Saturday, October 8, 2011

kavya sameekshaa

                     समीक्षा
        हिन्दी विश्व गौरव ग्रंथ की दूसरी कड़ी के रूप में 'काव्य कुसुमाजंलि" सम्पादन की
अदभुत क्षमता से परिपूरित डा.मेहरोत्रा की हिन्दी जगत को पहली कड़ी में स्थापित की गई
गौरवशाली परम्परा क़ी  अतिश्रेष्ठ पुनरावृति है | प्रथम प्रसून में स्थापित प्रतिमानों से भी 
आगे बढ कर "काव्याजंलि" देव्-प्रसून बना कर की गई प्रस्तुति है जो अदभुत औरअनुकरणीय
 तो है ही एक सर्वथा सार्थक प्रयास भी है |
       १०७ पृष्ठो और ६ अध्यायों में मानो सम्पूर्ण हिन्दी काव्यधारा को समेटने का भगी-
रथ प्रयास किया गया है जो सफल भी रहा है |
       काव्यांजलि में बड़ी संख्या मॅ विदेशी हिन्दी मनीषियों और विदुषियों की चुनी हुई 
श्रेष्ठ कविताओं का संकलन मेहरोत्रा जी की संतुलित उद्दाम विद्वतता और सम्पादन क्षमता का
 अनवरत प्रदर्शन है| अपनी संकलन क्षमता का तात्विक प्रदर्शन जाने- अजाने में वे कर ही बैठे वरना
देश विदेश के लगभग एक सौ काव्य - कलमकारों के मात्र हिन्दी महिमा पर २२० से अधिक 
गीतों और कविताओं का श्रेष्ठ संकलन कितना दुष्कर कार्य है इसकी पीड़ा कोई संग्रहकर्ता  या 
संपादक, समय व्ययी और परिष्कृत सुबुद्दि का आयोजक ही जान सकता है |इस क्रम में यह 
इंगित करना भी अत्यावश्यक है कि हर अध्याय के बाद एक हिन्दी मनीषी को श्रद्धान्जलि ने
जहां समय की समग्र मांग का अनुशीलन किया है वहीं ग्रंथ की छवि को चार चांद लगाने का
सद्प्रयास भी |
       हिन्दी महिमा समग्र रचनाओं का २० भारतीय भाषाओं में अनुवाद इस गौरवग्रंथ के
महिमामण्डन में एक शिलालेख अंकन सिद्द होगा यह मेरी संकल्पना का अंश है |आज भी -
बिरले को छोड़ कर हिन्दी का नवोदित कवि भी स्वंय को सर्वश्रेष्ठ और राष्ट्र कवि से भी ऊपर 
समझता है ऐसे विपरीत समय में भारत ही नहीं मारीशस के भी घोषित राष्ट्र कवि डा.ब्रजेन्द्र 
कुमार भगत की हिन्दी महिमामण्डन मात्र पर सृजित लगभग ५० कविताओं का श्रमसाध्य 
संकलन एक अदभुत सार्थक सोच का पर्याय तो है ही सम्पूर्ण सोच की दिशा भी इंगित करता है |
        कुल मिला कर यह ग्रंथ भी मेहरोत्रा जी द्वारा गढी परम्परा में एक उज्ज्वल मील का 
पत्थर तो बनेगा ही,अगली पीढी के लिये धरोहर और प्रमाण भी बनेगा ऐसी मेरी सतत्
संकल्पना  है | मेहरोत्रा जी इस साहित्यिक परम्परा को निर्बाध रूप से आगे बढायेंगे ऐसी मेरी
 अटल सोच है | जय हिन्द |    

No comments:

Post a Comment