मिल गई’ 
स्नेहलता सोनटके द्वारा रचित ‘नानी का गाँव’ में आपने ‘सूरज देखा’, ‘नन्हें ने चाँद देखा’, ‘छुक छुक’, ‘बचपन की बातें’, ‘षाला’, ‘गिनती’, ‘पेंसिल’, ‘तिरंगा झंडा’, जैसी रोचक और बच्चों के बाल मनोविज्ञान, देषप्रेम से जुड़ी रचनाएं हैं। वह मानती हैं कि नन्हें बच्चों को जानवरों, पौधों की जानकारी देने का प्रयास इस संग्रह के माध्यम से कर रही हैं। आपकी प्रकाषित कृतियों में ‘सोने का कछुआ, पुराना खंडहर (बालकथा संग्रह)’, ‘वेलेन्टाईन डे (कविता संग्रह)’, ‘गीत गुनगुनाते चलो (गीत संकलन)’, ‘कलम का डाॅटकाॅम (काव्य संकलन)’ हैं। सन 2003 में आपको कलम का गौरव सम्मान, भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान, इलाहाबाद से साहित्य षिरोमणि की उपाधि प्राप्त है। ‘पाँच परियाँ ’ कहानी के माध्यम से स्नेहलताजी ने बच्चों को स्वपनलोक की सैर कराकर आनंदित किया है।
भूपिंदर कौर भी भोपाल के बालसाहित्य में एक चिर परिचित नाम हैं। स्नेह बाल मासिक पत्रिका के नवम्बर-दिसम्बर 2002 में प्रकाषित ‘आज़ादी’ नामक कहानी में टिल्लू एवं टाॅमी के संवादों के द्वारा बच्चों को आज़ादी का महत्व समझाया है। कटनी जिला की बालसाहित्यकार श्रीमती सुधा गुप्ता ‘अमृता’ का मध्यप्रदेष के बाल साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपके कविता संग्रह ‘ताकि बची रहे हरियाली’ जिसमें 55 गीतों का समावेष है। आपको बाल कल्याण केन्द्र, कानपुर, बाल साहित्य शोध केन्द्र, इंदौर एवं बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 2010 का सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया। 
हिन्दी साहित्य में स्वर्णपदक प्राप्त इंदौर (म.प्र.) निवासी डाॅ. पुष्पारानी गर्ग ने राष्ट्रकवि ‘रामधारी सिंह दिनकर’ के सम्पूर्ण गद्य साहित्य पर शोधकार्य किया है। आपका बालगीत संग्रह ‘आओ मिलकर गाएँ हम’ जीवन के सबसे मधुर एवं रोचक क्षणों की मीठी-मीठी खुष्बुओं से संजोया है। आप लिखते समय बच्चों की तरह गुगगुनाकर चिन्तामुक्त रहती हैं। वर्ष 2003 में आपको ‘महादेवी वर्मा अलंकरण’मथुरा, भारती भूषण सम्मान, इलाहाबाद (2006), स्व. अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण, सागर (2006) से भी सम्मानित किया गया है। 
कम्प्यूटर के महत्व को बताती श्रीमती गर्ग की कविता इस प्रकार है:-
कीबोर्ड पर टाइप करके दूर दूर ईमेल भेजता,
देष विदेष के दोस्तों से चैटिंग भी करवाता है। 
आईसेक्ट विष्वविद्यालय में हिन्दी की विभागाध्यक्ष डाॅ. लता अग्रवाल की प्रकाषित पुस्तक ‘मुस्कान’ (काव्य संग्रह, 2007), आओ जाने भाषा (2009), खेल-खेल में भाषा (2010), असर आपका (2011) हैं। आपको साहित्य के क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान हेतु ग्रोवर सम्मान, षिक्षा रष्मि सम्मान, होषंगाबाद, बाल कल्याण एवं शोध संस्थान भोपाल द्वारा षिक्षक सम्मान भी प्राप्त हैं। वर्तमान बालसाहित्य को लेकर आपका मानना है कि चिन्तन की आवष्यकता है।
बाल चन्दन यात्रा (बाल कहानी संग्रह) और पावन बचपन बाल कविता संग्रह की रचियता श्रीमती मुक्ता चंदानी हिन्दी एवं सिन्धी दोनों भाषाओं में समान रूप से लिखकर बच्चों को कविता के माध्यम से संस्कार एवं षिक्षा प्रदान कर रही हैं। वह बच्चों को ईष्वर की सबसे सुन्दर रचना मानती हैं तथा बच्चों के क्रिया कलापों से अपने बचपन की यादें भी साझा करती हैं।
कहानी संग्रह ‘करामाती गधा’ के माध्यम से श्रीमती सरल जैन भी म.प्र. के बाल साहित्य क्षेत्र में नन्हें-मुन्ने पाठकों को इन कहानियों के द्वारा प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर नसीहत देती नज़र आई हैं। डाॅ. माया दुबे का रुझान अब बाल साहित्य की ओर हो रहा है जो उनके बाल काव्य संग्रह ‘बाल विहंग’ में परिलक्षित होता है। इसी कड़ी में राधारानी चैहान का उल्लेख भी आवष्यक है क्योंकि आप भी बच्चों के लिए आयोजित एनसीईआरटी, नईदिल्ली द्वारा शैक्षणिक कार्यक्रमों में अग्रसर रही हैं, आपकी प्रकाषनाधीन कृतियों में बालगीत संग्रह एवं बाल कहानी संग्रह हैं। बाल साहित्यकार मंजू पाण्डे द्वारा रचित उनका बाल कहानी संग्रह ‘मीनू’ में हँसी का सस्पेंस और अपने पैरों पर कहानियाँ बाल पाठकों द्वारा सराही गईं।
बालसाहित्यकार अंषु शुक्ल प्रसिद्ध बालसाहित्यकार डाॅ. परषुराम शुक्ल की पुत्री हैं। आपको साहित्य के संस्कार बचपन से ही मिले हैं, आपने दतिया में षिक्षा प्राप्त करते हुए कविताएँ लिखना प्रारंभ कर दिया था। अंषु की प्रकाषित कृतियां - तितली रानी तितली रानी, नाचे मोर मचाए शोर हैं। ‘भारत को भारत रहने दो’ लिखकर चर्चित हुई गरिमा अग्रवाल भी अपनी लेखनी के द्वारा शौर्य, साहस और ओजस्वी रचनाओं के द्वारा बाल पाठकों प्रेरित करती हैं। दिव्या प्रसाद द्वारा रचित कविता संग्रह ‘बँूद’ में आपने समाज एवं व्यक्ति के प्रति संवेदनषील भाव को व्यक्त किया है। इसी कड़ी में कृति पाठक की रचना ‘ऊँचाई’ भी प्रकृति और बालमन आदि विषयों पर बच्चों को सोचने के लिए मजबूर करती है।
महाकाल की नगरी उज्जैन निवासी डाॅ. पुष्पा चैरसिया भी बच्चों के लिए रोचक बाल साहित्य की रचना कर रही हैं। आप बाल मनोभावों को क़ाग़ज़ पर उकेर कर बालमन से जुड़े रहकर अपनी रचनाओं को बच्चों के लिए तैयार करती हैं।
बाल साहित्य के क्षेत्र में ऐसी कई साहित्यकार हैं जिनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाषित होती रहती हैं तथा उनकी पांडुलिपियाँ भी तैयार हैं लेकिन अभी तक पुस्तक के रूप में प्रकाषित नहीं हुई हैं। लेकिन मेरा मानना है कि वे भी बालसाहित्यकारों की सूची में शामिल हैं, इसी कड़ी के अन्तर्गत नीलम कुलश्रेष्ठ की रचनाएं भी बच्चों को प्रेरित और मार्गदर्षित करती हैं। नीलमजी को कादम्बिनी मतांतर में सन 2007 एवं 2009 के सांत्वना पुरस्कार प्राप्त हैं। सिविल लाईन दतिया मध्यप्रदेष निवासी इतिषा दांगी बाल साहित्य में नवीन हस्ताक्षर के रूप में उभर रही हैं।
शोधपत्र लिखते समय स्वयं के विषय में लिख पाना अत्यंत कठिन होता है, लेकिन मेरी भरसक कोषिष रहेगी कि मध्यप्रदेष के बाल साहित्य में अपने साहित्यिक योगदान का संक्षेप में वर्णन कर सकूं। मेरा लेखन कार्य तो विगत् कई वर्षों से चल रहा है लेकिन बाल साहित्य के पटल पर मेरे प्रथम हस्ताक्षर के रूप में मेरी कृति ‘खेल खेल में’  ने मुझे एक पहचान दिलाई। इस काव्य संग्रह की पर्यावरण से प्रेरित कविता ‘पेड़’ को पष्चिम बंगाल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसके अलावा दिनांक 25/09/2011 को सलुम्बर, राजस्थान में आयोजित राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन में ‘मीडिया, समाज और बालसाहित्य’ विषय पर अपने शोधपत्र का वाचन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, साथ ही बाल साहित्य केन्द्र, कानपुर द्वारा ‘बाल साहित्य साधना सम्मान’ भी प्रदान किया गया।
बाल साहित्य और रंगमंच के प्रति सर्जनात्मक लगाव पैदा करने के लिए मध्यप्रदेष राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन भोपाल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में वर्ष 2011 का श्रीमती सतीष बालकृष्ण ओबेराय महिला सम्मान, दिनांक 2 अक्टूबर 2011 को मध्यप्रदेष के नवनियुक्त महामहिम राज्यपाल श्री रामनरेष यादव के करकमलों द्वारा प्राप्त हुआ।
लेखन के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया को बाल साहित्य की अभिव्यक्ति के लिए माध्यम बनाया है। जिसके अंतर्गत मैंने देष के सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकारों की भेंटवार्ता को फिल्मांकित किया है, इनमें बाल साहित्य के पुरोधाद्वय डाॅ. श्रीप्रसाद एवं डाॅ. राष्ट्रबन्धु है।
अपने इस शोध पत्र के माध्यम से मैंने मध्यप्रदेष के महिला बालसाहित्यकारों के योगदान को पूर्णरूप से रेखांकित किया है। प्रदेष से बाहर जन्में कुछ बाल साहित्यकारों को मैंने मध्यप्रदेष के साहित्यकारों में सम्मिलित किया है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उनका मध्यप्रदेष के बाल साहित्य में लेखन कार्य के साथ-साथ उनकी कर्मभूमि भी मध्यप्रदेष है।
इस शोधपत्र में मैंने मध्यप्रदेष की समस्त महिला बालसाहित्यकारों को सम्मिलित करने का प्रयास किया है। मेरी तमाम कोषिषों के बाद भी कुछ तकनीकी बाधाओं, संप्रेषणीयता की कमी के कारण मध्यप्रदेष की सम्पूर्ण महिला बाल साहित्यकारों एवं उनके रचनाधर्मिता को शोधपत्र में समेट पाना संभव नहीं था, फिर भी मुझे आषा ही नहीं वरन् विष्वास है कि मेरे शोधपत्र के माध्यम से आप मध्यप्रदेष की अधिकाधिक महिला बालसाहित्कारों जुड़ेंगे। 
मैं अपने इस शोधपत्र के माध्यम से मध्यप्रदेष की महिला लेखिकाओं के साहित्य सृजन उनके पारिवारिक परिवेष, षिक्षा कर्म, लेखनी और उनके योगदानों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर रेखांकित कर सकूं तभी मेरे इस शोधपत्र की सार्थकता पूर्णरूपेण सिद्ध हो सकेगी।
प्रीति प्रवीण,
19, सुरुचि नगर, कोटरासुल्तानाबाद
भोपाल (मध्यप्रदेश)
सम्पर्क: $91-9425014719
ई मेल: चतममजपचतंअममदंनजीवत/हउंपसण्बवउ
संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1ण् बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल (म.प्र.)
2ण् प्रष्नावली, साक्षात्कार (प्रत्यक्ष एवं दूरभाषिक) 
3ण् द संडे इंडियन, 4 सितम्बर 2011 अंक, शीर्षक- 21वीं सदी की 111 महिला लेखिकाएं।

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